बस्तर में फ़र्ज़ी मुठभेड़, पत्रकारों की सुरक्षा, मानवाधिकार और आदिवासियों के हितों के लिए लगातार आवाज़ उठाने वाले क्रांतिकारी पत्रकार और सोशल एक्टिविस्ट कमल शुक्ला के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लिया गया है. कमल ने जज लोया से जुड़ा एक कार्टून शेयर कर दिया था जिसके बाद उन पर देश की न्यायपालिका और सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक कार्टून पोस्ट करने का आरोप लगाते हुए राजद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया है. कमल शुक्ला के खिलाफ कांकेर के कतवाली पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज किया गया है.
बस्तर में पिछले कुछ वर्षों में 10 से ज्यादा पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह समेत कई धाराओं में मुकदमे दर्ज किए जा चुके हैं.
कमल शुक्ला एक अखबार भूमकाल समाचार के संपादक हैं और कई स्थानीय व राष्ट्रीय समाचार माध्यमों के लिए लिखते हैं. वे पत्रकार सुरक्षा कानून संयुक्त संघर्ष समिति के मुखिया भी हैं. कमल शुक्ला ने दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में पत्रकार हितों के लिए प्रदर्शन किया है. यह संस्था फर्जी मामलों में फंसाकर जेल में बंद किए गए पत्रकारों की रिहाई, पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने, पुलिस द्वारा धमकी देने का सिलसिला बंद कराने संबंधी तमाम मांगों को लेकर सक्रिय रही है.
कांकेर के पुलिस अधीक्षक केएल ध्रुव का कहना है कि उन्होंने राजस्थान के एक शख्स की शिकायत पर कमल शुक्ला के खिलाफ आईपीसी की धारा 124-ए (राजद्रोह) के तहत मुकदमा दर्ज किया है. रायपुर की साइबर सेल द्वारा यह केस कांकेर पुलिस के हवाले किया गया है जिसके बाद जांच की जा रही है. कमल शुक्ला का कहना है कि उन्हें कुछ राइट विंग के लोग टारगेट किए हुए हैं.
राजद्रोह का केस दर्ज होने के बाद कमला शुक्ला ने अपनी फेसबुक वॉल पर जो लिखा है, उसे पढ़िए :
राष्ट्रद्रोह 124 (ए) मुझ पर लगाया गया है. देश मे लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर किए जाने की साजिश पर अकेले मैने चिंता जाहिर नहीं की है बल्कि तमाम विपक्षी दलों सहित स्वस्थ लोकतंत्र पर विश्वास रखने वाले सभी पत्रकार, लेखक बुद्धिजीवी इस विषय पर रिपोर्ट, लेख, कार्टून आदि के द्वारा लोगों को आगाह कर रहे हैं.
जज लोया के प्रकरण पर चीफ जस्टिस की भूमिका पर उंगली खुद सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर मजिस्ट्रेट उठा चुके हैं. कांग्रेस और कई अन्य दलों ने महाभियोग भी लाया, जिसे बिना जांचे परखे खारिज करके लोकतंत्र को और करारा झटका दिया जा चुका है. जब चीफ जस्टिस ने जज लोया की संदेहास्पद मृत्यु के मामले पर जांच की मांग खारिज कर देश भर के जनता के संदेह को पुष्ट कर दिया कि देश का सर्वोच्च न्याय पालिका दबाव में है तो वह कार्टून (जो अब मेरे वाल से सम्भवतः फेसबुक ने हटा लिया है) कैसे गलत और राष्ट्रद्रोह हो सकता है.
न्याय की देवी के रूप में आंखों पर पट्टी बांधे और तराजू रखे महिला को इस कार्टून में नीचे गिरा दिखाया गया है, जिसके हाथों को वर्तमान तंत्र के जिम्मेदार राजनीतिज्ञों द्वारा पकड़ कर रखा गया है, इनके सामने देश बांटने वाली विचारधारा के प्रमुख खड़े हुए हैं. तो सच तो यही है , इसमे गलत क्या है. इस कार्टून में न्यायपालिका की स्थिति पर चिंता प्रकट की गई है जो राष्ट्रद्रोह हो ही नहीं सकता. फिर किसी के फेसबुक पोस्ट पर यह धारा तो लगाया ही नहीं जा सकता.
अगर सच कहना ही देश द्रोह है तो फिर से सुन लो, कार्पोरेट के गुलाम मोदी, शाह की रखैल बनी भाजपा की सरकार ने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को तहस नहस कर डाला है. न्यायपालिका में अपने चहेतों को बिठा दिया गया है और भाजपा समर्थकों के गम्भीर अपराध माफ किया जा रहा है. भाजपा सरकार को अपने खर्चे से स्थापित करने वाले सेठ अम्बानी ने उनके पक्ष में देश की आधी से ज्यादा मीडिया घराना खरीदकर लोकतंत्र की रीढ़ तोड़ दी है. यही सच है, मैं बार बार कहूंगा. साथ यह भी जान लें कि इस तरह के गुंडई से मैं डरने वाला नही हूं. मेरा मोबाईल चालू है, मेरा नेट चालू है, लोकेशन के साथ मेरा फेसबुक भी चालू है. मेरी आवाज बंद नहीं होगी, न ही कलम रुकेगी. जब तक सांस बाकी है.