अभिरंजन कुमार-
बजट की कुछ बातें अच्छी लगीं, कुछ बातें अटपटी लगीं, कुछ और बेहतर किये जाने की गुंजाइश दिखी।
- रक्षा बजट 5.25 लाख करोड़ ठीक लग रहा है। इसमें 68% हिस्सा घरेलू उद्योगों से खरीद के लिए रखा जाना अच्छा है। विदेशों से हथियारों का आयात कम हो और ज़रूरत का बड़ा हिस्सा यदि हम देश में ही तैयार करने लग जाएं तो इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?
- शिक्षा और स्वास्थ्य के बजट में बढ़ोतरी की गई है, यद्यपि यह मुझे अभी भी काफी कम लग रहा है। खासकर स्वास्थ्य के लिए 86 हज़ार करोड़ रुपये काफी कम हैं। यह 140 करोड़ की आबादी वाले देश में प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 600 रुपये या 50 रुपये प्रति माह ही बैठता है। इसी में पुराने अस्पतालों के संचालन और रख-रखाव से लेकर नए अस्पतालों का निर्माण और आयुष्मान भारत योजना इत्यादि पर खर्च की जाने वाली रकम भी शामिल है। तो ज़ाहिर है कि स्वास्थ्य के बजट को और बढ़ाने की ज़रूरत है।
- डिजिटल शिक्षा, डिजिटल विश्वविद्यालय उपयोगी हो सकते हैं, लेकिन दूरस्थ शिक्षा/डिस्टेंट लर्निंग के आधुनिकीकरण के रूप में ही। भौतिक विद्यालयों या विश्वविद्यालयों की अपनी अहमियत है, जो कभी कम नहीं हो सकती।
- आधारभूत संरचना के विकास के लिए यह सरकार अच्छा काम कर रही है। एक साल में 25,000 किलोमीटर राजमार्ग के निर्माण का लक्ष्य चकित करता है। यह प्रतिदिन 68 किलोमीटर राजमार्ग के निर्माण के बराबर हुआ, जिसकी पिछली सरकारों में कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
- उत्तराखंड से लेकर पश्चिम बंगाल तक गंगा किनारे दोनों तरफ 5-5 किलोमीटर चौड़ा जैविक कृषि कॉरिडोर बनाने का विचार मुझे पसंद आया।
- कृषि कार्यों के लिए ड्रोन तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना समय की मांग है। एमएसपी पर स्थितियां यथावत दिख रही हैं। बस इतना फर्क है कि सरकार कह रही है कि पैसा सीधा किसानों के बैंक खाते में भेजेंगे, जो कि अच्छी बात है।
- नदियों को जोड़ने की परियोजना पर दोबारा काम शुरू करते हुए यह ध्यान में रखना होगा कि पैसा पानी में न चला जाए। अब तक नदी जोड़ो परियोजना के पैसे ज़्यादातर पानी में ही गए हैं। बाढ़, सूखे, सिंचाई और स्वच्छ पेयजल जैसी कई समस्याओं का हल निकल सकता है इससे, लेकिन यह काम है बेहद चुनौतीपूर्ण। नदियों की धाराओं को मोड़ना और जोड़ना पर्यावरण के लिहाज से भी चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- हर घर नल से जल योजना के तहत एक साल में 3.8 करोड़ परिवारों को लाभान्वित करना एक बड़ा और सार्थक कदम हो सकता है, जिसका 2024 में मोदी सरकार को चुनावी लाभ भी अवश्य ही मिलेगा।
- ऐसा लगता है कि या तो विरोधों के कारण या कोरोना की चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के कारण या फिर सही कीमत नहीं मिल पाने के कारण सरकार ने विनिवेश के लक्ष्य को घटाया है। 2021-22 में विनिवेश के जरिए 1.75 लाख करोड़ जुटाने का लक्ष्य था, जिसे कि संशोधित करके मात्र 78 हज़ार करोड़ रुपये कर दिया गया। वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भी इसे मात्र 65 हज़ार करोड़ रुपए ही रखे गए हैं।
- क्रिप्टो करेंसी से आमदनी पर 30% टैक्स लगाना एक तरह से इसे वैधता देना है, जो कि मेरे हिसाब से सही नहीं है और सरकार के पिछले रुख से उलटा भी है। न जाने क्या हुआ पिछले कुछ महीनों में, कि सरकार इस महत्वपूर्ण और संवेदनशील विषय पर ढीली पड़ गई! हां, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा डिजिटल करेंसी लाया जाना एक समयानुकूल कदम हो सकता है।
- इनकम टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किये जाने से मध्यम वर्ग का निराश होना स्वाभाविक है, लेकिन उसे समझना चाहिए कि इस लोकतंत्र में कोई उसका माई-बाप नहीं है। पूंजीपति-वर्ग और वंचित वर्ग दोनों को ही अपने एक-एक कंधे पर उसे ही बिठाना और उठाना है। इसे अपना राष्ट्रीय दायित्व समझकर उसे चुप रहना चाहिए।
- महंगाई और बेरोजगारी की समस्या का हल इस बजट में उतना नहीं दिखाई देता, जितना अपेक्षित है। लेकिन ये ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें हल करने के लिए जादू की छड़ी किसी के हाथ में नहीं है। चाहे किसी की भी सरकार हो, देश को अभी दशकों तक इन समस्याओं से दो-चार होना ही पड़ेगा, क्योंकि इनका सीधा संबंध देश में जारी जनसंख्या विस्फोट से है।
धन्यवाद। शुभ रात्रि।