हेमंत शर्मा-
शर्मिंदा हूँ ताविषी जी ! हम आपको बचा नहीं पाए।आपको समय पर इलाज नही दिला पाए।चालिस बरस तक जिस लखनऊ में मुख्यधारा की आपने पत्रकारिता की।उससे इस व्यवहार की आप हकदार नहीं थी। ताविषी जी आपको हमसे कोरोना ने नहीं सिस्टम ने छीना है। यह टूट चुका सिस्टम आपको समय से अस्पताल का एक बेड नहीं दिलवा पाया। और आप चली गयी।

ताविषी जी मेरी मित्र और लखनऊ की वरिष्ठतम पत्रकारो में एक थी। चालिस बरस से पायनियर में कार्यरत थी।हेमवती नंदन बहुगुणा से लेकर मुलायम सिंह यादव तक उन्हें नाम से जानते थे। अपनी बनाई लीक पर सीधे चलती थी।न उधौ का लेना न माधो को देना। पत्रकारीय गुट और पंचायतों से अलग, सीधी सरल और विनम्र।पत्रकारिता उनके लिए जीवनयापन नही पैशन था।उन ताविषी के साथ व्यवस्था का यह व्यवहार बताता है कि लखनऊ में आम आदमी के हालात क्या होंगे।
ताविषी चार रोज़ से बीमार थी।कल से उनकी सॉंस टूट रही थी।आक्सीजन लेवल अस्सी के नीचे था।वे छटपटा रही थी । उनकी नज़दीकी मित्र सुनीता ऐरन और अमिता वर्मा ने इलाज के लिए हर किसी से कहा।पर कहीं कोई सुनवाई नहीं।कोई मदद नहीं मिली।कल दोपहर बाद मुझे अमिता वर्मा जी का संदेश मिलता है। ताविषी जी की हालत ख़राब है। घर पर जूझ रही है।उन्हें किसी अस्पताल में भर्ती कराए।मैं संदेश पढ ही रहा था की पत्रकार मित्र विजय शर्मा का फ़ोन आया। उनका आक्सीजन लेवल सत्तर के नीचे जा रहा है। घर पर जो आक्सीजन सिलेंडर है वह भी ख़त्म होने को है। मैं इंतज़ाम के लिए फ़ोन पर लग गया। एक एक कर सरकार के दरवाज़े खटखटाता रहा।कहीं से कोई उम्मीद नहीं। जिससे कहूं वो अपनी लाचारी बताता। फिर लखनऊ के ही विधायक और मंत्री बृजेश पाठक से बात की।बृजेश जी ने आधे घंटे में केजीएमयू के डॉ पुरी से बात कर आईसीयू बेड का इन्तजाम कर दिया।अब समस्या एंबुलेंस की थी। फिर बृजेश जी के दरवाज़े फिर वहॉं से इन्तजाम।
तब तक चार बज गए थे। मेरे मोबाइल पर ताविषी जी का फ़ोन। मैंने घबड़ाते हुए उठाया। मुझे बचा लिजिए। जल्दी कहीं भर्ती कराइए।सॉंस लेते नहीं बन रही है। टूट टूट कर हाँफती आवाज़। मैंने कहा हिम्मत रखिए। एबुलेन्स पहुँच रही है। सब इन्तजाम हो गया है। आप ठीक हो जाएँगी। तब तक उनका ऑक्सीजन लेवल सत्तर के नीचे जा चुका था। और उनकी आवाज़ मेरे कानों में गूंज रही थी।…. बचा लिजिए। ….
आधे घंटे में बृजेश जी का संदेश आया।केजीएमयू में दाख़िला हो गया है। आईसीयू में हैं। डाक्टर चार घंटे तक जूझते रहे पर उन्हें बचाया नहीं जा सका। दस बजे खबर आई वो नहीं रही। मेरे कानों में रात भर उनकी आवाज़ गूंज रही है मुझे बचा लिजिए। अपराध बोध से ग्रसित हूँ मैं उन्हें नहीं बचा सका।
हमेशा हंसती रहने और कभी किसी बात का बुरा न मानें वाली ताविषी के साथ न जाने कितनी यात्राएँ की। कितने पत्रकारीय अभियान छेड़े। आज भी जब लखनऊ जाता सबसे पहले मिलने आती। उनका कोई शत्रु नहीं था। उनकी मृत्यु हमारे लिए व्यक्तिगत क्षति है। बार बार उनका हँसता चेहरा, उनकी उम्र के साथ पुरानी होती फिएट कार और रेमिगंटन का टाईपराईटर जिस पर उनकी गति देखते बनती थी…, याद आ रहे है। जब भी लखनऊ में मित्रों के साथ बैठकी होगी आप बहुत याद आएँगी ताविषी जी।