Oppose attempts at reducing the status of National languages to local languages

On the occasion of International Mother languages Day, today, we announce the inauguration of Bharatiya Bhasha Samooh and declare our intention to make people aware of the imminent threat to their languages. We will resist and expose every attempt  to downgrade Indian languages.

डीडी न्यूज सिर्फ हिंदी खबरों का चैनल होगा, अंग्रेजी की होगी छुट्टी!

खबर आ रही है कि डीडी न्यूज से अंग्रेजी की छुट्टी होगी. यह चैनल सिर्फ हिंदी खबरें दिखाएगा. डीडी न्यूज को चौबीसों घंटे का हिंदी न्यूज चैनल बनाकर रीलांच करने की तैयारी चल रही है. बाद में एक नया चैनल अंग्रेजी खबरों का लांच किया जाएगा. अभी डीडी न्यूज में हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में खबरें आती हैं.

संस्कृत भाषा जीवित है, उसे कोई मार नहीं सकता

भाई, संस्कृत भाषा मर नहीं सकती। अब यह मत सोचिए कि मैं ब्राह्मण हूं क्या? नहीं भाई मैं ब्राह्मण नहीं हूं। लेकिन ब्राह्मण होता तो भी यही लिखता जो अभी लिख रहा हूं। और भाई ब्राह्मणों ने किसी भाषा की हत्या नहीं की। किसी भी जाति विशेष पर हमें कोई टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। अब आइए संस्कृत के अस्तित्व की बात पर। करोड़ो लोग प्रतिदिन  भगवत् गीता का पाठ करते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। महामृत्युंजय जाप करते हैं। रोज, बिना किसी नागा के। अन्य पुस्तकों का सस्वर पाठ करते हैं पूजा के वक्त। और वे जो पाठ करते हैं, उसका अर्थ भी जानते हैं। भगवान शिव की दिव्य स्तुति-

नमामीशमीशान निर्वाणरूपं। विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदस्वरूपं।।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं। चिदाकाशमाकाशवासं भजेहं।।

मैं जर्मन भाषा और साहित्य से गत 44 वर्षों से जुड़ा हूं… मैं अंदर की कुछ जानकारी रखता हूं…

: हिंदी समेत भारतीय भाषाओँ को दबा कर कुछ जर्मनभाषी सांस्कृतिक दूत अंग्रेजी को भारत की मुख्य भाषा बनाने में जुटे : मित्रों, मैं जर्मन भाषा और साहित्य से गत 44 वर्षों से जुड़ा हूँ. पंजाब यूनिवेर्सिटी में, इंग्लिश एंड फोरेन लैंगुएज यूनीवर्सिटी में जर्मन भाषा, साहित्य तथा अनुवाद विज्ञानं तथा अनुवाद की शिक्षा 32 वर्ष दी है. भारत में हिंदी को नुकसान पहुँचाने तथा अंग्रेज़ी तथा अन्य कई भाषाओँ का वर्चस्व स्थापित करने की जो तैयारियां कुछ वर्षों से चल रही थीं, उसके बारे में अंदर की कुछ जानकारी रखता हूँ. भारत के संविधान को धता बताने में हम केवल जर्मनों को ही दोष नहीं दे सकते, उनको उकसाने वाले आपराधिक प्रवृति के कुछ भारतीय हैं. यह एक संतोष का विषय है कि अब हमारे पास एक ऐसी सरकार है, जो किसी भी दबाव के आगे घुटने नहीं टेकती, लेकिन यह आवश्यक है कि हम अपने कुछ अंग्रेजीदां बुद्धिजीवियों के प्रति भी सतर्क रहें, ताकि ऐसी स्थिति फिर न बने. पृष्ठभूमि का कुछ थोड़ा सा विवरण इस प्रकार है:

संस्कृत एक मर चुकी भाषा है… ब्राह्मणों ने सैकड़ों बरसों में बड़े जतन से इसकी हत्या की है…

Navin Kumar : संस्कृत एक मर चुकी भाषा है। ब्राह्मणों ने सैकड़ों बरसों में बड़े जतन से इसकी हत्या की है। अब इसे ज़िंदा नहीं किया जा सकता। सिर्फ संस्कृत के दम पर मूर्ख ब्राह्मण सदियों बाकी दुनिया से अपनी चरण वंदना करवाते रहे हैं। जब बाकियों ने इसे खारिज कर दिया तो दर्द से बिलबिला उठे हैं, क्योंकि अब वो अपनी मक्कारियों को सिर्फ एक भाषा के दम पर ढक नहीं पा रहे हैं। अब गया वो जमाना जब वेद सुन लेने पर बिरहमन दलितों के कान में शीशा पिघलाकर डाल देते थे। टीक और टीकाधारी पूजापाठियों का ज़माना लद चुका है। अपनी जाहिली पर रोना-धोना बंद कीजिए। इसे बच्चों पर जबरन थोपना एक ऐसा अपराध है जिसे वो बड़े होने के बाद हरगिज माफ नहीं करेंगे। स्मृति ईरानी जनता की गाढ़ी कमाई पंडितों को खुश करने में लुटा रही हैं।

हिन्दी अंग्रेजी का स्थान ले तो मुझे अच्छा लगेगा, अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है लेकिन वह राष्ट्रभाषा नहीं हो सकती: महात्मा गांधी

महात्मा गांधी के सपनों के भारत में एक सपना राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी को प्रतिष्ठित करने का भी था। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रभाषा के बिना कोई भी राष्ट्र गूँगा हो जाता है। हिन्दी को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में एक राजनीतिक शख्सियत के रूप में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। महात्मा गांधी की मातृभाषा गुजराती थी और उन्हें अंग्रेजी भाषा का उच्चकोटि का ज्ञान था किंतु सभी भारतीय भाषाओं के प्रति उनके मन में विशिष्ट सम्मान भावना थी। प्रत्येक व्यक्ति अपनी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करे, उसमें कार्य करे किंतु देश में सर्वाधिक बोली जाने वाली हिन्दी भाषा भी वह सीखे, यह उनकी हार्दिक इच्छा थी।