संतोष भारतीय के नेतृत्व में फिर बंद हो गया ‘चौथी दुनिया’ अखबार!

एक जमाने का चर्चित अखबार चौथी दुनिया कुछ वर्षों पहले जब दुबारा चालू हुआ तो ढेर सारे लोग प्रसन्न हुए. संतोष भारतीय को इस अखबार की कमान सौंपी गई जो कभी शुरुआती दौर के चौथी दुनिया के भी संपादक थे. पर लोगों ने जो आशंका जताई थी, वही हुआ. सेकेंड राउंड में शुरू हुआ चौथी …

चौथी दुनिया प्रबंधन और नोएडा पुलिस के लोग हक के लिए लड़ रहे एक पत्रकार को धमका रहे (सुनिए टेप)

चौथी दुनिया की स्थिति बदतर होती जा रही है। कर्मचारियों को समय से वेतन नहीं दिया जाता है। किसी भी समय किसी भी पत्रकार को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। बिना किसी नोटिस। दैनिक कर्मचारियों की तरह पत्रकार को एक दिन के भीतर हटा दिया जाता है और उसे उसी दिन तक का वेतन दिया जाता है, जिस दिन उसे हटाया गया है। उस उस महीने का भी पूरा वेतन नहीं दिया जाता जिस महीने में उसे हटाया गया है। कुछ दिनों पहले ऐसा ही एक पत्रकार के साथ किया गया।

चौथी दुनिया के प्रधान संपादक संतोष भारतीय ने अपने फोटोग्राफर की 15 दिन में ही कर दी छुट्टी

चौथी दुनिया साप्ताहिक अखबार में कर्मचारियों को डर के साये में काम करना पड़ रहा है। उन्हें पता नहीं है कि कौन-सा दिन उनका आखिरी दिन हो जाए। अखबार के संपादक संतोष भारतीय की जुबान पर हमेशा दो वाक्य रहते हैं, पहला- ”डफर कहीं का”। दूसरा- ”अगर ऐसा नहीं करोगे तो बाहर का रास्ता खुला है”। वहां काम करने के लिए काम आने से अधिक जरूरत संतोष भारतीय को खुश करना हो गया है।

टीवी संपादक प्रसून शुक्ला ने कश्मीर मामले पर पीएम को लिखे संतोष भारतीय के पत्र का यूं दिया जवाब

प्रधानमंत्री जी,

जम्मू-कश्मीर की सैर पर गये चंद संपादक और बुद्धिजीवी यह साबित करने पर तुले हैं कि मसला पाकिस्तान नहीं बल्कि कश्मीर है. इतिहास और भूगोल की सलाह देने वाले कथित स्टोरी राइटर्स से आपको इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं करनी चाहिए. भारत का इतिहास साक्षी है कि यह धरती केवल चंद्रगुप्त मौर्य, साम्राट अशोक, पृथ्वीराज चौहान जैसे वीरों की ही जननी नहीं रही बल्कि जयचंद जैसे कंलक भी इसी की कोख से जन्म लेते रहे हैं. मोदी जी, जनता को शुरू से मालूम है कि आप नेहरू नहीं हैं, गांधी भी नहीं हैं. इसीलिए ही जनता ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री चुना है. आपको करोड़ों-करोड़ लोगों ने जाति-धर्म बंधन को तोड़कर जन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए चुना है. इसीलिए आपकी एक भी गलती की माफी नहीं होगी. आप आकांक्षाओं के पहाड़ के नीचे हैं. लेकिन इससे आप मुकर नहीं सकते.

मीडिया की भाषा और मीडिया की साख : ‘सुभाष चंद्रा गाली-गलौज कर रहा है’ बनाम ‘नवीन जिंदल अपराधी है’

अब सार्वजनिक जीवन में भाषा की मर्यादा का कोई मतलब ही नहीं रहा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार अभियान में जिस भाषा-शैली का इस्तेमाल किया, वैसी भाषा-शैली का इस्तेमाल इससे पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं किया. खासकर, राजनीति में अपने साथियों के चुनाव क्षेत्र में भले ही वे किसी भी पार्टी के राजनेता रहे हों, इस तरह की भाषा-शैली का इस्तेमाल पहले किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया.हमें यह मानना चाहिए कि केंद्र में नई सत्ता के आने के बाद नई भाषा और नई शब्दावली का भी अभ्यस्त हो जाना पड़ेगा.