यशवंत सिंह-
ग़ाज़ीपुर से नोएडा आना महँगा पड़ गया। पहले बुख़ार आया। आया तो ऐसा आया कि फिर आता ही रहा। जाने का तनिक नाम न ले रहा। डोलो खाने पर भी सौ का टेंप्रेचर बना रहता। हर पाँच घंटे में बुख़ार फ़ुल फ़ॉर्म में चढ़ जाता। चार चार बार डोलो650 खाना पड़ रहा। डाक्टरों ने कोरोना संक्रमित मान उसी आधार पर दवाएँ दी हैं। कल टेस्ट करायेंगे।
इलाज होम आयसोलेशन में चलेगा बशर्ते कोई बहुत इमरजेंसी न आ जाए। मेरे साथ साथ वाइफ़ भी संक्रमित लग रहीं। उन्हें बुख़ार के अलावा खांसी और अलर्जी भी बहुत है।
कोरोना के इलाज में दो चीजें ध्यान में रखूँगा। नर हो न निराश करो मन को। शरीर कोरोना पॉज़िटिव हो तो मन भी थॉट पॉज़िटिव वाला बनाए रखना पड़ेगा।
इसी बीच कोरोना से ठीक हो चुके लोगों और नए संक्रमितों का एक वाट्सअप ग्रुप क्रिएट किया ताकि सरकार द्वारा राम भरोसे छोड़ी गई जंता का अपना एक मोर्चा हो जहां अनुभव आयडीयाज शेयरिंग हो सके। ये ग्रुप नए संक्रमित मित्रों को अलग थलग पड़ कर डिप्रेशन में जाने से बचाने के लिए है। इसका नतीजा सकारात्मक है।

आप सबसे यही कहूँगा कि अब स्टाप बोल दीजिए। बहुत हुआ बाहर निकलना। बहुत हुआ ऑफ़िस जाकर नौकरी करना। महीने भर तक के लिए गोता लगा जायिए। इसी में आपका और आपके परिवार का भला है। कोरोना हो गया तो आपको बहुत झेलना पड़ेगा, अपने शुरुआती अनुभवों से कह रहा हूँ। इसलिए जान है तो जहान है। बहुत इमरजेंसी न हो तो घर से न निकलें। बाहर जाना ही पड़ जाए तो बढ़िया से मास्क ग़लब्स पहनकर ही निकलें।
मेरे साथ जो जो लोग मिले जुले हों उनसे अनुरोध है कि वे भी एहतियातन अपना टेस्ट करा लें।
नीचे वो शुरुआती पोस्ट है जब वायरल फ़ीवर मानकर डाक्टर ने पर्ची थमाई तो दवा ख़रीदते वक्त एक बड़े दुकानदार से बातचीत को फ़ेसबुक पर पब्लिश किया। पढ़िए और भयावहता महसूस करिए—
Noida के गौर सिटी एक और दो में कोविड के दो हज़ार मरीज़ हैं। ये सरकार के काग़ज़ों पर नहीं हैं लेकिन इनका इलाज इनके घरों में चल रहा है।
ये दावा यहाँ के सबसे बड़े दवा विक्रेताओं में से एक का है।
इनका कहना है कि वे दवा बेच बेच कर थक जा रहे हैं पर ख़रीदारों की भीड़ कम नहीं होती। कुछ चुनिंदा दवाओं का स्टॉक दिन में कई बार ख़त्म हो जाता है। स्टॉक मेंटेन रखने के लिए जूझना पड़ रहा है।
दवा दुकानदार के मुताबिक़ इस बार लक्षण भी सबके अलग अलग हैं। एक परिवार में कोई कोरोना पॉज़िटिव है तो उसके घर में होने के बावजूद अन्य लोग संक्रमित नहीं हैं। संक्रमण फैलने और बीमारों की संख्या के मामले में पिछली बार से हालत बहुत ज़्यादा ख़राब है लेकिन सरकार अबकी कुछ नहीं कर रही है। सब अपने हाल पर हैं। कुछ तय नहीं कौन जिएगा कौन मरेगा!
मैं डाक्टर से खुद को दिखा कर दवा विक्रेता के यहाँ से वायरल फ़ीवर का पाँच दिन का कोर्स ले आया। लौटते वक्त ध्यान से देखा तो पार्क / सोसाइटी प्ले ग्राउंड्स बिल्कुल सूने पड़े थे। पत्नी ने बताया कि लग रहा पड़ोसी भी संक्रमित है और आयसोलेशन में है। उनकी घर वाली मास्क लगा कर बालकनी में दूर से बात करती कई बार दिखी।
ये सब कथा कहानी सुनकर फिर से ग़ाज़ीपुर भागने की तैयारी में हूँ। वहाँ आराम से भड़ास आश्रम में रह रहा था और गंगा स्नान के बाद बाटी चोखा का आनंद उठा रहा था।
भड़ास एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से।