अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-
मणिपुर को लेकर पूरे देश में यह परिदृश्य बनाया जा रहा है कि कुकी ईसाई हैं तो वहां के हिंदुओं को वहीं के विदेशी ईसाईयों से खतरा है।
अगर आज इस खतरे का सामना नहीं किया गया तो उन्हें भी उसी तरह अपने ही राज्य से खदेड़ दिया जाएगा, जिस तरह कश्मीर में हिंदुओं को विदेशी मुस्लिम आक्रांताओं ने खदेड़ दिया।
यह परिदृश्य बना कर यह धारणा मजबूत की जा रही है कि मोदी के नेतृत्व में ईसाईयों और मुस्लिमों से मिल रही इस तरह की दोहरी चुनौती से लड़ कर ही भगवा बिग्रेड के सपनों का अखंड भारत बनाया जा सकता है।
गुजरात में मोदी ने तकरीबन पंद्रह साल इसी धारणा को वहां के जनमानस में बिठाकर निष्कंटक राज भोगा।
उसके बाद मोदी पिछले नौ साल से देश के प्रधानमंत्री भी हैं और उनकी ही भगवा बिग्रेड का शासन अभी भी गुजरात में है। इसलिए गुजरात पर लगभग 24 साल से मोदी का ही शासन माना जा सकता है।
इसके बावजूद अभी भी यह डर ही दिखाकर चुनाव लड़ा जाता है कि मोदी या भगवा राज के हटते ही वहां के मुसलमान फिर हिंदुओं के लिए वैसा ही खतरा बन जाएंगे , जैसा 24-25 साल पहले मोदी के आने से पहले कांग्रेस राज में हुआ करते थे।
अब अगर 24-25 बरस के मोदी अथवा भगवा राज के बाद भी गुजरात जैसे छोटे से राज्य में यह डर और मुस्लिम आबादी का बढ़ना जस का तस है तो फिर भारत जैसे विशाल देश में मोदी या भगवा राज को तो शायद दो-ढाई सौ साल तक बने रहना होगा, तब कहीं जाकर शायद यह डर खत्म हो सके।
कोई नहीं पूछ रहा कि गुजरात में पिछले 25 साल रहकर भी मुसलमानों का खौफ वहां के हिंदुओं में हमेशा के लिए खत्म नहीं कर पाने वाले मोदी अब ईसाईयों का डर कैसे और कब तक खत्म तक करेंगे?
बस हिटलर की प्रोपेगंडा नीति को फॉलो करते हुए मणिपुर के कुकी लोगों से क्यों नफरत करें और कुकी लोगों के साथ वहां जो हो रहा है, उसके लिए खुद कुकी ही क्यों जिम्मेदार हैं, इसकी कारणों सहित व्याख्या करने के लिए पोस्ट दर पोस्ट वायरल जरूर की जा रही है।
इन पोस्ट में कुकी से नफ़रत करने के पीछे कई वजहें उभारने की कोशिश की गई है। मसलन , कुकी ईसाई हैं। कुकी बाहरी हैं और सैकड़ों साल पहले ही मणिपुर में आकर बसे हैं। कुकी अफीम की खेती करते हैं। कुकी पहाड़ों और जंगलों पर अपना एकछत्र कब्जा जमा चुके हैं आदि आदि।
उन्हीं पोस्ट में अपने हिन्दू मैतेई भाई- बहनों के गौरवशाली इतिहास पर गर्व करते हुए वर्तमान में कुकी से उनके प्रताड़ित होने का दुखड़ा भी रोया जा रहा है।
मुसलमानो के बाद ईसाईयों को हिंदुओं के लिए खतरा बताकर लंबे समय तक सत्ता पर काबिज रहने का अचूक फार्मूला खोज लेने वाले राजनीतिक पंडितों को शायद इससे कुछ लेना देना नहीं है कि आग लगाना और उसे फैलाना बहुत आसान होता है लेकिन उसके विकराल रूप धारण कर लेने के बाद उसे बुझा पाना फिर असंभव ही हो जाता है।