किसिम-किसिम के इनाम हैं दुनिया में। हर उम्र, हर क्षेत्र, हर विषय, हर काम, हर मौके, हर बहाने, हर फलाने-ढिकाने, चिरकुट-फटीचर, लल्लू-पंजू यहाँ तक कि किसी मरगिल्ले या मरे-बीते के लिए मरणोपरांत भी। इनाम-इकराम, खिताब-किताब, प्रमाण पत्र, पदवी, उपाधि, अलंकरण, गौरव, भूषण, रत्न, वृत्तिका, फैलोशिप, प्रोत्साहन, पुरस्कार और भी ना जाने कितनी और कैसी-कैसी शाबाशियाँ हैं किसी की पीठ थपथपाने या अपनी थपथपवाने को। मगर साहबो, जमाना आज हाइटेक हो गया है। आजकल यह सब पाने को किसिम-किसिम की जुगतें हैं, जुगाड़ हैं, लोभ है, लालच है, पहुँच है, एप्रोच है, लॉबीइंग है, प्रचार है, दुष्प्रचार भी है-अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने के वास्ते। तू मेरी पीठ खुजा, मैं तेरी पीठ खुजाऊंगा- ऐसे गठबंधन वाला सहधार्मिक समायोजन है, और भी वैरायटी है इस समझदार और माल खेंचू दुनिया जहान में।