अपने उपर लगे आरोपों का कमाल खान ने दिया करारा जवाब

..मेरी पत्नी रुचि के पिता की पलामू में बॉक्साइट की दो बहुत बड़ी माइंस थी जिससे एल्युमीनियम बनता था और बिरला की एल्युमीनियम फैक्ट्री को सप्लाई होता था… जब उनके पिता बुजुर्ग हो गए तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि आपको अब इस उम्र में भागदौड़ नहीं करनी चाहिए इसलिए उन्होंने उनकी दोनों माइंस सरकार को सरेंडर करा दी.. अगर उनको यही चिरकुट टाइप बेईमानी करनी होती तो इसके बजाय वो अपने पिता की खानें चला कर उससे बहुत ज़्यादा पैसा कमा लेतीं… आपके तर्क के मुताबिक अगर पत्रकार को अच्छा वेतन पाना, खुशहाल होना या सम्पत्ति खरीदना अपराध है तो फिर पत्रकारों को मजीठिया वेतन आयोग की सिफारिश लागू करने के लिए संघर्ष नहीं करना चाहिए… क्योंकि इतना पैसा तो सभी मीडिया हाउस देते हैं कि पत्रकार झोला लटका के साइकिल पर घूम सके…

(कमाल खान के जवाब का एक अंश)

कमाल खान रियायती दरों पर दो-दो प्लाट का लाभ लेने के बाद भी बटलर पैलेस के सरकारी आवास पर कब्जा जमाए हुए हैं!

नैतिकता के चोले में रंगे सियार (पार्ट-एक) : नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार स्वयं कितने अनैतिक हैं इसका खुलासा ‘दृष्टान्त’ की पड़ताल में नजर आया। मीडिया के क्षेत्र से जुड़े मठाधीश अपने जूनियर पत्रकारों को तो इमानदारी से पत्रकारिता करने की सीख देते हैं, लेकिन वे स्वयं कितने बेईमान हैं, इसकी बानगी कुछ चुनिन्दा पत्रकारों के पन्ने खुलते ही नजर आ जाती है। खबरिया चैनल से लेकर अखबारों और मैगजीन से जुड़े पत्रकारों ने सरकार की चरण वन्दना कर जमकर अनैतिक लाभ उठाया। जानकर हैरत होगी कि कोई करोड़ों की लागत से आलीशान कार्यालय और बेशकीमती कारों का मालिक है तो किसी के पास अथाह जमीन-जायदाद। कोई फार्म हाउस का मालिक बना बैठा है तो किसी के पास कई-कई मकान हैं।

हे कमाल खान जी, संविधान में ‘दफा’ नहीं होती बल्कि अनुच्छेद यानि Article होता है

Chandan Srivastava : अभी कैंटीन में देखा एनडीटीवी चैनल पर आ रहा था कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव राज्यपाल से मिलने पहुंचे जिसके बारे में विस्तृत जानकारी चैनल के पत्रकार कमाल खान लाइव दे रहे थे। उन्होंने बताया कि मिलने की वजह हाईकोर्ट का कल का आदेश हो सकता है जिसमें कहा गया है कि प्रदेश में क्यों न “दफा 156” के तहत राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा कर दी जाए।