वरिष्ठ पत्रकार और घुमक्कड़ अनिल यादव को ‘शब्द श्रेष्ट कृति सम्मान’ मिला, देखें तस्वीर

अमर उजाला, दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक जागरण जैसे अखबरों में दो दशक तक पत्रकारिता करने और आजकल फुल टाइम घुमक्कड़ी व लेखन करने वाले वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार अनिल यादव को श्रेष्ठ कृति सम्मान ‘शब्द’ दिया गया है. अमर उजाला फाउंडेशन की तरफ से शब्द सम्मान 2018 के तहत अनिल को यह सम्मान कथेतर कैटगरी में …

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक अनिल यादव को अमर उजाला देगा एक लाख रुपये का ‘छाप सम्मान’

Ram Janm Pathak : हम तुम्हें निकालेंगे, मगर जब तुम अपनी यश पताका फहरा दोगे तो हम तुम्हें नवाजेंगे। वे अनिल को पहले धक्के मारकर नौकरी से निकाल देंगे मगर जब वे अपनी प्रतिभा साबित कर चुके हैं तो सम्मानित भी करेंगे।

अनिल यादव की किताब ‘यह भी कोई देस है महराज’ का अंग्रेजी संस्करण छपा

Dinesh Shrinet : “पुरानी दिल्ली के भयानक गंदगी, बदबू और भीड़ से भरे प्लेटफार्म नंबर नौ पर खड़ी मटमैली ब्रह्मपुत्र मेल को देखकर एकबारगी लगा कि यह ट्रेन एक जमाने से इसी तरह खड़ी है। अब यह कभी नहीं चलेगी। अंधेरे डिब्बों की टूटी खिड़कियों पर पर उल्टी से बनी धारियां झिलमिला रही थीं जो सूखकर पपड़ी हो गई थीं। रेलवे ट्रैक पर नेवले और बिल्ली के बीच के आकार के चूहे बेख़ौफ घूम रहे थे। 29 नवंबर, 2000 की उस रात भी शरीर के खुले हिस्से मच्छरों के डंक से चुनचुना रहे थे। इस ट्रेन को देखकर सहज निष्कर्ष चला आता था – चुंकि वह देश के सबसे रहस्यमय और उपेक्षित हिस्से की ओर जा रही थी इसलिए अंधेरे में उदास खड़ी थी।”

हिन्दी के चर्चित और चहेते गद्यकार अनिल यादव की नई किताब ‘सोनम गुप्ता बेवफा नहीं है’ बाजार में आई

Siddharth Kalhans : पहली बार किसी ने दस रुपये के नोट पर लिखा होगा, सोनम गुप्ता बेवफा है, तब क्या घटित हुआ होगा? क्या नियति से आशिक, मिज़ाज से अविष्कारक कोई लड़का ठुकराया गया होगा, उसने डंक से तिलमिलाते हुए सोनम गुप्ता को बदनाम करने की गरज से उसे सरेबाजार ला दिया होगा? या वह सिर्फ फरियाद करना चाहता था, किसी और से कर लेना लेकिन सोनम से दिल न लागाना।

अनिल यादव

तभी सोनम गुप्ता प्रकट होती है…

Anil Kumar Yadav : पहली बार किसी ने दस रूपए के नोट पर लिखा होगा, सोनम गुप्ता बेवफा है, तब क्या घटित हुआ होगा? क्या नियति से आशिक, मिजाज से आविष्कारक कोई लड़का ठुकराया गया होगा, उसने डंक से तिलमिलाते हुए सोनम को बदनाम करने की गरज से उसे सरेबाजार ला दिया होगा. या वह सिर्फ फरियाद करना चाहता था, किसी और से कर लेना लेकिन इस सोनम से दिल न लगाना.

सहारा के कर्मचारी अपने मालिकों के सब कुछ समेटने, बांधने और भागने की योजनाओं के क़िस्से सुनते-सुनाते दिन काट रहे हैं!

(अनिल यादव, वरिष्ठ पत्रकार)

अपने चढ़ते दिनों में नई योजनाएं शुरू करते वक़्त सहारा इंडिया के संस्थापक चेयरमैन सुब्रत रॉय सहारा की टाइमिंग अचूक हुआ करती थी. लेकिन कामयाबी के नुस्ख़े बताने वाली अपनी ताज़ा किताब “लाइफ़ मंत्रा” के मामले में वक़्त का ख़्याल नहीं रखा गया है. हताशा में इस तथ्य की भी परवाह नहीं की गई है कि उस किताब से कौन प्रेरित होना चाहेगा, जिसका लेखक ग़रीब निवेशकों से धोखाधड़ी के आरोपों में दो साल से जेल में है?. ज़मानत की बड़ी रक़म का इंतज़ाम करने में हलकान कंपनी में कर्मचारियों को वेतन के लाले पड़े हुए हैं. हमेशा विश्वस्त समझे जाने वाले व्यापारिक साझेदार और राजनेता पल्ला झाड़ चुके हैं. ऐसे में किताब की जानकारी रखने वाले साधारण पाठकों के मुंह से “ख़ुद मियां फ़ज़ीहत, औरों को नसीहत” कहावत सुनाई दे रही है.