श्रीप्रकाश दीक्षित
देश दुनिया में मशहूर उत्तर प्रदेश के आगरा से छुआछूत की बेहद शर्मनाक घटना सामने आई है. यह घटना बताती है कि महात्मा गाँधी और बाबा साहेब आंबेडकर की जन्मभूमि और विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सवर्णों का जातिप्रेम इक्कीसवीं सदी में भी किस प्रकार हिलोरें लेता रहता है. यह घटना हमें सौ साल पुराने मुंशी प्रेमचंद के कथा संसार में ले जाती है जब पानी के लिए अलग-अलग कुएँ होते थे.
घटना यह भी बताती है कि अनुसूचित जाति आदि के राजनैतिक नेतृत्व की दिलचस्पी सिर्फ शहरी लोगों के लिए आरक्षण जैसी सुविधाओं तक सीमित है. लगता है उन्होंने ग्रामीणों को सवर्णों के रहमो-करम पर छोड़ दिया है, वरना छुआछूत की ऐसी शर्मनाक घटनाएँ ना हो रही होतीं.
हमारे देश में राजनीति पर जाति का जहर इस कदर घुला है कि मायावती ने विकास दुबे एनकाउंटर के बाद योगी सरकार को सचेत कर डाला कि वह ऐसा कुछ ना करे जिससे ब्राम्हणों में असुरक्षा और भय का माहौल बने. छुआछूत की ताजा घटना उसी यूपी की है जहाँ मायावती के अलावा सामजिक न्याय के रहनुमा मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश बतौर मुख्यमंत्री निर्द्वंद राज करते रहे हैं.
गाँव में नट समुदाय की 26 साल की बहू पूजा की बीमारी से मृत्यु होने पर परिवार के लोग अंतिम संस्कार के लिए गांव सभा के शमशान पहुंचे. उन्होंने चिता तैयार की और मृतका का चार साल का बेटा रोहन मुखाग्नि देने जा रहा था तभी गाँव के ठाकुरों ने वहाँ पहुँच कर उन्हें रोक दिया.
पूजा के पति राहुल ने बताया कि हमारे समुदाय के शमशान के लिए चिन्हित जमीन पर एक ब्राह्मण ने कब्ज़ा कर रखा है. इसलिए हम वहाँ अंतिम संस्कार करने पहुंचे जहाँ सारें गाँववाले किया करते हैं.
पुलिस, प्रशासन, गाँव प्रधान और स्थानीय नेताओं द्वारा घंटों तक समझाने बुझाने का दौर चला पर ठाकुर समुदाय टस से मस नहीं हुआ. उसने नट परिवार को चार किमी दूर जाकर अंतिम संस्कार करने पर विवश कर दिया. ग्राम प्रधान सुमन के पति के अनुसार गाँव में 11 शमशान मैदान हैं. पुलिस के मुताबिक कोई शिकायत ना होने से ऍफ़आईआर दर्ज नहीं की जा सकी है.
श्रीप्रकाश दीक्षित का विश्लेषण.