Ganesh Pandey : मौन साधना के पीछे का हाहाकार… जमाना कितना खराब है? आज की तारीख में कर्ण सिंह चौहान जैसे स्वाभिमानी और साहसी आलोचक कितने हैं? आज कौन आलोचक साहित्य के मठों में मत्था नहीं टेकता है, मठाधीशों के चरणरज अपने ललाट पर नहीं पोतता है? मैं तो डरे हुए आलोचकों की जमात देखता हूं. मैं इन डरे हुए आलोचकों को अपनी कविताओं पर लिखने के लिए कैसे कह सकता हूं? रिव्यू के लिए इन्हें या किसी को भी किताबें कैसे भेज सकता हूं? अच्छा लिखूं और बेईमान आलोचकों को खुश करूं, ऐसा कैसे हो सकता है?
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एक नेक इंसान की बहुत ही ख़राब कविताएँ
पंकज चौधरी के एकल कविता पाठ पर कवि पंकज सिंह कहते हैं कि ‘‘भाषा जब तक एक जटिल प्रक्रिया से न निकले, वह सर्जनात्मक नहीं होगी ! पंकज चौधरी की कविताओं पर हिन्दी के प्रसिद्ध कवि पंकज सिंह ने कहा कि एक नेक इंसान की ये बहुत ही ख़राब कविताएँ हैं।
… तो अब क्यों बिलख रहे हो साहित्य के माननीयों ?
कई बार समान सोच वाले मित्रों से एक मसले पर बात हुई है और हम सभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाए हैं। मसला यह कि तथाकथित मुख्यधारा के हिंदी मीडिया और हिंदी साहित्य का वर्तमान परिदृश्य- इन दोनों में अधिक पतित कौन है? यकीन मानिए, कई ‘महान बहसों’ के बाद भी हम इस प्रश्न का उत्तर नहीं खोज सके।
मेरठ में ‘भारतीय साहित्य और हिंदी’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
मेरठ : चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ में 27 और 28 मार्च 2015 को ‘भारतीय साहित्य और हिंदी’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जा रही है।