प्रदीप चौधरी-
एक मरीज आये, इंफ्लैमैटरी बाउल डिजीज जैसे बीमारी के साथ।
पूछने पर बताने लगे योग करता हूँ, “कपालभति” करता हूँ। मैं पूछा कपालभाति करने को किसने कह दिया, यह तो बीमारी को उल्टा बढ़ा देगी। बोले पेट के रोगों के लिए सभी बताते हैं। मैंने बन्द करने की सलाह दी।
पहली बात तो कपालभाति , नॉर्मल यौगिक क्रिया नहीं है, यह षडकर्म में एक कर्म है, जैसे आयुर्वेद में पंचकर्म है,
हठयोग प्रदीपिका का यह श्लोक देखिये-
मेदः श्लेष्माधिकः पूर्व षट्कर्माणि समाचरेत् ।
अन्यस्तु नाचरेत्तानि दोषाणां समभावतः ॥
अर्थात् जिन लोगों को मेद और श्लेष्मा की अधिकता है वे पहले षट्कर्म का आचरण करें । जिन्हें मेद और श्लेष्मा की अधिकता नहीं है वे दोषों का समभाव होने से इनका आचरण न करें अर्थात् समदोष वालों के लिए षट्कर्म करना आवश्यक नहीं है ।
अब बात कपालभाति की।
भस्त्रावल्लोहकारस्य रेचपूरौ समौ ।
कपालभातिविख्याता कफदोषविशोषिणी ॥
इसका अर्थ है, जैसे लोहार अपनी भट्ठी जलाता है, वैसे ही रेचक, पूरक करने से, जठर अग्नि जल उठती है, जो की कफ दोषों को भष्म कर देती है।
इस प्रकार अगर आपको को इंफ्लैमेटोरी रोग है, तो उसमें यह सदा नुकसान देह है। वह कोई ब्लीडिंग डिसॉर्डर हो, उच्च रक्तचाप हो, पित्तज प्रमेह हो, स्किन डिसीज हो, यह करने से बचना चाहिए।
पानी पीने को लेकर, रोज नये- नये ज्ञान सामने आते हैं।
ठीक है, सबका अपना मत हो सकता है, किसी की कोई रिसर्च हो सकती है, पर उसे आयुर्वेद के नाम पर क्यों बोलतें हैं?
खाना खाने के पहले पीना चाहिए, साथ में या बाद में,
इसपर सबसे अधिक भ्रांति ऋषि वाग्भट के नाम पर होती है,
इस नाम को प्रचारित करने में राजीव दीक्षित जी का बड़ा रोल है।
मैं वाग्भट को ही कोट कर रहा हूँ।
समस्थूलकृशा भुक्तमध्यान्तप्रथमाम्बुपाः ।
भोजन करते समय बीच-बीच में पानी पीने वालों का शरीर ‘सम’ रहता है, भोजन के अन्त में जल पीने वालों का शरीर स्थूल (मोटा ) होता है और भोजन के आरम्भ में जल पीने वालों का शरीर कृष (दुर्बल) हो जाता है।बीच में पीने का मतलब लीटर भर पीना नहीं होता है।
लेखक आयुर्वेद के डॉक्टर हैं.
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