लाखों पाने वाले संपादकों और वरिष्ठ पत्रकारों ने अपनी तनख्वाह कम कर साथियों की नौकरी नहीं बचाई

Anil Sinha : शनिवार की शाम उदासी में गुजरी। प्रेस क्लब गया था, चैनलों और अखबारों में चल रही छंटनी पर आयोजित सभा में भाग लेने। देख कर उदास हो गया कि मीडियाकर्मियों पर बेचारगी पूरी तरह हावी है। जयशंकर गुप्ता और उर्मिलेश जैसे वरिष्ठ साथियों ने संघर्ष और एकता के कुछ अच्छे तरीके जरूर बताए। सवाल यह है कि पत्रकारों की इस हालत के लिए क्या सिर्फ मीडिया संस्थान दोषी हैं? वैश्वीकरण की अर्थव्यवस्था के साथ उपभोक्तावाद ने पत्रकारों को इस तरह मोहित कर लिया कि वे भी बारात में बाजा बजाने लगे।

रवीश कुमार प्राइम टाइम में देश को बताएंगे कि प्रणय राय एनडीटीवी से इतने सारे लोगों को एक साथ क्यों निकाल रहे हैं?

Manish Thakur : स्क्रीन काला नहीं कर सकते, मुंह पर कालिख पोत विरोध तो कीजिए! पत्रकारिता के नाम पर विचारधारा की दुकान चलाने का धंधा करने वाले प्रणय राय अब अपने वफादारों को नौकरी से निकाल कर सड़क पर धकेल रहे हैं। एनडीटीवी से निकाले गए लोगों के पास जीवकोपार्जन की कोई समस्या नहीं होगी यह पत्रकारिता का हर अदना सा व्यक्ति जानता है। वह इसलिए कि बिना टीआरपी वाले इस चैनल के मालिक प्रणय राय ने हवाला और मनीलान्ड्रिंग की कमाई से अपने कर्मयोगियों को दो दशक से ज्यादा वक्त से मोटी सैलरी और तमाम साधनों से इतना संपन्न रखा कि भगवान की दया से उन्हें इस जनम कोई दिक्कत नहीं।

नदीम को हटाए जाने की सूचना पर मीडियाकर्मियों में एनडीटीवी के खिलाफ गुस्सा फैला

Yashwant Singh : कंपनियों का कोई सगा नहीं होता. भाई Nadeem Ahmad Kazmi को एनडीटीवी से कार्यमुक्त किए जाने की सूचना है. यह दुखद घटनाक्रम है. एनडीटीवी के लिए सड़क से लेकर सोशल मीडिया और प्रेस क्लब आफ इंडिया तक में संघर्ष करने वाले नदीम के साथ उनका संस्थान ऐसा सुलूक करेगा, यह नदीम के विरोधियों को भी अंदाजा न रहा होगा. जाने कौन लोग हैं जो इन दिनों प्रणय राय के सलाहकार बने हुए हैं और पैर पर कुल्हाड़ी मारने टाइप सलाह दे रहे हैं.

एनडीटीवी से हटाए जाने वाले मीडियाकर्मियों की संख्या 100 के पार हो गई

एक बड़े मीडिया संस्थान में मीडियाकर्मियों की छंटनी की जा रही है और पूरा मीडिया जगत चुप्पी साधे है. खासकर वो लोग भी जो दूसरों जगहों पर छंटनी या बंदी के सवालों पर मुखर होकर अपने यहां स्क्रीन काली कर प्राइम टाइम दिखाते थे. एनडीटीवी के लोग इस छंटनी के पक्ष में भांति भांति के तर्क दे रहे हैं लेकिन सवाल यही है कि क्या दूसरों को नसीहत देने वालों को अपना घर ठीक-दुरुस्त रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए.