रायपुर के सैलानियों, विष्‍णु खरे का पत्र पढ़ो और डूब मरो!

विष्णु खरे


((करीब चार दर्जन लाशों पर खड़े होकर छत्‍तीसगढ़ की भाजपा सरकार साहित्‍य का महोत्‍सव मना रही है और हमेशा की तरह हिंदी साहित्‍य और पत्रकारिता के कुछ चेहरे न सिर्फ लोकतांत्रिकता का दम भरते हुए वहां मौजूद हैं, बल्कि अशोक वाजपेयी की मानें तो वे वहां इसलिए मौजूद हैं क्‍योंकि ”साहित्‍य राजनीति का स्‍थायी प्रतिपक्ष है” (नई दुनिया)। खुद को ”प्रतिपक्ष” और ”प्रगतिशील” ठहराते हुए एक हत्‍यारी सरकार के मेले में शिरकत करने की हिंदी लेखकों की आखिर क्‍या मजबूरी हो सकती है, जबकि उनकी नाक के ठीक नीचे खुद को लेखक कहने वाला राज्‍य का भूतपूर्व प्रमुख दरोगा यह बयान तक दे देता है सबसे बड़ा समझदार अकेला वही है? ठीक वही कारण जिन्‍हें नज़रंदाज़ कर के बाकी लेखक रायपुर में मौजूद हैं, उन्‍हें गिनवाते हुए वरिष्‍ठ कवि विष्‍णु खरे इस आयोजन में बुलावे के बावजूद नहीं गए हैं। पत्रकार आवेश तिवारी ने विष्‍णु खरे की सरकार को लिखी चिट्ठी अपने फेसबुक की दीवार पर सरकारी सूत्रों के हवाले से साझा की है। नपुंसकता और पस्‍तहिम्‍मती के इस दौर में यह चिट्ठी हम सब के लिए एक आईने की तरह हैं। नीचे हम आवेश तिवारी के लिखे इंट्रो के साथ पूरी चिट्ठी छाप रहे हैं – अभिषेक श्रीवास्तव, मॉडरेटर, जनपथ))

आपने वामपंथी नारीवादी होते हुए ऐसे समारोह में शि‍रकत की, जो फासि‍स्‍टों का तो था ही, जि‍स पर मासूमों के खून के दाग लगे थे?

Rahul Pandey : प्रश्‍न- आप रायपुर साहि‍त्‍य महोत्‍सव में गई थीं?
उत्‍तर- तुमसे मतलब?
प्रश्‍न- प्‍लीज सवाल का जवाब दें, क्‍या आप वहां गई थीं?
उत्‍तर- जान ना पहचान, बड़ी बी सलाम? जवाब दे मेरी जूती।

रायपुर महोत्सव में शामिल वामंपथियों, महिलावादियों, प्रगतिशीलों को श्रीफल मिलेगा!

Vyalok Pathak : अवांतर प्रसंगः शर्म इनको क्यों कर नहीं आती? रायपुर में एक महोत्सव हो रहा है- साहित्य का। वहां की घोर सांप्रदायिक, जातिवादी, स्त्रीविरोधी, सलवा-जुडूम को शुरू करनेवाली, आम जन शोषक, आदिवासी-विरोधी आदि-इत्यादि भारतीय जनता पार्टी की सरकार के नेतृत्व में। अब इसमें भाग लेनेवाले नामचीनों पर गौर कीजिए। पहला नाम, माननीय पुरुषोत्तम अग्रवाल का है, जो अमूमन एंटरटेनमेंट चैनल पर अपना ढाका जैसा (भोजपुरी भाषी इसे समझ जाएंगे) मुंह खोलकर दक्षिणपंथ के खिलाफ विष-वमन करते रहते हैं। अब वहां जाकर श्रीफल लेंगे।