जन संस्कृति मंच ने हिंदी के अनूठे कवि Virendra Dangwal यानि वीरेनदा की उपस्थिति में एक आत्मीय आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते Asad Zaidi ने सबसे पहले Mangalesh Dabral को याद किया, जो अब धीरे-धीरे स्वस्थ हो रहे हैं और जिनके बिना यह आयोजन अधूरा लग रहा था। फिर Uday Prakash को याद किया और कहा कि जब हम उदय की तरफ़ से पूरी तरह निराश हो चुके थे, उसने इस भयानक समय में, साहित्य अकादेमी पुरस्कार लौटाकर हम सबको ख़ुश कर दिया।
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संस्थाओं का सृजन हो तो उसका विसर्जन भी हो : अनुपम मिश्र
नई दिल्ली । पर्यावरणविद् और ‘गांधी मार्ग’ के संपादक अनुपम मिश्र ने कहा है कि जरूरत पड़ने पर सामाजिक या गैर सरकारी संस्थाओं का सृजन जरूर करना चाहिए लेकिन एक समय आने पर हमें इसके विसर्जन के बारे में भी सोचना चाहिए। ठीक वैसे ही जैसे टांग टूटने पर पलास्टर लगाया जाता है, लेकिन उसके ठीक होने के बाद हम पलास्टर हटा देते हैं। मिश्र सेंटर फॉर डेवलपिंग सोसायटी की साऊथ एशियन डायलॉग आॅन इकोलाजिकल डेमोक्रेसी योजना के तहत इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित दो दिन की राष्ट्रीय कार्यशाला के आखिरी दिन एक विशेष सत्र को संबोधित कर रहे थे। इस विशेष सत्र के व्याख्यान का विषय ‘संस्था, समाज और कार्यकर्ता का स्वधर्म’ था। कार्यशाला में देश के विभिन्न राज्यों सहित पड़ोसी देशों में सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भाग ले रहे थे।
कृपलानी ने सिद्धांतों की खातिर 57वें कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया था
हमारे देश में राज्य श्रेष्ठ मान लिया जाता है, समाज दोयम। शायद यही कारण है कि राजपुरुष प्रधान हो जाते हैं और समाज का पहरुआ गौण। जी हाँ, इस देश में अगर ‘राज्य-समाज समभाव’ दृष्टिकोण अपनाया गया होता तो आज आचार्य जीवतराम भगवानदास कृपलानी उतने ही लोकप्रिय और प्रासंगिक होते जितने कि सत्ता शीर्ष पर बैठे लोग। वह व्यक्ति खरा था, जिसने गांधीजी के ‘मनसा-वाचा-कर्मणा’ के सिद्धांत को जीवन पद्धति मानकर उसे अंगीकार कर लिया। उक्त विचार मशहूर स्वतंत्रता सेनानी आचार्य जे बी कृपलानी की 126वीं जयंती पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए गए।