खबर को लेकर मेरी दो बार मुठभेड़ मुख्‍तार अंसारी से हो चुकी है

हम अपराधियों की हरकतों के खिलाफ युद्ध करें, उनके धंधे में भागीदारी क्‍यों

लखनऊ : यह कोई 13 साल पहले का हादसा है। मैं जौनपुर में हिन्‍दुस्‍तान अखबार का ब्‍यूरो प्रमुख था। खबर को लेकर दो बार मेरी मुठभेड़ मुख्‍तार अंसारी से हो गयी। एक बार एक ट्रैक्‍टर व्‍यवसायी आईबी सिंह के घर और दूसरी बार मोहम्‍मद हसन कालेज के प्रिंसिपल के यहां। तब मुख्‍तार अंसारी समाजवादी पार्टी के चहेते हुए करते थे। दोनों ही बार आयोजकों ने मुख्‍तार से मेरा परिचय कराया और मैंने सवाल पूछने शुरू किये।

हेमन्त तिवारी जैसों को नहीं पहचाना तो फिर अगला नम्बर आपका होगा

न खुद दलाली कीजिए और न दलालों को अपने आसपास फटकने दीजिए

लखनऊ : चाहे वह सीवान का काण्‍ड हो या फिर चतरा का, पत्रकारों की मौत के असल कारणों का खुलासा तो बाद में ही हो पायेगा, लेकिन अब तक इतिहास बताता है कि ऐसे मामलों में उन लोगों की खास भूमिका रहती है, जो खुद को पत्रकार कहलाते हैं और असल पत्रकार जाने-अनजाने उनके पाले में पहुंच कर अपनी बरबादी का सामान जुटा लेता है। कम से कम, चालीस साल का जिन्दा इतिहास तो मुझे खूब याद है, जिसमें किसी पत्रकार की मौत के कारणों में से एक रहे हैं जो ऐसे पत्रकारों के करीबी बन कर असल वारदात को अंजाम दिला देते हैं।

शशि शेखर ने पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर एक भावुक पीस लिख मारा और हो गई इतिश्री

Sandip Thakur : हिंदी का पत्रकार तो वैसे भी रोज तिल तिल कर मरता है…. घर का किस्त भरने में, बच्चों के स्कूल की फीस भरने में, बूढ़े मां-बाप के ईलाज में खर्च होने वाली रकम जुटाने में। पढ़ा लिखा होता है इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता। किसी हिंदी पत्रकार का घर जाकर देखिए कभी…वह भी छोटे जगहों पर काम करने वाले पत्रकार का। शशि शेखर ने सीवान के पत्रकार राजदेव रंजन की हत्या पर एक भावुक पीस लिख मारा…और हो गई इतिश्री।