अजीत भारती-
मुझे यह समझ में नहीं आता कि जबरन वैसे जगह पर क्यों रहना जहाँ इतने संघर्ष हों? बारिश में बाढ़, समुद्र तट से सड़ाँध और दुर्गंध, ट्रैफिक, पैसे देने के बाद भी घटिया खोली में रहने को मिले…
यदि व्यक्ति विवश न हो, तो ऐसा क्यों करेगा? मुंबई बहुत सुंदर होगी उनके लिए जो वहाँ के हैं। मैं बिहार का हूँ, पर केवल इसलिए यह लिखने लगूँ कि बिहार में यदि आप नहीं रहे, आपने अपहरण का दौर नहीं देखा, चौराहे पर कट्टे चलते नहीं देखे, कोसी की बाढ़ नहीं देखी, तो आपने जीवन से संघर्ष को मिस किया है, तो मुझसे बड़ा मूर्ख कोई न होगा।
मुंबई गया हूँ, ऐसा कोलाहल बहुत कम जगह पर है। जब मेरे पास व्यवस्थित जीवन जीने का विकल्प है तो मैं क्यों दस बाय दस की खोली को रोमेंटिसाइज करूँ कि यही तो जीवन का अर्थ है!
जीवन का अर्थ है प्रसन्न रहना। जीवन में संघर्ष होते हैं, लोग उससे उबरते हैं। जीवन में संघर्ष लाने में जीवन का अर्थ नहीं है। मुंबई वालों को लोकल ट्रेन को रोमेंटिसाइज करते देख कर दया आती है कि उसी ट्रेन में हर दिन औसतन दस से बारह लोग मरते हैं गिर कर, 15-20 घायल होते हैं।
आप बच गए तो वह आपका संघर्ष नहीं है, वह एक शहर का घटिया परिवहन ढाँचा है जिसके मध्य आप खड़े हो कर दो-दो घंटे झूलने को विवश हैं। किसी भी शहर में छः महीने निकालना हो और नौकरी वहीं हों, या आपकी प्रतिभा के लिए अवसरों की अधिकता वहीं हो, तो आप निस्संदेह वहाँ रहें। वह आपकी विवशता है, चुनाव नहीं।
यही सारे अवसर आपको नोएडा में मिलेंगे तो आप अव्यवस्थित ट्रैफिक, बरसाती बाढ़, महँगी खोली आदि को त्याग कर वहाँ चले जाएँगे।
मुंबई का संघर्ष विवश लोगों की फैंटसी बन जाती है। ‘संघर्ष’ और ‘असुविधा’ विकल्प नहीं होते। व्यक्ति उनसे मुंबई ही नहीं धरती के हर कोने पर पार पा जाता है। संघर्षों से सीखने के लिए मुंबई जाना आवश्यक नहीं।