हमें यह साझा करते हुए खुशी हो रही है कि हिंदी के महत्वपूर्ण कवि वीरेन डंगवाल की संपूर्ण कविताओं का संकलन ‘कविता वीरेन’ प्रेस में है और आगामी 20 जून से यह बिक्री के लिए उपलब्ध हो जाएगा. इस संकलन की लम्बी भूमिका वीरेन जी के मित्र और हिंदी के महत्वपूर्ण कवि मंगलेश डबराल ने …
Tag: viren
शीघ्र प्रकाश्य ‘कविता वीरेन’ में मंगलेश डबराल की भूमिका पढ़िए
‘कविता वीरेन’ में मंगलेश डबराल की भूमिका…. ‘इन्हीं सड़कों से चल कर आते हैं आततायी/ इन्हीं सड़कों से चल कर आयेंगे अपने भी जन।’ वीरेन डंगवाल ‘अपने जन’ के, इस महादेश के साधारण मनुष्य के कवि हैं। वे उन दूसरे प्राणियों और जड़-जंगम वस्तुओं के कवि भी हैं जो हमें रोज़मर्रा के जीवन में अक्सर …
वीरेन डंगवाल – ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’
-मनोज कुमार सिंह-
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व पत्रकार वीरेन डंगवाल की स्मृति में उनकी कर्मस्थली बरेली में उन्हें याद करने के लिए देश भर से लेखक व संस्कृतिकर्मी 20 व 21 फरवरी को जुटे। ‘रहूंगा भीतर नमी की तरह’ – यह काव्य पंक्ति है वीरेन की कविता का और इस आयोजन का नाम भी यही था। दो दिवसीय कार्यक्रम का आयोजन जन संस्कृति मंच और वीरेन डंगवाल स्मृति आयोजन समिति की ओर से बरेली कॉलेज सभागार में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत कवि वीरेन डंगवाल के व्यक्तित्त्व और कविताओं पर केन्द्रित एक पुस्तक ‘रहूँगा भीतर नमी की तरह’् के विमोचन से हुआ जिसे जसम उत्तर प्रदेश के सचिव युवा आलोचक प्रेमशंकर ने संपादित किया है।
वीरेन डंगवाल स्मरण : वीरेन कविता को इतना पवित्र मानता है कि अक्सर उसे लिखता ही नहीं है…
Pankaj Chaturvedi : उत्सवधर्मिता तुम्हें रास नहीं आती थी। तुम अपनी डायरी के पहले पन्ने पर ‘धम्मपद’ में संरक्षित बुद्ध का यह वचन लिखते थे : ”को नु हासो किमानन्दो, निच्चं पज्जलिते सति”—-यानी कैसी हँसी, कैसा आनन्द, जब सब कुछ निरन्तर जल रहा है। इसलिए जो तुम्हारा मस्ती-भरा अंदाज़ दिखता था, वह तुम थे नहीं! वह एक आवरण था, जिसमें तुम अपने अंतस की आभा छिपाये थे। जैसा कि ‘प्रसाद’ कहते हैं—-”एक परदा यह झीना नील छिपाये है जिसमें सुख गात।” असद ज़ैदी ने ठीक लिखा है कि उनकी नहूसत और तुम्हारी चपलता दरअसल एक ही धातु से निर्मित थी।
न्यायपूर्ण आक्रामकता की कविता है ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ : वीरेन डंगवाल
नई दिल्ली : अजय सिंह की कविताएं भारतीय लोकतंत्र की विफलता को पूरी शिद्दत से प्रतिबिंबित करती हैं। उनकी कविताओं का मूल स्वर स्त्री, अल्पसंख्यक और दलित है। सांप्रदायिकता से तीव्र घृणा उनकी कविताओं में मुखर होती है। अजय सिंह की कविताओं में दुख है लेकिन बेचारगी नहीं। जूझने की कविता है अजय की कविता। यह बातें शनिवार को वरिष्ठ कवि, पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक अजय सिंह के पहले कविता संग्रह ‘राष्ट्रपति भवन में सूअर’ पर चर्चा के दौरान सामने आईं। गुलमोहर किताब द्वारा दिल्ली के हिंदी भवन में आयोजित इस कार्यक्रम में कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक, चित्रकार, प्राध्यापक व तमाम विधाओं के वरिष्ठ लोगों ने शिरकत की।