Anil Sinha : शनिवार की शाम उदासी में गुजरी। प्रेस क्लब गया था, चैनलों और अखबारों में चल रही छंटनी पर आयोजित सभा में भाग लेने। देख कर उदास हो गया कि मीडियाकर्मियों पर बेचारगी पूरी तरह हावी है। जयशंकर गुप्ता और उर्मिलेश जैसे वरिष्ठ साथियों ने संघर्ष और एकता के कुछ अच्छे तरीके जरूर बताए। सवाल यह है कि पत्रकारों की इस हालत के लिए क्या सिर्फ मीडिया संस्थान दोषी हैं? वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था के साथ उपभोक्तावाद ने पत्रकारों को इस तरह मोहित कर लिया कि वे भी बारात में बाजा बजाने लगे।