भारतीय लोकतंत्र की अन्योन्याश्रित चार प्रमुख शक्तियां हैं- विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और मीडिया। लेकिन कई एक ताजा प्रसंग अब ये संदेश देने लगे हैं कि अभी तक सिर्फ राजनेता, अफसर और अपराधी ही ऐसा करते रहे हैं, अब भारतीय मीडिया भी डंके की चोट पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का मजाक बनाने लगा है। मजीठिया वेज बोर्ड से निर्धारित वेतनमान न देने पर अड़े मीडिया मालिकों को जब सुप्रीम कोर्ट ने अनुपालन का फैसला दिय़ा तो उसे कत्तई अनसुना कर दिया गया। इस समय मीडिया कर्मी अपने हक के लिए दोबारा सुप्रीम कोर्ट की शरण में हैं। इस पूरे मामले ने ये साफ कर दिया है कि भारतीय मीडिया को न्यायपालिका के आदेशों की परवाह नहीं है। इस तरह वह हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का खुला मखौल उड़ा रहा है। इतना ही नहीं, लोकतंत्र के चार स्तंभों में से एक होने के नाते उसकी यह धृष्टता भारतीय न्याय-व्यवस्था के प्रति आम आदमी की अनास्था को प्रोत्साहित भी करती है। मीडिया कर्मियों को मजीठिया वेतनमान देने की बजाए कई बड़े मीडिया घराने तो पुलिस की मदद से मीडिया कर्मियों का गुंडों की तरह उत्पीड़न करने लगे हैं। इसी दुस्साहस में वह सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक और आदेश को ठेंगा दिखाते हुए सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की फोटो छापने से भी बाज नहीं आ रहा है। भारतीय मीडिया (प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक दोनो) यह साबित करने की लगातार कुचेष्टा कर रहा है कि उसकी हैसियत देश के सर्वोच्च न्यायालय से ऊपर है।
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जनता और सरकार के बीच की कड़ी हैं पत्रकार, विश्वास न तोड़ें : आईपीएस तृप्ति भट्ट
ऋषिकेश : यहां 31 मई को नगरपालिका स्वर्ण जयंती सभागार में पत्रकारिता दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में आइपीएस तृप्ति भट्ट ने कहा कि मीडिया जनमत को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। इसलिए इस क्षेत्र में संवेदनशील होकर काम करने की जरूरत है।
साहब! मीडिया पैसे खा रहा, नेता देश को और जनता भूखे मर रही
वाराणसी : अभी कुछ दिन पहले केन्द्र सरकार के एक वर्ष पूरे हो गये और इस दौरान बीजेपी सरकार या कहें कि मोदी सरकार ने अपनी शेखी बघारने और अपने द्वारा एक वर्ष में पूरे किये गये कार्यों को जनता के सामने बताने के लिये खूब धन खर्च किया। यदि यही करोड़ों रूपये किसी जनपद पर खर्च कर दिये गये होते तो वह दुनिया का सबसे सुन्दर जनपद बन गया होता। मैं यह नहीं कहता कि सरकार को अपनी बातें लोगों के सामने नहीं बतानी चाहिए लेकिन क्या यह जरूरी है, अभी तक तो काम बोलता है कि बातें करने वाले नमो के कामों की बोलती बंद कैसे हो गयी।
Doordarshan join hands with NCERT; extends its archival content for educational DVDs
New Delhi : Doordarshan, the public service broadcaster of India, has tied-up with NCERT to share and disseminate its archival content in the form of educational DVDs.