राणा यशवंत-
बीती रात सुधीर का फोन आया. सुधीर यानी सुधीर कुमार पांडे. टीवी9 भारतवर्ष में काम करता है और छोटे भाई की तरह है. जीवन में जो लोग काफी करीब हैं, जिनके अच्छे बुरे से फर्क पड़ता है, सुधीर उन्हीं में से है.
फोन उठाते ही मैंने कहा- हां सुधी, बोलो!
“सर प्रॉब्लम में हूं. अभी लखनऊ आया हूं. माता जी पॉजिटिव हो गई हैं और उनकी हालत अच्छी नहीं है. रेमेडिसिविर कम से कम सात चाहिए.” मैंने कहा- तुम परेशान मत हो, मैं कोशिश करता हूं.
मैने उसका फोन रखते ही लखनऊ में दो लोगों को फोन किया. दोनों लोग मौजूदा व्यवस्था में काफी अहम जिम्मेदारियों के साथ हैं. दोनों से निजी रिश्ता भी है, लिहाजा ऐसे वक्त में उनको फोन करना ही सही था. दोनों ने कहा कि कोशिश कर रहे हैं, लेकिन रेमेडिसिविर मिलना बहुत मुश्किल है. मैने कहा – आप लोग कोशिश कीजिए, अभी जरुरत है.
देर रात सुधीर को फोन लगाया लेकिन लगा नहीं. नंबर नॉट रिचेबल था. सुबह चाय पीने के बाद फिर फोन लगाया, सुधीर ने काट दिया.
उसके बाद मेरे पास एक मैसेज आया- “सर सुधीर की मां नहीं रहीं”. ऐसा सदमा लगा कि उसके बाद मेरी हिम्मत नहीं हुई उसे फोन करने की.
यह ऐसा दौर है कि जीवन के सारे काम काज छोड़कर, अपनों के काम आने और अपनों को बचाने की हर संभव कोशिश करनी होगी. सब जगह अराजक स्थिति है. लोग भगवान भरोसे हैं.
आदमी चाहे जितना सक्षम हो, कोरोना की चपेट में आने के बाद लाचार हो जा रहा है. सुधीर भी कल बहुत परेशान था. बेचैनी उसकी मैने रात भर महसूस की. सुबह एक-डेढ बजे तक लखनऊ में जितने भी जान-पहचान के लोग थे, मैसेज करता रहा. लेकिन यह नहीं पता था कि अगली सुबह के लिए ये सारी कोशिशें बेमानी हो जाएंगी.