दैनिक जागरण लखनऊ, गोरा सांप और शेखर त्रिपाठी के दिन

Raghvendra Dubey  : शेखर! आप बहुत याद आएंगे… बहुत बाद में आत्मीय रिश्ते बने भी तो सेतु स्व. मनोज कुमार श्रीवास्तव थे। वही मनोज , अमर उजाला के विशेष संवाददाता। शेखर, दैनिक जागरण लखनऊ में, संभवतः 1995 तक मेरे समाचार संपादक थे। कार्यरूप में, कागज पर नहीं। पद उन दिनों स्थानीय संपादक विनोद शुक्ल के तात्कालिक तरंगित और भभकते मूड पर निर्भर था। कभी-कभी तो एक ही दिन, सुबह की 11 बजे वाली रिपोर्टर मीटिंग में किसी का पद कुछ और जिमखाना क्लब से शाम को लौट कर वह (विनोद शुक्ल) कुछ कर देते थे।

मालिक के तलुवे चाटने वाले आज के संपादकों को अगर किसी में स्पार्क दिख गया तो वे कसाई हो जायेंगे!

…जब संपादक राजेंद्र माथुर ने ब्यूरो चीफ पद पर तैनाती करते हुए रामशरण जोशी की तनख्वाह अपने से ज्यादा तय कर दी थी!

Raghvendra Dubey : एक स्टेट हेड (राज्य संपादक) की बहुत खिंचाई तो इसलिए नहीं करुंगा क्योंकि उन्होंने मुझे मौका दिया। अपने मन का लिखने-पढ़ने का। ऐसा इसलिए संभव हो सका क्योंकि मैंने उन्हें ‘अकबर’ कहना और प्रचारित करना शुरू किया जो नवरत्न पाल सकता था। उन पर जिल्ले इलाही होने का नशा चढ़ता गया और मैं अपनी वाली करता गया।

(मुगल बादशाहों ने अपने रुतबे के लिये यह संबोधन इज़ाद किया था)

अंग्रेजी अखबार के वो संपादक अपने सामने महिला पत्रकार को बिठाकर देर तक क्लीवेज निहारते थे!

पत्रकार और पत्रकारिता दोनों मरेगी… मोटाएगा मालिक… इसीलिये उसने निष्ठावान, आज्ञाकारी और मूढ़ संपादकों की नियुक्तियां की हैं!

Raghvendra Dubey : अपने नाम के आगे से जाति सूचक शब्द तो उन्होंने हटा लिया लेकिन, मोटी खाल में छिपा जनेऊ, जब-तब सही मौके पर दिख ही जाता है। सांस्कृतिक प्रिवलेज्ड वे, पूंजी के एजेंट हैं और दलाली में माहिर। उनकी जिंदगी का हर क्षण उत्सव है। शाम की तरंगित बैठकों में वे छत की ओर देख कर कहते हैं– …जिंदगी मुझ पर बहुत मेहरबान रही। मुझे जिंदगी से कोई शिकायत नहीं है।

मैं संपादक विनोद शुक्ल के लिए थोड़ी बेहतर नस्ल के कुत्ते से ज्यादा कुछ नहीं था : राघवेंद्र दुबे

Raghvendra Dubey : रामेश्वर पाण्डेय ‘काका’ की 10 जून की एक पोस्ट याद आयी। उन्होंने लिखा है– 1) मालिक ने कहा हम पर हमला हुआ है । अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है। हम मुट्ठियां ताने मैदान में। 2) मालिक ने कहा राष्ट्रविरोधी ताकतें सर उठा रही हैं। हम मुट्ठियां ताने मैदान में।