समीरात्मज मिश्रा-
तीन-चार साल पहले की बात है। लखनऊ सचिवालय में एक बड़े ‘पदाधिकारी’ के यहाँ कुछेक पत्रकारों और अफ़सरों के साथ गपशप हो रही थी।
किसी ने अपने छात्र जीवन का एक संस्मरण सुनाया कि ‘कैसे उनके ज़िले के एक पुलिस अधिकारी का ट्रांसफ़र हो गया तो स्थानीय लोग विरोध में सड़कों पर उतर आए। यह उस अधिकारी के प्रति लोगों का स्नेह था और यह स्नेह उस अधिकारी ने अपनी कर्तव्यपरायणता के ज़रिए हासिल किया था।’
वहाँ बैठे लोगों के बीच किसी ने सवाल किया कि क्या आज की तारीख़ में ऐसा कोई आईपीएस अधिकारी है जिसके समर्थन में लोग ऐसा करें ?
जिस पदाधिकारी के यहाँ बैठकी हो रही थी, उन्होंने तुरंत जवाब दिया- “हाँ, एक अफ़सर है- प्रभाकर चौधरी।”
वहाँ बैठे कई लोगों ने इस बात से सहमति जताई। मैंने भी। क्योंकि प्रभाकर चौधरी से तब तक कई बार फ़ोन पर बातचीत हो चुकी थी, उनके काम करने के तरीक़े को थोड़ा-बहुत समझ चुका था और जितना समझा था, उसके मुताबिक़ मुझे वो बिना किसी दबाव के काम करने वाले तेज़तर्रार अफ़सर और व्यवहारकुशल व्यक्ति लगे। इसकी मिसाल यह है कि तब से लेकर अब तक उनकी नियुक्ति कई ज़िलों में हो चुकी है और कई ज़िलों से वो हटाए जा चुके हैं।
बरेली की घटना के बाद उन्हें जिस तरह से हटाया गया, वह तरीक़ा ऐसे कर्तव्यनिष्ठ अफ़सरों को हतोत्साहित करता है। स्थानीय लोगों से बातचीत में पता चला कि जिस तरह से प्रभाकर चौधरी के नेतृत्व में पुलिस ने स्थिति को सँभाला, वह क़ाबिले तारीफ़ था, अन्यथा कोई बड़ी घटना भी हो सकती थी।
यूपी के संबंध में एक और घटना याद रही है। एक बड़े ज़िले में ज़हरीली शराब पीने से कई लोगों की मौत हो गई थी। उस घटना की ग्राउंड रिपोर्टिंग के लिए मैं भी गया था। जिले के एसएसपी पुराने जानने वाले थे। उनकी छवि भी ईमानदार और तेज अफ़सरों वाली है। मेरे सामने ही ज़िले के कुछ बेहद प्रभावी लोग ज़हरीली शराब की घटना में शामिल कुछ अभियुक्तों की पैरवी करने के मक़सद से आए थे। एसएसपी ने जो जवाब दिया, वो सुनकर भरोसा हो गया कि अभी भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जिनके सहारे सिस्टम चल रहा है।
एसएसपी का जवाब लगभग हूबहू लिख रहा हूँ, “ऐसा है, इस घटना को अंजाम देने में जो भी लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं, उन्हें किसी क़ीमत पर नहीं छोड़ूँगा। चाहे मेरा यहाँ से ट्रांसफ़र हो जाए, चाहे मैं सस्पेंड हो जाऊँ और चाहे मेरे नौकरी चली जाए। मेरे पिताजी भी इन लोगों की सिफ़ारिश करने आ जाएँ तो उन्हें भी यही जवाब दूँगा। मैं इसे सिर्फ अपराध ही नहीं मानता हूँ, मेरी निगाह में यह बहुत बड़ा पाप है।”
तीन-चार दिन बाद एसएसपी साहब का ट्रांसफ़र हो गया।
ख़ैर, यूपी में तेज़, ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफ़सरों की कमी नहीं है, लेकिन किसी दबाव में आकर ऐसे अफ़सरों को दंडित किया जाना भी ठीक नहीं है।
लेखक बीबीसी समेत कई बड़े मीडिया प्रतिष्ठानों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं.