–रवि राय–
दो महीने पहले तक मोबाइल पर मैंने कोई फ़िल्म नहीं देखी थी। लॉकडाउन के दौरान सिनेमाहाल बन्द हो गए। मित्रों की राय पर नेटफ्लिक्स, अमेजॉन प्राइम और सोनी लिव डाउनलोड किया। पता चला कि यहां एक अलग फिल्मी दुनिया बसी हुई है। मिर्ज़ापुर, पाताल लोक, रंगबाज़, द फैमिली मैन, आर्या, स्पेशल ऑप्स, असुर, बेताल, डेल्ही क्राइम , माधुरी टाकीज़, ब्रीद, ब्रीद इनटू द शैडो, अपहरण आदि कई फिल्में देख डालीं। आठ से बारह एपिसोड्स की इन फिल्मों में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, पंकज त्रिपाठी, मनोज बाजपेयी, माधवन, अमित साध, केके मेनन से लेकर सुष्मिता सेन, कल्कि, शेफाली शाह जैसे स्थापित कलाकार छाए हुए हैं। कोविड 19 के वर्तमान प्रकोप को देखते हुए यह तो स्पष्ट है कि सिनेमाहाल निकट भविष्य में खुलने वाले नहीं हैं।खुले भी तो कोरोना के डर से दर्शकों का टोटा ही रहेगा।ऐसी स्थिति में मोबाइल पर फ़िल्म देखने का यह दौर क्या ऐसे ही चलता रहेगा ?
ज़ाहिर बात तो यही है कि कोरोना से पहले जब आम दर्शक के पास दोनों विकल्प थे, मोबाइल पर फ़िल्म देखना आम नहीं था।उच्च एवं मध्यवर्ग के दर्शकों के लिए हज़ार दो हज़ार के खर्च में परिवार के साथ हॉल में सीट पर बैठ कर फ़िल्म देखने का मज़ा ही कुछ और था।मगर फ़िल्म की असली कमाई टिकट खिड़की पर टूट पड़नेवाले सेकेंड क्लास, फर्स्ट क्लास, डीसी के दर्शकों से ही होती रही है। जैसे भी हो सिनेमा दर्शकों से हुई कमाई को ही बॉक्स ऑफिस का नाम दिया गया यानी सिनेमा की आमदनी। शुरुआती दिनों में सौ करोड़ को सफल और इससे भी अधिक की कमाई को सुपर-डुपर हिट कहा गया।सलमान, शाहरुख, आमिर आदि की कई फिल्में तो पांच से छह सौ करोड़ या इससे भी आगे तक चली गईं। वर्ष 2016 में आमिर खान की ब्लॉक बस्टर फ़िल्म ‘दंगल’ ने दो हज़ार करोड़ के वैश्विक आंकड़े के साथ सारे रिकॉर्ड तोड़ डाले। आमिर की ही पीके (2014) ने 832 करोड़,प्रभास की बाहुबली 2 (2016) ने 650 करोड़, सलमान की बजरंगी भाई जान (2015) ने 626 करोड़,सलमान की सुल्तान (2016) ने 584 करोड़, आमिर खान की धूम3 (2013) ने 542 करोड़ की कुल कमाई की।
मूल प्रश्न तो यही है कि क्या मोबाइल एप्प से फिल्मों की लागत भर की कमाई भी हो सकेगी ?इसके उत्तर के लिए मोबाइल पर फिल्मों के बारे में थोड़ा गहरे उतरना पड़ेगा।
ऑडियो विजुअल मनोरंजन क्षेत्र में सिनेमा स्क्रीन के बाद टेलीविजन को सेकेंड स्क्रीन की पहचान मिली । इसी क्रम में मोबाइल को अब थर्ड स्क्रीन कहा जाने लगा है। थर्ड स्क्रीन पर मनोरंजन या अन्य जानकारियां उपलब्ध कराने वाले एप्प्स को OTT कहते हैं यानी कि OVER THE TOP प्लेटफार्म। भारत में NETFLIX, AMAZON PRIME, VOOT, ZEE5, VIU, MAX, SONY LIV, ALT BALAJI आदि तमाम प्लेटफॉर्म ने तो खुद अपनी फिल्मों का प्रोडक्शन शुरू कर दिया है।अभी सामान्यतः इनका शुल्क डेढ़ से दो सौ रुपये मासिक है। यह सुविधा विज्ञापनयुक्त होती है और विकल्प यह है कि यदि आप विज्ञापनमुक्त स्ट्रीम चाहते हैं तो अधिक दाम देना होगा।इसे प्रीमियम सर्विस कहा गया है। सिनेमा से OTT का तो अभी मुकाबला ही नहीं है पर केबल या डिश टीवी बिजनेस में OTT ने सेंध लगा दी है। KPMG की रिपोर्ट है कि वित्तवर्ष 2019 में केबल और सेटेलाइट के कुल 19.7 करोड़ यूज़र्स में लगभग डेढ़ करोड़ यूज़र्स कम हुए। इस गिरावट की वजह ग्राहकों द्वारा केबल का नवीनीकरण न कराना, नए टैरिफ रेट में बढ़ोत्तरी और OTT पर बेहतर फिल्मों की उपलब्धता रही।
इस वक्त भारत में करीब चालीस OTT प्रोवाइडर्स हैं। वर्ष 2018 में OTT से 2150 करोड़ की कुल कमाई हुई जो 2019 में 3500 करोड़ हो गई। इस वर्ष यह आराम से 5000 करोड़ तक पहुंचेगी । KPMG का आकलन है कि OTT का मार्केट वर्ष 2023 तक 13800 करोड़ तक पहुंच जाएगा । Ernst &Young ने कहा है कि वर्तमान वर्ष में भारत में 50 करोड़ एंड्रॉयड मोबाइल फ़ोनधारक OTT प्लेटफॉर्म से जुड़ जाएंगे।
अब OTT की आमदनी का अंदाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है। OTT का बढ़ता चलन देखते हुए कई स्मार्ट टीवी अब इनबिल्ट OTT चैनल्स भी दे रहे हैं।
विगत दिनों में अमिताभ और आयुष्मान खुराना की गुलाबो सिताबो तथा अभिषेक बच्चन की ब्रीद इनटू द शैडो OTT पर रिलीज हुई। अगले कुछ दिनों में OTT पर आने वाली प्रमुख फिल्में हैं- सुशांत सिंह राजपूत की दिल बेचारा,विद्या बालन की शकुंतला देवी, अक्षय कुमार की लक्ष्मी बॉम्ब, अजय देवगन की भुज-द प्राइड ऑफ इंडिया, संजय दत्त, पूजा व आलिया भट्ट की सड़क 2, अभिषेक की द बिग बुल,विद्युत जामवाल की खुदा हाफ़िज़। इसके अतिरिक्त गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल, टोरबाज,लूडो, क्लास ऑफ ’83, रात अकेली है, डॉली किट्टी और वो, चमकते सितारे, काली खुही ,बॉम्बे रोज, भाग बीनी भाग, बॉम्बे बेगम्स ,मसाबा मसाबा, AK vs AK, गिन्नी वेड्स सनी, त्रिभंगा- टेढ़ी-मेढ़ी क्रेजी, अ सूटेबल बॉय, मिसमैच, सीरियस मेन भी थर्ड स्क्रीन पर उपलब्ध होंगी।
कुल मिला कर भारत में फिल्मों का सीन तो यही बनता दिख रहा है कि अब अच्छी कहानी, पटकथा, फ़िल्म की स्पीड, अदाकारी और टेक्निकल सुपिरियारिटी के दम पर ही फिल्में चलेंगी। स्टारडम और प्रचार के बल पर फिल्में हिट कराने का दौर नहीं रहा।गुलाबो सिताबो या ब्रीद इनटू द शैडो का हाल सामने है।अब वह समय गया जब टिकट खरीद कर हाल में बैठ गए तो फ़िल्म अच्छी हो या खराब, देखनी ही है।बाद में हाल से बाहर भले ही झींकते हुए निकलें। OTT में फिल्म की शुरुआत में संक्षिप्त रिव्यू मौजूद है।फिर अगर कुछ देर देखने पर भी फ़िल्म मन माफिक नहीं लगी तो बन्द करिये दूसरी देखिये। क्यों अपना वक्त खराब करें ? सबसे बड़ी बात, फ़िल्म रिलीज़ के दिन ही आपके एंड्रॉइड मोबाइल पर हर फिल्म मौजूद है। अपनी सुविधानुसार जब चाहें देखें।
OTT प्लेटफॉर्म पर यह तो रही सिर्फ फिल्मों की बात। खबरिया , किड्स, कुकरी , हेल्थ और रिलिजियस चैनल्स भी यहां आ गए हैं। ऑडियो स्ट्रीमिंग,VoIP कॉल, कम्युनिकेशन मैसेजिंग आदि भी OTT में ही शामिल हैं।अब पैसा फेंक तमाशा देख नहीं , पैसा फेंक और पैसावसूल तमाशा देख !
लेखक रवि राय गोरखपुर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के रिटायर्ड अधिकारी हैं. बैंकिंग करियर से पहले दैनिक जागरण, गोरखपुर के प्रारंभिक पत्रकारों में से रहे हैं और साहित्य के अनुरागी हैं.
Raul Irani
July 21, 2020 at 11:21 pm
Nice article Roy Sahab. Very enlightening. Mubarak!
Regards,
Raul Irani