आकाशवाणी के दोहरे मापदंड एवं हठधर्मिता के चलते लंबे समय से काम रहे आकस्मिक उद्घोषकों का नियमितिकरण नहीं किया जा रहा है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट भी संविधान पीठ भी दस वर्षों या अधिक समय से कार्यरत संविदा कर्मियों की सेवाओं का नियमितिकरण एक मुश्त उपाय के तहत करने के निर्देश दे चुकी है। आकाशवाणी में आकस्मिक कलाकार/ कर्मचारी सन 1980 से अर्थात प्रसार भारती के लागू होने के वर्षों पहले से स्वीकृत एवं रिक्त पड़े पदों के स्थान पर आकस्मिक उद्घोषक/ कम्पीयर के रूप में काम कर रहे हैं।
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मजीठिया वेज बोर्ड के लिए भड़ास की जंग : लीगल नोटिस भेजने के बाद अब याचिका दायर
Yashwant Singh : पिछले कुछ हफ्तों से सांस लेने की फुर्सत नहीं. वजह. प्रिंट मीडिया के कर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से उनका हक दिलाने के लिए भड़ास की पहल पर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया में इनवाल्व होना. सैकड़ों साथियों ने गोपनीय और दर्जनों साथियों ने खुलकर मजीठिया वेज बोर्ड के लिए भड़ास के साथ सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला लिया है. सभी ने छह छह हजार रुपये जमा किए हैं. 31 जनवरी को दर्जनों पत्रकार साथी दिल्ली आए और एडवोकेट उमेश शर्मा के बाराखंभा रोड स्थित न्यू दिल्ली हाउस के चेंबर में उपस्थित होकर अपनी अपनी याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने के बाद लौट गए. इन साथियों के बीच आपस में परिचय हुआ और मजबूती से लड़ने का संकल्प लिया गया.
(भड़ास की पहल पर मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर शुरू हुई लड़ाई के तहत मीडिया हाउसों के मालिकों को लीगल नोटिस भेज दिया गया. दैनिक भास्कर के मालिकों को भेजे गए लीगल नोटिस का एक अंश यहां देख पढ़ सकते हैं)
‘फरिश्ता’ के लेखक ने फिल्म ‘पीके’ पर किया साहित्य चोरी का मुकदमा
‘‘मैंने 1 जनवरी, 2015 को पीके फिल्म देखी तो मैं हैरान हो गया। पीके फिल्म मेरे उपन्यास फरिश्ता की कट /कॉपी /पेस्ट है।’’ –कपिल ईसापुरी
अपने इन शब्दों में लेखक कपिल ईसापुरी काफी मर्माहत दिखते हैं। प्रेस कॉन्फेरेंस कर अपना दर्द बयान करते हैं। लेकिन मीडिया में एक कहावत बहुत प्रसिद्ध है- लिखता कोई है, दिखता कोई और है, बिकता कोई और है। इस कहावत का व्यावहारिक रूप प्रसिद्ध लेखक निर्देशक बी आर इसारा विविध भारती को दिए एक साक्षात्कार में इस प्रकार समझाते हैं- ‘‘कम चर्चित साहित्यकारों के साहित्य की चोरी फिल्मी दुनिया में खूब होती है। जब मैं फिल्मी दुनिया में आया था। मुझसे कम चर्चित उर्दू साहित्यकारों का साहित्य पढ़वाया जाता और उसको तोड-मरोड़ कर इस्तेमाल कर कर लिया जाता।’’