यूसुफ़ किरमानी-
ओवैसी के वाहन पर गोली चलने की घटना को तूल देने की ज़रूरत नहीं है।…न हमदर्दी की ज़रूरत है। दो लड़के थे- सचिन और शुभम। नादानी में कर बैठे होंगे…अगर कर भी बैठे होंगे तो उन्हें उनकी उम्र देखते हुए माफ़ किया जाना चाहिए। आरोपियों के बयान में पड़ने की ज़रूरत क्या है ? बताइए, कट्टे से गोली चलाने आए थे।
कार के निचले हिस्से में गोली चलाने या चलवाने वाला बहुत समझदार लगता है। प्लानिंग परफ़ेक्ट थी। इस घटना से अगर किसी को फ़ायदा होगा तो ओवैसी/बीजेपी को होगा। इस घटना से अगर किसी को नुक़सान होगा तो ओवैसी/बीजेपी को होगा। बाक़ी अखिलेश, जयंत, मायावती, प्रियंका ‘सब धान बाइस पसेरी है।’ समझ रहे हैं न।
ओवैसी की पार्टी अगर यूपी में वाक़ई चुनाव लड़ रही है तो वहीं करे। नया नेरेटिव सेट करने की तैयारी न करें। ओवैसी यूपी के हमनिवाला, हमप्याला भाइयों का अंडरकरंट क्यों नहीं समझ रहे हैं।
बंगाल से बोरिया बिस्तर बांधकर लौट आए फिर उधर झांकने भी नहीं गए। सीमांचल (बिहार) में पाँच सीटें जीतने के बाद पलट कर सीमांचल भी नहीं गए। 10 मार्च के बाद यूपी में भी पलटकर झांकने नहीं आएँगे।
नेतापुराण के किरदार बदलते हैं। कहानी वही रहती है।
नमाज़ पढ़िए। अल्लाह-अल्लाह कीजिए। कल जुमा है। मुल्क में अमृतकाल शुरू करने की दुआ माँगिए। फ़ालतू में ओवैसी के चक्कर में अपना वक्त, पैसा, ईमान नहीं बर्बाद करें।
घर से मस्जिद अगर दूर है तो साइकल से ज़ाया कीजिए। साइकल, रिक्शा ये सब देश का प्रदूषण ख़त्म करने में मददगार हैं। बाक़ी सब मिथ्या है।
मुझे मालूम है कि ओवैसी समर्थक मेरे दोस्त इस पोस्ट को पसंद नहीं करेंगे। कुछ गालियाँ भी देंगे। लेकिन इसकी परवाह बेकार है। यूपी चुनाव साज़िशों का चौरस मैदान बनता जा रहा है। अभी कई हक़ीक़तें सामने आएँगी।