कादंबिनी के पत्रकार संत समीर को तीस बरस जीना था, अब छियालीस पार कर लिए!

Sant Sameer : तो आज मेरी ज़िन्दगी ने भी उम्र के छियालीस पड़ाव पार कर लिए। यह भी कमाल ही है। एक वक़्त था कि डॉक्टरी अनुमानों के हिसाब से मुझे तीस बरस के आसपास की ज़िन्दगी जीनी थी, पर ये अतिरिक्त सोलह बरस किसी तोहफ़े से कहाँ कम हैं! मेरी कम्पनी ने दिया हो न दिया हो, लेकिन ज़िन्दगी ने भरपूर बोनस दिया है। कहने वाले कह सकते हैं, तक़दीर का फ़साना। क़िस्मत में जीना बदा हो तो डॉक्टरों के फ़तवे किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते; लेकिन दोस्तो! ज्योतिष के पण्डितों ने जो कहा, मैंने अकसर उसका उल्टा किया।

‘द जंगल बुक’ वाले रुडयार्ड किपलिंग तब दी पॉयोनियर इलाहाबाद में असिस्टेण्ट एडिटर थे

Sant Sameer : रुडयार्ड किपलिंग की मशहूर रचना ‘द जंगल बुक’ पर बनी बहुप्रतीक्षित फ़िल्म आज रिलीज हो रही है। बनी कैसी है, यह तो देखने के बाद पता चलेगा, पर इस रिलीज ने रुडयार्ड किपलिंग की याद ज़रूर दिला दी। किपलिंग सन् 1888 और 1889 के दो बरस इलाहाबाद में भी रहे थे। तब वे पॉयोनियर अख़बार में असिस्टेण्ट एडिटर थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सामने ही उनका बंगला था और पास में ही अख़बार का दफ़्तर।

कालिया जी धुर काँग्रेसी थे और मेरी छवि काँग्रेस विरोधी की थी

Sant Sameer : भारतीय ज्ञानपीठ के पूर्व निदेशक और एक विशाल पाठक वर्ग के चहेते साहित्यकार रवीन्द्र कालिया जी के देहावसान के कई दिन बाद आज जाकर यह मानसिकता बना पा रहा हूँ कि बतौर श्रद्धांजलि उनकी याद में अपने दिल की कुछ बातें बयान करूँ। असल में, मेरी भी मानसिक बनावट कुछ अजीब सी है। परिचितों का दायरा तो सबका ही आमतौर पर बहुत बड़ा होता है, पर नज़दीकी रिश्ते कम ही लोगों से बन पाते हैं।