देश में अभी भी पचास करोड़ से ज्यादा वोटर किसी भी राजनीति दल के सदस्य नहीं हैं। और इतनी बडी तादाद में होने के बावजूद यह सभी वोटर अपनी अपनी जगह अकेले हैं। नहीं ऐसा भी नहीं है कि बाकि तीस करोड़ वोटर जो देश के किसी ना किसी राजनीतिक दल के सदस्य हैं, वे अकेले नहीं है। दरअसल अकेले हर वोटर है। लेकिन एक एक वोट की ताकत मिलकर या कहे एकजुट होकर जब किसी राजनीतिक दल को सत्ता तक पहुंचा देती है तो वह राजनीतिक दल अकेले नहीं होता। उसके भीतर का संगठन एक होकर सत्ता चलाते हुये वोटरो को फिर अलग थलग कर देता है। यानी जनता की एकजुटता वोट के तौर पर नजर आये । और वोट की ताकत से जनता नहीं राजनीतिक दल मजबूत और एकजुट हो जाये । और इसे ही लोकतंत्र करार दिया जाये तो इससे बडा धोखा और क्या हो सकता है। क्योंकि राजनीतिक पार्टी को सत्ता या कहे ताकत जनता देती है। लेकिन ताकत का इस्तेमाल जनता को मजबूत या एकजूट करने की जगह राजनीतिक दल खुद को खुद को मजबूत करने के लिये करते हैं। एक वक्त काग्रेस ने यह काम वोटरों को बांट कर सियासी लाभ देने के नाम पर किया तो बीजेपी अपने सदस्य संख्या को ग्यारह करोड़ बताने से लेकर स्वयंसेवक होकर काम करने के नाम पर कर रही है ।
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10वां साल : आजमगढ़ में 26 मई से 31 मई तक ‘अवाम का सिनेमा’
इसे संयोग नहीं कहा जा सकता कि जिस दिन इस देश की जनविरोधी सत्ता अपनी जीत की पहली सालगिरह का जश्न मना रही होगी, ठीक उसी दिन मेहनतकश अवाम भी अपने संघर्षों के एक अध्याय का दस साल पूरा कर रही होगी, वो भी उस सरज़मीं पर जिसे बीते एक दशक में सबसे ज्यादा बदनाम करने की साजि़शें रची गयी थीं। मंगलवार 26 मई को ‘अवाम का सिनेमा’ अपने आयोजन के दस साल होने पर उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में हफ्ते भर का एक भव्य समारोह करने जा रहा है। इस समारोह में किसान होंगे, मजदूर होंगे, जनता की संस्कृति होगी, काकोरी के शहीदों की याद होगी, भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन की विरासत होगी, कबीर होंगे, जनसंघर्षों की एकजुटता होगी और सबसे बढ़कर वे फिल्में होंगी जिन्होंने कदम-दर-कदम अपनी रचनात्मकता से सत्ता के ज़हर को हलका करने का काम किया है।
आजमगढ़ में छह दिवसीय अवाम का सिनेमा 26 से 31 मई तक
आजमगढ़ (उ.प्र.) : जनपद में आगामी 26 से 31 मई तक आयोजित होने अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव के लिए सोमवार को समारोह पूर्वक पोस्टरों को जारी किया गया। आम आवाम के किरदारों को दर्शाते हुए ये पोस्टर एक तरफ जहां फिरकापरस्ती से लड़ने से संदेश देते दिखे तो दूसरी तरफ समाज के शोषितों का दर्द उकेरते नज़र आये; इन पोस्टरों के जारी करने के दौरान आयोजन की रूप रेखा से लोगों को अवगत कराया गया।
मनुवादी एवं धार्मिक अंधविश्वासों के चलते हर दिन बेमौत मारे जा रहे लोग !
सोशल मीडिया के मार्फ़त देशभर में मनुवाद के खिलाफ एक बौद्धिक मुहिम शुरू हो चुकी है। जिसका कुछ-कुछ असर जमीनी स्तर पर भी नजर आने लगा है! लेकिन हमारे लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विचारणीय सवाल यह है कि यदि हमें मनुवाद के खिलाफ इस मुहिम को स्थायी रूप से सफल बनाना है तो हमें वास्तव में इस देश के बहुसंख्क लोगों को और विशेषकर आम लोगों को साथ लेना होगा, जिनको बामसेफ और बसपा वाले बहुजन कहते और लिखते हैं।