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सुख-दुख

योगी राज में माफियाओं में गैंगवॉर!

अश्विनी कुमार श्रीवास्तव-

योगी समर्थकों का दावा है कि योगी राज में माफिया राज खत्म हो गया है। इसीलिए एक के बाद एक माफिया मारे भी जा रहे हैं।
ऐसा कहने वाले कितने भोले हैं, जो यह नहीं देख पा रहे कि मारे जाने वाले माफिया एसटीएफ या पुलिस के हाथों नहीं मारे जा रहे बल्कि दूसरे माफिया सरगनाओं द्वारा उनकी हत्या करवाई जा रही है।

यानी माफियाराज़ खत्म नहीं हुआ बल्कि माफियाओं के बीच इस वक्त गैंगवॉर चल रही है। जाहिर है, इसमें जो बच जाएंगे, वे माफिया पहले से कहीं और ताकतवर होकर सामने आएंगे।
वैसे भी अपराध और राजनीति का गठजोड़ जितना गहरा यूपी में है, उससे तो यही लगता है कि शायद ही कोई मुख्यमंत्री इसका खात्मा कभी कर पाएगा…. और करेगा भी तो तब, जब वह ऐसा करना चाहेगा।

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अभी तक तो शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने यूपी में राजनीति और अपराध का गठजोड़ खत्म करने के लिए सभी अपराधियों को कानून के पलड़े पर एक समान तौला हो।

हर बार यही होता आया है कि किसी की सरकार में अगर कुछ माफिया मारे भी गए हैं तो वह इसलिए नहीं कि सरकार माफियाराज खत्म करना चाहती है। बल्कि इसलिए क्योंकि सरकार में बैठा राजनीतिक दल का वह मुख्यमंत्री अपने विरोधी दलों से जुड़े माफिया सरगनाओं को खत्म कर रहा होता है।

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यूपी में माफियाओं की लिस्ट बनाकर उन्हें मरवाने की मुहिम पहली बार भाजपा ने कल्याण सिंह के नेतृत्व में शुरू की थी।
तभी एसटीएफ का गठन करके एक विशेष बल को अदालत जैसा काम सौंप दिया था। इस पुलिस बल ने ‘एनकाऊंटर‘ में यूपी के अनगिनत अपराधियों को मार गिराया।

इन एनकाऊंटर को करने वाले एसटीएफ के अधिकारी या पुलिस अधिकारी को लोग हीरो जैसा समझने लगे और इन पर बनने वाली तमाम फिल्मों व ओटीटी सीरीज का सिलसिला आज भी चल ही रहा है।

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इन फिल्मों व ओटीटी सीरीज को बनाने वाले निर्माताओं ने इन्हीं ‘एनकाऊंटर स्पेशलिस्ट‘ से बातचीत करके इन्हें ऐसा दिखाया जैसे कि अदालत की बजाय न्याय का जिम्मा इन्होंने ही संभाल लिया था।

अपराध की ‘सफाई‘ का एसटीएफ वाला यह तरीका भले ही यूपी में अनगिनत अपराधियों और माफियाओं का राज खत्म करने में कामयाब रहा हो लेकिन सत्ता से जिन माफियाओं और अपराधियों को अभयदान मिल गया , उनका एसटीएफ भी कुछ बिगाड़ नहीं पाई।

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आज जब यूपी में एक बार फिर माफिया मारे जा रहे हैं तो ये वही माफिया हैं, जिन्हें एसटीएफ राजनीतिक अभयदान के चलते छू भी नहीं पाई थी।

लेकिन दुख की बात यह है कि इन्हें एसटीएफ नहीं बल्कि इस वक्त राजनीतिक अभयदान पाए माफियाओं के शूटर भरी अदालत और मीडिया के सामने मार रहे हैं। यानी राजनीतिक अभयदान पाए माफिया अभी भी अदालत और एसटीएफ या पुलिस की पहुंच से बहुत ऊपर की चीज हैं।

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लिहाजा योगी जी के राज में माफिया राज के खात्मे का दावा कुछ और नहीं बस चाटुकारिता या अंधभक्ति का ही एक रूप है।

ऐसा दावा करने वाले जानबूझकर वह सच नहीं देख रहे , जिसे यूपी के बाहर दुनिया के दूसरे कोने पर बैठा शख्स भी महज माफियाओं के मारे जाने की इन घटनाओं की खबरें देख- सुनकर सहज ही देख सकता है।

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यह जो अदालत में या मीडिया के सामने सरेआम हत्याएं हो रही हैं, यह ऊपर वाले का न्याय है या नहीं, यह तो ऊपर वाला ही जाने लेकिन जो लोग ये हत्या कर रहे हैं या करवा रहे हैं, वे अपने देश के कानून की नजर में अपराधी हैं या नहीं?

सरेआम अदालत में या मीडिया के सामने हत्याएं होने पर राज्य की कानून- व्यवस्था संभालने वाले मुख्यमंत्री की कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही है या नहीं?

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या माफिया लोग यूं ही लोग सरेआम हत्याएं करवाकर भी ऊपर वाले के न्याय के नाम पर कानून से बचते रहेंगे? माफियाओं के शूटर हत्या करते रहे और ऊपर वाले के इस तथाकथित न्याय की चपेट में अगर कभी कोई बड़ा नेता या सत्ताधारी आ गया तो ? कानून व्यवस्था तो संभालनी पड़ेगी न ?


फिल्मों में अब तक छप्पन या कम्पनी जैसी ज्यादातर फिल्में पुलिस या किसी सुपर कॉप के जरिए ही चटपट न्याय की पैरवी करती हैं। पुलिस या सुपर कॉप को न्याय करते देख जनता भी उन्हें हीरो समझकर तालियां बजाती है।

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लेकिन पत्रकार, वकील या अन्य पढ़े लिखे लोग जानते हैं कि न्याय का काम अदालत के अलावा किसी को देना बहुत बड़ी अराजकता को जन्म दे सकता है। बरसों तक मुकदमे चलते हैं और दोनों पक्षों की हर दलील सुनी जाती है फिर भी कई बार निर्दोष फंस जाते हैं या दोषी बरी हो जाते हैं। जहां ऐसी कोई प्रक्रिया ही न चले और न ही दोनों पक्षों की सार्वजनिक मंच पर सुनवाई हो, वहां क्या न्याय होगा, यह कोई भी पढ़ा लिखा व्यक्ति समझ सकता है।

अपनी न्याय प्रक्रिया में क्या खामी है या माफियाओं का राजनीतिक दलों से गठजोड़ कैसे टूटेगा, बजाय उसको सुधारने के , पुलिस से एनकाऊंटर करवाना या दूसरे गैंग के हत्यारों द्वारा खुलेआम हत्या को न्याय समझना अराजकता है और कुछ नहीं।

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गांधी को तो तब गोडसे ने मार ही दिया था और गोडसे को भाजपा सरकार में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री व संघ के प्रचारक त्रिवेंद्र सिंह रावत जी देशभक्त बता ही रहे हैं। नेहरू न जाने कैसे इन देशभक्तों की आंख की किरकिरी नहीं बने। अगर बन गए होते तो गांधी की तरह कोई न कोई देशभक्त अपनी देशभक्ति साबित कर ही देता।

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