समरेंद्र सिंह-
रोहित सरदाना आजतक नाम के जिस चैनल में थे उस चैनल से दो लोगों को नौकरी छोड़ने पर मजबूर किया गया। पुण्य प्रसून बाजपेयी और नवीन कुमार। दोनों इसलिए हटाए गए क्योंकि वो मोदी सरकार के खिलाफ बोलते थे। हटाया किसने? इस्तीफा देने के लिए किसने मजबूर किया? अरुण पुरी और सुप्रिय प्रसाद ने। अरुण पुरी कौन हैं? कंपनी के मालिक हैं। सुप्रिय प्रसाद कौन हैं? IIMC के मेरे सीनियर और चैनल के संपादक। न्यूज डायरेक्टर हैं।
कंपनी के इस मालिक और संपादक की जोड़ी ने सिर्फ उन्हीं को चैनल में रखा, जो सरकार और कंपनी की लाइन पर चलें। कुछ आजाद ख्याल लोग सोशल नेटवर्क पर निजी विचार रखते थे। उन्हें सामूहिक तौर पर चेतावनी देकर मना कर दिया गया। किसने मना किया? अरुण पुरी और सुप्रिय प्रसाद ने।
इस चैनल की एक पत्रिका भी है। बड़ी पत्रिका है। उनका नाम है इंडिया टुडे। इसके एक संपादक को मैं जानता हूं। उनका नाम आप “क” समझिए। “क” मतलब कमीना। कमीना इन दिनों सेक्युलर और क्यूट शब्द है। जब से “हर दोस्त कमीना होता है” वाला गाना और विज्ञापन बना है उसके बाद कमीना शब्द और भी क्यूट हो गया है। आप भी किसी को प्यार से कमीना बोल सकते हैं। इस कमीने संपादक के साथ दो चैनल में मैं काम कर चुका हूं। अच्छे इंसान हैं। इसलिए कि वो जब संपादक थे उन दिनों भी सेक्स सर्वे छापे जाते थे। गरीबी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर कोई बड़ा सर्वे छपा हो, मुझे ध्यान नहीं। उन्होंने अगर अपने कार्यकाल में गरीबी पर कोई ऐतिहासिक सर्वे छाप दिया होता तो मैं उनका नंबर डिलीट कर चुका होता। लेकिन उन्होंने ऐसा कोई “गुनाह” नहीं किया। मूर्ति बनाने का कोई मौका नहीं दिया।
एक दूसरे संपादक हैं। इस संपादक का नाम आप “स” समझिए। सांप वाला “स”। जहरीला सांप। जिसका रंग जितना चटख होगा, उतना जहरीला होगा। इन दिनों सांप संपादक फेसबुक, ट्वीटर और यू-ट्यूब पर क्रांति कर रहे हैं। जब संपादक थे तब रिपोर्टरों को उकसा कर दूसरों के बेडरूम में घुसा देते थे। सनसनी फैलाते थे। यू-ट्यूब पर सरकार के खिलाफ क्रांति कर रहे हैं।
एक तीसरे संपादक हैं, उनका नाम आप “प” समझिए। “प” मतलब परवर्ट हैं। “स” और “प” दोस्त हैं। बड़ी खतरनाक जोड़ी है। जहरीली और परवर्ट। एक बार तो “प” की आशिकी से जुड़ी खबर मेरे एक परिचित की वेबसाइट पर छपी। तब “स” ने मुझसे गुजारिश की कि किसी तरह उसे हटवा दूं। ये “पाप” मैंने किया। एक बार “स” के खिलाफ भी एक वेबसाइट पर खबर छप गई। उसे हटवाने का पाप भी मैंने किया था।
इन दिनों तीनों क्रांतिकारी संपादक बेरोजगार हैं। आए दिन इस पत्रकार तो उस पत्रकार को पेल रहे हैं। किसी की मौत पर ठहाके लगा रहे हैं। मरने वाला उनका जूनियर है, इससे भी फर्क नहीं पड़ रहा। इनसे कहिए कि अरुण पुरी को पेलो, ये नहीं पेलेंगे। संभावनाएं खत्म नहीं करेंगे। इनसे कहो कि सुभाष चंद्रा को पेल दो – नहीं पेलेंगे। वहां भी संभावना है। ये रजत शर्मा के यहां काम कर लेंगे। सुभाष चंद्रा को तेल लगा लेंगे। लेकिन इनकी दुश्मनी उस चैनल में काम करने वाले पत्रकार से होगी, जो कभी इनका जूनियर होगा या सहयोगी।
एक बात और इनसे कहो कि यार शेखर गुप्ता सैनिक फॉर्म में रहता है – उसे पेल दो। प्रभु चावला को पेल दो नहीं पेलेंगे। इनकी दुम इनके पिछवाड़े घुस जाएगी। दुम से एक मूवी या सीरियल का एक डॉयलॉग याद आया। उसने कहा कि यार तेरी तो दुम भी नहीं है, हिलाएगा क्या? लेखक गदहा होगा। उसे लगता है कि सिर्फ दुम ही हिलती है। यहां लोग न जाने क्या-क्या हिलाते हैं। कुछ हाथी की तरह कान भी हिलाते हैं।