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साहित्य

संस्मरण – देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी : अभी मन भरा नहीं…

अवनीश सिंह चौहान

सुविख्यात साहित्यकार श्रद्देय देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी (गाज़ियाबाद) से कई बार फोन पर बात होती— कभी अंग्रेजी में, कभी हिन्दी में, कभी ब्रज भाषा में। बात-बात में वह कहते कि ब्रज भाषा में भी मुझसे बतियाया करो, अच्छा लगता है, आगरा से हूँ न इसलिए। उनसे अपनी बोली-बानी में बतियाना बहुत अच्छा लगता। बहुभाषी विद्वान, आचार्य इन्द्र जी भी खूब रस लेते, ठहाके लगाते, आशीष देते, और बड़े प्यार से पूछते— कब आओगे? हर बार बस एक ही जवाब— अवश्य आऊँगा, आपके दर्शन करने। बरसों बीत गए। कभी जाना ही नहीं हो पाया, पर बात होती रही।

अवनीश सिंह चौहान

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सुविख्यात साहित्यकार श्रद्देय देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी (गाज़ियाबाद) से कई बार फोन पर बात होती— कभी अंग्रेजी में, कभी हिन्दी में, कभी ब्रज भाषा में। बात-बात में वह कहते कि ब्रज भाषा में भी मुझसे बतियाया करो, अच्छा लगता है, आगरा से हूँ न इसलिए। उनसे अपनी बोली-बानी में बतियाना बहुत अच्छा लगता। बहुभाषी विद्वान, आचार्य इन्द्र जी भी खूब रस लेते, ठहाके लगाते, आशीष देते, और बड़े प्यार से पूछते— कब आओगे? हर बार बस एक ही जवाब— अवश्य आऊँगा, आपके दर्शन करने। बरसों बीत गए। कभी जाना ही नहीं हो पाया, पर बात होती रही।

इधर पिछले दो-तीन वर्ष से मेरे प्रिय मित्र रमाकांत जी (रायबरेली, उ.प्र.) का आग्रह रहा कि कैसे भी हो इन्द्र जी से मिलना है। उन्हें करीब से देखना है, जानना-समझना है। पिछली बार जब वह मेरे पास दिल्ली आये, तब भी सोचा कि मिल लिया जाय। किन्तु, पता चला कि वह बहुत अस्वस्थ हैं, सो मिलना नहीं हो सका। एक कारण और भी। मेरे अग्रज गीतकार जगदीश पंकज जी जब भी मुरादाबाद आते, मुझसे सम्पर्क अवश्य करते। उनसे मुरादाबाद में कई बार मिलना हुआ, उठना-बैठना हुआ। फोन से भी संवाद चलता रहा। उन्होंने भी कई बार घर (साहिबाबाद) आने के लिए आमंत्रित किया। प्रेमयुक्त आमंत्रण। सोचा जाना ही होगा। जब इच्छा प्रबल हो और संकल्प पवित्र, तब सब अच्छा ही होता है। 30 अक्टूबर 2017, दिन रविवार को भी यही हुआ।

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सुखद संयोग, कई वर्ष बाद ही सही, कि रायबरेली से प्रिय साहित्यकार रमाकान्त जी का शनिवार को दिल्ली आना हुआ; कारण— हंस पत्रिका द्वारा आयोजित ‘राजेन्द्र यादव स्मृति समारोह’ में सहभागिता करना। बात हुई कि हम दोनों कार्यक्रम स्थल (त्रिवेणी कला संगम, तानसेन मार्ग, मंडी हाउस, नई दिल्ली) पर मिलेंगे। मिले भी। कार्यक्रम के उपरांत मैं उन्हें अपने फ्लैट पर ले आया। विचार हुआ कि कल श्रद्धेय इन्द्र जी का दर्शन कर लिया जाय और इसी बहाने गाज़ियाबाद के अन्य साहित्यकार मित्रों से भी मुलाकात हो जाएगी। सुबह-सुबह (रविवार को) जगदीश पंकज जी से फोन पर संपर्क किया, मिलने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने सहर्ष अपनी स्वीकृति दी और साधिकार कहा कि दोपहर का भोजन साथ-साथ करना है।

फिर क्या था हम जा पहुंचे उनके घर। सेक्टर-दो, राजेंद्रनगर। समय- लगभग 12 बजे, दोपहर। स्वागत-सत्कार हुआ। मन गदगद। अग्रज गीतकार संजय शुक्ल जी भी आ गए। हम सभी लगे बतियाने। देश-दुनिया की बातें— जाति, धर्म, राजनीति, साहित्य पर मंथन; यारी-दोस्ती, संपादक, सम्पादकीय की चर्चा; दिल्ली, लखनऊ, इलाहबाद, पटना, भोपाल, कानपुर पर गपशप। बीच-बीच में कहकहे। सब कुछ आनंदमय। वार्ता के दौरान दो-तीन बार पंकज जी का फोन घनघनाया। वरिष्ठ गीतकार कृष्ण भारतीय जी एवं साहित्यकार गीता पंडित जी के फोन थे। पंकज जी ने उन्हें अवगत कराया कि रमाकांत और अवनीश उनके यहाँ पधारे हैं। नमस्कार विनिमय हुआ। पंकज जी ने भारतीय जी से बात भी करवायी। पता चला कि भारतीय जी की सहधर्मिणी का निधन हो गया, सुनकर बड़ा कष्ट हुआ, हमने सुख-दुःख बाँटे। रमाकांत जी ने भी उन्हें सांत्वना दी। रमाकांत जी ने फोन पंकज जी को दे दिया। भारतीय जी ने पंकज जी से आग्रह किया कि उनकी पुस्तक हमें दे दी जाय। भारतीय जी की ओर से शुभकामनाएं लिखकर पंकज जी ने उनका सद्यः प्रकाशित गीत संग्रह ‘हैं जटायु से अपाहिज हम’ मुझे और रमाकांत जी को सप्रेम भैंट किया; संजय शुक्ल जी ने भी अपना गीत संग्रह ‘फटे पाँवोँ में महावर’ उपहारस्वरुप प्रदान किया। पंकज जी से न रहा गया, बोले कि एक फोटो हो जाय। सहयोग और सहभागिता के लिए उन्होंने अपनी धर्मपत्नी जी को बुलाया और दोनों सदगृहस्थों ने बड़ी आत्मीयता से हम सबका फोटो खींचा।

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तीन बजने वाले थे। बिना देर किये  देवेन्द्र शर्मा ‘इन्द्र’ जी के यहाँ पहुंचना था, क्योंकि उन्हें विद्वान लेखक ब्रजकिशोर वर्मा ‘शैदी’ जी की ‘नौ पुस्तकों’ के लोकार्पण समारोह में 4 बजे जाना था। सो निकल पड़े। ई-रिक्शा से। 5-7 मिनट में पहुँच गए, उनके घर। विवेकानंद नगर। दर्शन किये। अभिभूत, स्पंदित। लगभग 84 वर्षीय युवा इंद्र जी। गज़ब मुस्कान, खिलखिलाहट, जीवंतता- ऐसी कि मन मोह ले। उनकी दो-तीन बातें तो अब भी मेरे मन में हिलोरे मार रही हैं। वह बोले, ‘मुझे ठीक से कुर्ता पहना दो, सजा दो, फोटो जो खिंचवानी है’; ‘क्यों हनुमान (जगदीश पंकज जी), स्वर्गवाहिनी का इंतज़ाम हुआ कि नहीं?’ (कार्यक्रम में जाने के लिए कैब बुकिंग के सन्दर्भ में); ‘अवनीश, फिर आना, अभी मन भरा नहीं।’ बड़े भाग हमारे जो उनसे मिलना हुआ। वह भी मिले तो ऐसे जैसे वर्षों से मिलना-जुलना रहा हो हमारा। क्या कहने! समय कम था, फिर भी, हमारी मुलाकात सार्थक और आनंदमय रही। ​जय-जय।

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अवनीश सिंह चौहान
प्रेम नगर, लाइन पार, मझोला
मुरादाबाद (उ.प्र.)-244001
9456011560
Managing Editor : Creation and Criticism
संपादक : पूर्वाभास

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