जीवन भर धार्मिक आडंबरों के खिलाफ बोलने वाले निदा फाजली को मरने के बाद मुसलमानों ने बुरी तरह घेर लिया

सारा घर ले गया घर छोड़ के जानेवाला

-रासबिहारी पाण्डेय-

इस छोटे से जीवन में जिन बड़े कवि शायरों के साथ कुछ खुशनुमा शामें गुजरी हैं और कवि सम्मेलन मुशायरों में शिरकत करने का मौका मिला है ,उनमें एक नाम निदा फ़ाज़ली का भी है.पिछले 8 फरवरी को जब निदा फ़ाज़ली नहीं रहे तो वे सारी यादें एकबारगी चलचित्र की तरह आँखों के सामने घूम गयीं .उनके इंतकाल के बाद उन्हें सुपुर्दे खाक किये जाने तक छह सात घंटे उनके घर और उनके घर से चंद कदम दूर यारी रोड स्थित कब्रिस्तान और मस्जिद में गुजारने के दौरान कुछ उन दोस्तों के साथ भी अरसे बाद मिलने का मौका मिला जो अब या तो किसी की मैयत में मिलते हैं या किसी मुशायरे में . मुंबई की एक खुली सच्चाई यह भी है कि लोग अपनी जरूरतों से कुछ इस तरह बावस्ता हैं कि जिसे दिल से चाहते हैं उसे ज्यादे वक्त नहीं दे पाते, जिसे दिमाग से चाहते हैं उसे ज्यादे वक्त देना पड़ता है.

एयर होस्टेस पहचान गई और पूछा- ‘आप निदा साहब हैं न” तो उनका जवाब था- ”पहले मुझे चॉकलेट लेने दो”

10 दिसंबर 2005 की घटना है। उन दिनों मैं स्टार न्यूज में कार्यरत था। मुंबई के जुहू तारा रोड स्थित रोटरी सेंटर में एक कार्यक्रम की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं। इस कार्यक्रम में निदा फाजली की किताब का विमोचन था। मुझे अखिल भारतीय अमृत लाल नागर पुरस्कार का प्रथम पुरस्कार मिलना था। सभी गेस्ट के आदर सत्कार की जिम्मेदारी भी मेरी थी।

निदा साहब के साथ मुहब्बत के जाम और आखिरी शाम

सन 2010 की सर्द शाम की बात है। उस दिन ग्वालियर व्यापार मेल में मुशायरे होना था।मुशायर के लिए ही निदा फ़ाज़ली शहर में थे।हमेशा उनके साथ चाय या कुछ और पीना तय रहता था। मैं उन दिनों नईदुनिया में सम्पादक था।मुशायरा सुनने जाना ही था सो दफ्तर से निकलने की तैयारी में था। अचानक देखता क्या हूँ कि मेरे अज़ीज़ दोस्त और शायर मदनमोहन ‘दानिश’ के साथ निदा फ़ाज़ली साहब दफ्तर में मेरे सामने हैं। अपनी वही जानी पहचानी मुस्कराहट के साथ। उफ़ क्या सादगी थी निदा साहब में।

यशवंत ने निदा फ़ाज़ली को कुछ इस तरह दी श्रद्धांजलि (देखें वीडियो)

Yashwant Singh : निदा फ़ाज़ली साहब के न रहने पर उनकी वो नज़्म याद आती है जिसे उन्होंने अपने पिता के गुजर जाने पर लिखा था… ”तुम्हारी कब्र पर मैं, फ़ातेहा पढ़ने नहीं आया, मुझे मालूम था, तुम मर नहीं सकते.” इस नज़्म को आज पढ़ते हुए खुद को मोबाइल से रिकार्ड किया. इसी नज़्म की ये दो लाइनें:

तुम्हारी मौत की सच्ची खबर, जिसने उड़ाई थी, वो झूठा था,
वो तुम कब थे? कोई सूखा हुआ पत्ता, हवा मे गिर के टूटा था।

तीसरे रीटेक में निदा फ़ाज़ली बिफर गए और कुर्सी से उठते हुए चिड़चिड़ाकर बोले- मैं नहीं करता…

Abhishek Srivastava : शायद 2011 की गर्मी का मौसम था जब निदा फ़ाज़ली को रिकॉर्ड करने मैं करोलबाग के एक होटल में पहुंचा था। साथ में कैमरामैन नेगीजी थे। हम लोग कमरे में पहुंचे, तो बनियान में एक शख्‍स बिस्‍तर पर बेतरतीब लेटा हुआ था। उसके गले में सोने का एक मोटा सा सिक्‍कड़ लटक रहा था। नीचे पाजामे का नाड़ा झूल रहा था। जब देह ऊपर उठी, तो दोनों के बीच थोड़ा अस्‍त-व्‍यस्‍त, थोड़ा अचकचाए, अन्‍यमनस्‍क से निदा फ़ाज़ली बरामद हुए। बेहद संतुलित मुस्‍कराहट के साथ उन्‍होंने हमसे लाउंज में इंतज़ार करने को कहा। उतनी देर में नेगीजी ने गमले के पास कुर्सी रखकर फ्रेम बना लिया।

अब हिन्दू भी खतरे में है, हर आजादी पहरे में है : निदा फाज़ली

ग्वालियर। प्रख्यात शायर एवं फिल्मी गीतकार निदा फाज़ली देश के वर्तमान हालात पर व्यथित और चिंतित हैं। उनका कहना है कि आज देश के हालात ऐसे हो गए हैं कि यहां ‘अब हिन्दू भी खतरे में है, हर आजादी पहरे में है। असहिष्णुता के मुद्दे पर पूरे देश में हंगामा मचने की बात पर वे कहते हैं कि देश के हालात पहले भी खराब रहे हैं, लेकिन पहले खराब करने वालों को डर रहता था, उन्हें दण्डित किए जाने का, लेकिन अब डर नहीं रहा, यही बात ज्यादा चिंता जनक है।