कश्मीर समस्या का एकमात्र हल

पी.के. खुराना

2014 के लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी ने कई नारे उछाले थे, उनमें से एक नारा था — “मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सीमम गवर्नेंस”। मोदी ने तब यह नारा देकर लोगों का दिल जीता था क्योंकि इस नारे के माध्यम से उन्होंने आश्वासन दिया था कि आम नागरिकों के जीवन में सरकार का दखल कम से कम होगा। लेकिन आज हम जब सच्चाई का विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि यह भी एक जुमला ही था। अमित शाह ही नहीं खुद मोदी भी गुजरात के विधानसभा चुनाव के लिए गुजरात में प्रचार कर रहे हैं। अमित शाह के साथ बहुत से विधायक, सांसद, केंद्रीय मंत्री और भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी राज्य में दिन-रात एक किये दे रहे हैं। लगता है मानो देश की सारी सरकारें गुजरात में सिमट आई हैं। गुजरात विधानसभा चुनावों के कारण संसद का सत्र नहीं बुलाया जा रहा है ताकि संसद में असहज सवालों से बचा जा सके, वे सवाल मतदाताओं की निगाह में न आ जाएं। इसी प्रकार चुनाव आयोग और सर्वोच्च न्यायालय को प्रभावित करने के सफल-असफल प्रयास न तो गवर्नेंस हैं और न ही “मिनिमम गवर्नमेंट” के उदाहरण हैं।

कश्मीर में मीडिया पर बैन का कोई तुक नहीं बनता : रवीश कुमार

कश्मीर में अख़बार बंद है। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ आज दूसरा दिन है जब वहाँ किसी को अख़बार नहीं मिला है। राज्य सरकार ने अख़बारों के छपने और वितरण पर रोक लगा दी है। दिल्ली की मीडिया में ख़बरें आई हैं कि कर्फ़्यू के कारण वितरण रोका गया है। छपी हुई प्रतियाँ ज़ब्त कर ली गई हैं। सोशल मीडिया और इंटरनेट भी बंद है। कर्फ़्यू के कई दिन गुज़र जाने के बाद राज्य सरकार को ख़्याल आया कि अख़बारों को बंद किया जाए। क्या कर्फ़्यू में दूध,पानी सब बंद है? मरीज़ों का इलाज भी बंद है? आधुनिक मानव के जीने के लिए भोजन पानी के साथ अख़बार भी चाहिए। सूचना न मिले तो और भी अंधेरा हो जाता है। अफ़वाहें सूचना बन जाती हैं और फिर हालात बिगड़ते ही हैं, मन भी बिगड़ जाते हैं। खटास आ जाती है।

कश्मीर में बाढ़ की रिपोर्टिंग का सच : ‘हिन्दुस्तानी कुतिया’ ‘रंडी’ की वो गाली सिर्फ मेरे लिए नहीं थी, सारे मीडिया समाज के लिए था

मैं चारों तरफ से बाढ़ से घिरी हुई थी। रिपोर्टिंग करनी थी। अपने आठ साल की पत्रकारिता में अच्छे बुरे सभी तरह के लोगों से पाला पड़ा लेकिन कभी भी ऐसा अवसर नहीं आया जब महिला पत्रकार होने के नाते खुद पर शर्मिंदगी महसूस हुई हो। छह सितंबर को आई बाढ़ से हजारों लोग प्रभावित थे और मैं अकेली महिला पत्रकार थी जो वहां से रिपोर्टिंग कर रही थी। मेरा घर श्रीनगर के पहाड़ी क्षेत्र निशात में स्थित था जो बाढ़ से प्रत्यक्ष प्रभावित नहीं था। एक तरफ पत्रकारिता का जुनून, दूसरी तरफ परिवार की चिंता। मुझे खीज महसूस हो रही थी। 7 सितंबर को मैंने अंतिम रिपोर्ट अपने मुख्यालय तेहरान भेजा था। अगले पांच दिनों तक मैं यह सोचती रही कि क्या करूं।