अनुराग द्वारी-
ना मैं कभी अंध विरोधी रहा … भक्ति का तो सवाल नहीं है … लेकिन अब ये कहने में कोई गुरेज नहीं कि कोरोना में दांत निपोर कर दीदी ओ दीदी वाले पीएम ने देश को भट्टी में झोंक दिया है ये. मान लो भाई, राज्य सरकारें दोषी हैं लेकिन प्रधानमंत्री का कद कुछ और होता है. इस महामारी में इस आदमी का बुलबुला निकल गया, आने वाली सदी इसको कभी माफ नहीं करेगी.
रोज़ फोन आते हैं कभी रेमडिसिविर, कभी बेड, कभी ऑक्सीजन … कभी मदद कर पाता हूं, कभी नहीं …
5 साल में अकेले मध्यप्रदेश जैसे राज्य में स्वास्थ्य बजट के नाम पर 42,000 करोड़ खर्चे गये … हालात 75,000 लोगों पर एक वेंटिलेटर है, 48000 लोगों पर अस्पताल का एक बिस्तर …
देश में लगभग 2 लाख मरीज रोज आने लगे हैं कोविड बेड 5 लाख के करीब भी नहीं हैं … आप सांसदों से मॉडल बनाने की बात कहते हैं अपने लोकसभा में देख लीजिये … कल भी घबराते हुए एक साथी का फोन आया … तीन रिश्तेदार संक्रमित हैं कोई इंतजाम नहीं हो पा रहा है …
पिछले साल जब ये बात चीख चीखकर कह रहा था तो बचपन का एक भक्त मित्र हंस रहा था … भगवान की दया है कि वो बच गया ऐन वक्त पर वेंटिलेटर मिला …
आज हर 10 में से एक मरीज को वेंटिलेटर चाहिये … कहां से लाओगे …
जब वक्त था तैयारी को तैयारी चुनाव की हो रही थी … महामारी के पहले दौर में हमने भी समझा कि रातों रात तैयारी नहीं हो सकती … लेकिन पहले विदेश से लोगों को आने और कोरोना लाने दिया … फिर गरीबों को महानगरों में कैद रखा … 2 महीने बाद मरने के लिये सड़कों पर छोड़ दिया …
महामानव बनने के लिये दुनियां को वैक्सीन देते रहे, गुज्जू दिमाग लगाकर वक्त पर ढंग से वैक्सीन का सौदा नहीं किया … आज अब कच्चा माल नहीं है … अपने ज़िद में वैक्सीन बर्बाद हो जाए लेकिन दूसरे आयु वर्ग को नहीं लगने देंगे …
पूरा मंत्रिमंडल चाकरी करे, फैसले अकेले साहेब लेंगे …
प्रधानमंत्री जी आप फेल हैं … नैतिकता तो आपमें है नहीं इस्तीफा देने की … लेकिन याद रखें आने वाली कई पीढ़ियां आपसे इस सामूहिक मौत का हिसाब मांगेंगी…
कम से कम अभी भी चुनाव एक चरण में करने की अपील करें, कुंभ जैसे आयोजन बंद करवा दें …