Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

अर्णव गोस्वामी जिन्हें ‘शहरी नक्सली’ बता कर भोंक रहा, जानिए वो सुधा भारद्वाज हैं कौन!

Ajeet Singh : मजदूर नेता, सामाजिक कार्यकर्ता और मजदूरों आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने के लिए 40 साल की उम्र में लॉ की पढ़ाई करके अधिवक्ता बनने वाली सुधा भारद्वाज को ‘शहरी नक्सली’ घोषित करने का घृणित प्रयास किया जा रहा है। रिपब्लिक टीवी ने बुधवार को अपने एक कार्यक्रम में यह दावा किया कि ‘कामरेड अधिवक्ता सुधा भारद्वाज’ द्वारा किसी ‘कामरेड प्रकाश’ को एक पत्र लिखा गया था। उक्त पत्र में ‘कश्मीर जैसे हालात’ निर्मित करने की बात कही गई है। रिपब्लिक टीवी द्वारा इस कथित पत्र का हवाला देते हुए माओवादियों और अलगाववादियों के बीच संबंध-संपर्क स्थापित करने की कोशिश की गई।

रिपब्लिक टीवी द्वारा सुधा भारद्वाज के खिलाफ यह कार्यक्रम दिखाया जाना किसी बड़ी और सुनियोजित साजिश का हिस्सा लगता है। दरअसल, मजदूरों-आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने के कारण सुधा जी कारपोरेट और शासन-प्रशासन के आंख किरकिरी बनी रहती हैं। सुधा जी ने एक बयान जारी कर ऐसा कोई पत्र लिखने से न सिर्फ साफ तौर पर इनकार किया है बल्कि इस कृत्य के लिए रिपब्लिक टीवी को कानूनी नोटिस भेजने की बात भी कही है। देश के सभी सचेत नागरिकों, बुद्धिजीवियों को रिपब्लिक टीवी के इस कृत्य की निंदा करनी चाहिए और इस तरह के अभियानों के विरुद्ध आवाज बुलंद करनी चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुधा भारद्वाज

Mahendra Dubey : गुरु…और कुछ मेरा लिखा चाहे तो पढ़ना या मत पढ़ना मगर गुजारिश है कि इस पोस्ट को जरूर पढना…इस पोस्ट में मैं आज आपको एक ऐसे शख्स से परिचित कराना चाहता हूँ जिनके जैसा होना हमारे आपके बस में शायद ही कभी हो। मिलिये इनसे…ये हैं कोंकणी ब्राह्मण परिवार की एकलौती संतान…. सुधा भारद्वाज…यूनियनिस्ट, एक्टिविस्ट और वकील…इन सब पुछल्ले नामों की बजाय आप इन्हें सिर्फ “इंसान” ही कह दें तो यकीन करिये आप “इंसानियत” शब्द को उसके मयार तक पहुँचा देंगे।

मैं 2005 से सुधा को जानता हूँ मगर अत्यंत साधारण लिबास में माथे पर एक बिंदी लगाये मजदूर, किसान और कमजोर वर्ग के लोगों के लिये छत्तीसगढ़ के शहर और गाँव की दौड़ लगाती इस महिला के भीतर की असाधारण प्रतिभा, बेहतरीन एकेडेमिक योग्यता और अकूत ज्ञान से मेरा परिचय इनके साथ लगभग तीन साल तक काम करने के बाद भी न हो सका था ….वजह ये कि इनको खुद के विषय में बताना और अपने काम का प्रचार करना कभी पसन्द ही नहीं था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

2008 में मैं कुछ काम से दिल्ली गया हुआ था उसी दौरान मेरे एक दोस्त को सुधा के विषय में एक अंग्रेजी दैनिक में वेस्ट बंगाल के पूर्व वित्तमंत्री का लिखा लेख पढ़ने को मिला। लेख पढ़ने के बाद उसने फोन करके मुझे सुधा की पिछली जिंदगी के बारे में बताया तो मैं सुधा की अत्यंत साधारण और सादगी भरी जिंदगी से उनके इतिहास की तुलना करके दंग रह गया। मैं ये जान के हैरान रह गया कि मजदूर बस्ती में रहने वाली सुधा 1978 की आईआईटी कानपुर की टॉपर है….जन्म से अमेरिकन सिटीजन थी..और इंगलैंड में उनकी प्राइमरी एजुकेशन हुई है…आप सोच भी नहीं सकते है इस बैक ग्राउंड का कोई शख्स मजदूरो के साथ उनकी बस्ती में रहते हुए बिना दूध की चाय और भात सब्जी पर गुजारा कर रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सुधा की माँ कृष्णा भारद्वाज जेएनयू में इकोनामिक्स डिपार्टमेंट की डीन हुआ करती थी, बेहतरीन क्लासिकल सिंगर थी और अमर्त्य सेन के समकालीन भी थी। आज भी सुधा की माँ की याद में हर साल जेएनयू में कृष्णा मेमोरियल लेक्चर होता है जिसमे देश के नामचीन स्कालर शरीक होते है। आईआईटी से टॉपर हो कर निकलने के बाद भी सुधा को कैरियर खींच न सका और अपने वामपंथी रुझान के कारण वो 80 के दशक में छत्तीसगढ़ के करिश्माई यूनियन लीडर शंकर गुहा नियोगी के संपर्क में आयी और फिर उन्होंने छत्तीसगढ़ को अपना कार्य क्षेत्र ही बना लिया।

पिछले 35 साल से अधिक समय से छत्तीसगढ़ में मजदूर, किसान और गरीबों की लड़ाई सड़क और कोर्ट में लड़ते लड़ते इन्होंने अपनी माँ के पीएफ का पैसा तक उड़ा दिया। उनकी माँ ने दिल्ली में एक मकान खरीद रखा था जो आजकल उनके नाम पर है मगर बस नाम पर ही है…मकान किराए पर चढाया हुआ है जिसका किराया मजदुर यूनियन के खाते में जमा करने का फरमान उन्होंने किरायेदार को दिया हुआ है। जिस अमेरिकन सिटीजनशीप को पाने के लिये लोग कुछ भी करने को तैयार रहते है बाई बर्थ हासिल उस अमेरिकन सिटीजनशीप को वो बहुत पहले अमेरिकन एम्बेसी में फेंक कर आ चुकी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हिंदुस्तान में सामाजिक आंदोलन और सामाजिक न्याय के बड़े से बड़े नाम सुविधा सम्पन्न है और अपने काम से ज्यादा अपनी पहुँच और अपने विस्तार के लिए जाने जाते है मगर जिनके लिए वो काम कर रहे होते है उनकी हालत में सुधार की कीमत पर अपनी लक्जरी छोड़ने को कभी तैयार नहीं दिखते है। इधर सुधा है जो अमेरिकन सिटीजनशीप और आईआईटियन टॉपर होने के गुमान को त्याग कर गुमनामी में गुमनामों की लड़ाई लड़ते अपना जीवन होम कर चुकी है।

बिना फ़ीस की जनवादी वकालत करने वाली और हाई कोर्ट जज बनाये जाने का ऑफर तक विनम्रतापूर्वक ठुकरा चुकी सुधा का शरीर जवाब देना चाहता है….35-40 साल से दौड़ते उनके घुटने घिस चुके है….उनके मित्र डॉक्टर उन्हें बेड में बाँध देना चाहते है…मगर गरीब, किसान और मजदुर की एक हलकी सी चीख सुनते ही उनके पैरों में चक्के लग जाते है और फिर वो अपने शरीर की सुनती कहाँ है ?

Advertisement. Scroll to continue reading.

उनके घोर वामपंथी होने की वजह से उनसे मेरे वैचारिक मतभेद रहते है मगर उनके काम के प्रति समर्पण और जज्बे के आगे मै हमेशा नतमस्तक रहां हूँ। मैं दावे के साथ कहता हूँ कि अगर उन्होंने अपने काम का 10 प्रतिशत भी प्रचार किया होता तो दुनिया का कोई ऐसा पुरुस्कार न होगा जो उन्हें पाकर खुद को सम्मानित महसूस न कर रहा होता। सुधा होना मेरे आपके बस की बात नहीं है….सुधा सिर्फ सुधा ही हो सकती थी और कोई नही। सुधा We love you…करोडो सलाम तुमको। एक salute तो बनता है दोस्तों।

पत्रकार अजीत सिंह और एडवोकेट महेंद्र दुबे की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement