खुद को संजय गांधी की पुत्री बताने वाली प्रिया सिंह पॉल ने एक जमाने में बहुत सारे नामों को छोटे पर्दे पर चमकाया था!

Prabhat Ranjan : आजकल मीडिया में प्रिया सिंह पॉल का नाम चर्चा में है। 90 के दशक में जब भारत में निजी टीवी चैनलों का विस्तार हो रहा था तो उनका नाम जाना पहचाना था। जहां तक मुझे याद आता है वह ज़ी टीवी चैनल की प्रोग्रामिंग हेड भी थीं। न जाने कितने नामों को उन्होंने टीवी के पर्दे पर चमकाया। बाद में उस दौर में टीवी के सभी प्रमुख नामों के साथ उनका नाम भी गुम हो गया।

जाने-माने फिल्म पत्रकार और अपने किस्म के अदभुत इंसान ब्रजेश्वर मदान नहीं रहे

Prabhat Ranjan : अचानक बहुत दुखी और अकेला महसूस कर रहा हूँ. आज मैंने अचानक वेबसाईट जानकीपुल.कॉम पर एक कमेन्ट देखा. कमेन्ट कल शाम का था. बस एक लाइन लिखी थी- brajeshwar madan is no more! कमेन्ट आदित्य मदान का था, जो उनका भतीजा है. पढ़कर सन्न रह गया. हालाँकि बरसों से उनसे कोई संपर्क नहीं था. आखिरी बार जब उनसे बात हुई थी तो लकवे के कारण उनके मुंह से आवाज नहीं निकल पा रही थी. उनको उस तरह से बोलते देख मैं इतना डर गया कि मैंने फिर कभी उनसे बात करने की कोशिश भी नहीं की. लेकिन मन में यह संतोष था कि वे जीवित हैं. लेकिन इस कमेन्ट को पढने के बाद वह जाता रहा.

(ये तस्वीरें कई बरस पहले मदान साहब की बीमारी के बाद स्वास्थ्य लाभ की है.)

भाषा में भावप्रवणता लाने के लिए प्रेम पत्र लिखा करो!

Prabhat Ranjan : सीतामढ़ी में मैं जब पढता था तब आरम्भ में मुझे लेखन के लिए सबसे अधिक प्रेरित किया प्रोफ़ेसर मदन मोहन झा ने. वैसे तो वे राजनीतिविज्ञान के प्राध्यापक थे और महज 44 साल की उम्र में अत्यधिक शराबनोसी के कारण उनका देहांत हो गया. लेकिन मेरी आरंभिक साहित्यिक रुचियों पर उनका बहुत असर रहा. उन्होंने ही मुझे और मेरे दोस्त श्रीप्रकाश की साहित्य में गहरी रूचि को देखते हुए यह सलाह दी कि भाषा में भावप्रवणता लाने के लिए प्रेम पत्र लिखा करो.