बीईए जैसी संस्‍थाओं को अब भंग कर दिया जाना चाहिए

Abhishek Srivastava : 14 सितंबर को समाचार चैनलों पर दो दिलचस्‍प हेडलाइनें चल रही थीं। एक में बताया जा रहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस को गोवा के मसले पर ‘फटकार’ दिया है। संवैधानिक व्‍यवस्‍था कहती है कि राज्‍यपाल सबसे पहले सबसे बड़ी पार्टी को बुलाएगा सरकार बनाने के लिए। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस की याचिका पर उससे पूछा है कि उसने अपनी लिस्‍ट राज्‍यपाल को पहले क्‍यों नहीं दी। सब इसे सुप्रीम कोर्ट की ‘’डांट’ या ‘फटकार’ बताकर चला रहे थे। आजतक पर रिपोर्टर अहमद अज़ीम ने डांट-फटकार की कोई बात नहीं कही, लेकिन ऐंकर सईद लगातार ‘डांट-फटकार’ बोले जा रहे थे।

कहां हो बीईए वाले एनके सिंह? देखो न, तुम्हारे न्यूज चैनल गंध फैलाए हैं!

कहां हो एनके सिंह… बीईए यानि ब्राडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन के नेता… सकारात्मक सोच रखने वाले पत्रकार… कहां हो गुरु… देखो न तुम्हारे महान न्यूज चैनल किस ‘रचनात्मक’ खेल में बिजी हैं… क्या गंध फैलाए हैं.. हम कहेंगे लिखेंगे तो कहोगे कि आठ साल से झेल रहे हो भड़ास को… नकारात्मक भड़ास को झेल रहे हो… …

नहीं पहुंचे प्रमुख अतिथि, ‘जिया इंडिया’ मैग्जीन की लांचिंग फ्लॉप

रोहन जगदाले को अब समझ में आ रहा होगा कि मीडिया का क्षेत्र बाकी धंधों-बिजनेसों से अलग है और जो इसे धूर्तता, चालाकी, कपट, क्रूरता के साथ चलाना चाहता है उसे अंततः निराशा हाथ लगती है और करोड़ों गंवाकर हाथ जलाकर एक न एक दिन इस मीडिया क्षेत्र से बाहर निकलने को मजबूर हो जाना पड़ता है. यकीन न हो तो पर्ल ग्रुप के न्यूज चैनलों और मैग्जीनों का हाल देख लीजिए. पी7न्यूज, बिंदिया, मनी मंत्रा.. सबके सब इतिहास का हिस्सा बन गए. खरबों रुपये गंवाकर इसके मालिक को मीडिया से कुछ नहीं मिला. इसलिए क्योंकि मीडिया हाउस के शीर्ष पदों पर गलत लोगों को बिठाया गया और मीडिया हाउस खोलने का मकसद मूल कंपनी के छल-कपट को छिपाना-दबाना घोषित किया गया.