संदीप तिवारी-
हिंदी के अनूठे गद्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी… हिन्दवी के इस इंटरव्यू का इंतज़ार पहले ही एपिसोड से था। अब जाकर प्रसारित हुआ। आज दिन में बड़े चाव से देखा। आदरणीय विश्वनाथ त्रिपाठी, उम्र के इस पड़ाव पर भी उनकी स्मृति बिल्कुल दुरुस्त तंदरुस्त है। सधी हुई। डूब कर बतियाने की उनकी कला भी लेखन से कम अनूठी नहीं है।
वह अपनी बात रस के साथ कहते हैं, किस रस में क्या कहना है उन्हें आता है। कहाँ कितना कहना है वह भी। क्या छोड़ देना है वह भी। लेखन की अनिवार्य शर्तों में शायद यह संतुलन सबसे ज़रूरी चीजों में से है। जो इसे ना साध सका उससे लेखन शायद नहीं सधेगा। यही साधना उनकी पूँजी है जो लेखन में उन्हें कभी नीरस नहीं होने देती। आमतौर पर साहित्येतिहास की किताबें नीरस होती हैं लेकिन उनका ‘हिंदी साहित्य का सरल इतिहास’ भी इसका अपवाद ही है
वह हिन्दी के अनूठे संस्मरणकार हैं। व्योमकेश दरवेश, नंगातलाई का गाँव, गुरु जी की खेती बारी, बिसनाथ का बलरामपुर सब मेरी प्रिय किताबें हैं। उनमें जीवन है, जीवन दर्शन है। जिन्हें मैं बहुत निराश, उदास होता हूँ तो फिर पलट लेता हूँ।
‘पत्नी तो जैसे महाकाव्य होती है…(उसके बिना) अब घर कहाँ है…घर थोड़े रह गया है मेरा!’
~ डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी
‘हिन्दवी’ के यूट्यूब चैनल पर ‘संगत’ कार्यक्रम के अन्तर्गत हिन्दी के मशहूर आलोचक डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी के अंजुम शर्मा को दिए गए साक्षात्कार का यह हिस्सा देखकर मन भर आता है और ये पंक्तियाँ बरबस याद आती हैं :
‘जो मैं ऐसा जानती, प्रीत किए दुख होय।
नगर ढिंढोरा पीटती, प्रीत न करियो कोय।।’
ज़रूर देखिए यह यादगार इंटरव्यू।