
बद्री प्रसाद सिंह-
मृत्यु का आना। छ जून को प्रातः सेवानिवृत्त डीजी दिनेश कुमार शर्मा जी द्वारा अपनी रिवॉल्वर से आत्महत्या किए जाने की खबर सुनकर मैं तथा अन्य बहुत से साथी स्तब्ध रह गए।१९७५ बैच के आईपीएस अधिकारी शर्मा जी बहुत ही सज्जन, मिलनसार एवं कर्तव्यनिष्ठ पुलिस अधिकारी थे। वह बैडमिंटन, क्रिकेट, टेबल टेनिस के अच्छे खिलाड़ी तथा पुलिस परेड के अच्छे कमेंट्रेटर थे।
मैंने उनके साथ १९७८ में मुरादाबाद जिले में व्यवहारिक प्रशिक्षण लिया था तथा वह मेरे आईजी जोन गोरखपुर भी थे जब १९९८में मैं पुलिस अधीक्षक सिद्धार्थनगर था। मैं उनके गोमतीनगर आवास भी गया तथा सात जून को उनके अंतिम संस्कार में भैंसाकुंड विद्युत शवदाहगृह पर भी था जहां बहुत से सेवानिवृत्त और सेवारत अधिकारी उपस्थित थे। वहां पुलिस की गार्द द्वारा अंतिम सलामी भी उन्हें दी गई। सेवानिवृत्ति के बाद की इस सलामी का औचित्य मेरी समझ में नहीं आया।
वहां कुछ अधिकारियों ने बताया कि वह बीमारी के कारण आत्महत्या किए थे ,क्या बीमारी थी , डिप्रेशन या कैंसर,यह ज्ञात नहीं।कुछ ने उनके इस कृत्य को उचित नहीं माना।
मुझे उनके इस कृत्य में कोई कमी नजर नहीं आई। कुछ लोग जीवन को आराम से जीना चाहते हैं कुछ जब तक मृत्यु अपने आप न आ जाए, तब तक जीना चाहते हैं चाहे जिंदगी के सभी सुख उनसे बिदा ले चुके हो। ऐसी स्थिति में लोग ईश्वर से मृत्यु की कामना तो करते हैं लेकिन उठकर मृत्यु का आलिंगन करने का साहस उनमें नहीं होता। मेरा स्वयं का मानना है कि जिंदगी के बोझ बन जाने से पूर्व इस संसार का त्याग करना श्रेयस्कर होगा।
यदि हम वैदिक काल को देखें तो बहुत से ऋषियों ने अंतिम समय में मृत्यु का प्रसन्नता पूर्वक आलिंगन किया है। बहुतों ने जल समाधि ली या चिता पर बैठकर कर शरीर को अग्नि को समर्पित कर लिया। लोगों ने कभी भी उन्हें भीरु या पलायनवादी कह कर भर्त्सना नहीं की अपितु उनकी प्रशंसा ही की।
पुरुषोत्तम राम भी अंत में सरयू में जल समाधि ली थी।आदि शंकराचार्य जब मीमांसा के उद्भट विद्वान कुमारिल भट्ट से शास्त्रार्थ करने प्रयागराज आए तो वह उन्हें गंगा तट पर चिता पर बैठे पाया जो अपना शरीर अग्नि को समर्पित करने को तत्पर थे। मुस्लिमो के आक्रमण पर पराजित हिंदुओं की पत्नियों का जौहर व्रत सदैव पूजनीय रहा।जैन धर्म में आज भी समाधि लेने का प्रचलन है।
कुछ वर्ष पूर्व एक डीजी फ्लोट पंप घोटाले में फंसने पर जेल जाने की अपेक्षा आत्महत्या की थी।
इधर कुछ वरिष्ठ अधिकारी विभिन्न मामलों में सजा काटने में कोई शर्म नहीं मानी जबकि उनके पास भी आत्महत्या का एक सम्मान जनक रास्ता था।अब वरिष्ठ अधिकारी भी बेशर्मी से जीने के अभ्यस्त होते जा रहे हैं।
आज शर्मा जी जब अपनी जिंदगी से संतुष्ट न होने पर अपनी इहलीला समाप्त कर ली तो इसमें उनका कोई विधिक या नैतिक दोष नही है।पहले भारतीय दंड संहिता में आत्महत्या को अपराध माना जाता था लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने उसे समाप्त कर दिया।अब तो इच्छा मृत्यु के अधिकार की भी मांग उठ रही है।अब वृद्ध जन अपने परिवार की उपेक्षा के कारण मृत्यु की कामना कर अपने नारकीय जीवन से मुक्ति मांग रहे हैं। प्रत्येक वर्ष सैकड़ों किसान खराब फसल होने या कर्ज में फंसने से आत्महत्या कर रहे हैं।
शर्मा जी ७३ वर्ष की जिंदगी आराम से जिए, पत्नी भी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रही,बेटा आईआईटी से इंजीनियर है व बेटी यूरोप में कार्यरत है, उन्हें न तो आर्थिक कष्ट था न पारिवारिक, अपने शारीरिक मानसिक कष्ट से मुक्ति का उनका यह प्रयास उचित था। ईश्वर उन्हें अपने चरणों में स्थान दें तथा परिजनों मित्रों को यह कष्ट सहन करने की शक्ति दें। शर्मा जी को विनम्र श्रद्धांजलि।
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