Om Thanvi : बीकानेर में छात्रजीवन में मेरे कमरे की दीवार पर बॉब डिलन का एक पोस्टर चिपका रहता था, लाल और काले महज़ दो रंगों में। JS (जूनियर स्टेटसमन) में कुछ अंकों में क़िस्तों में छपा था, जोड़कर टाँग दिया। मगर डिलन के बारे में जाना बाद में। उनका काव्य, उनके गीत और गान। फिर बरसों बाद कवि-मित्र लाल्टू ने डिलन के गीतों का एक कैसेट दिया। मैंने उसे आज तक नहीं लौटाया। अक्सर उसे सुना और अपनी सम्पत्ति बना लिया।
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घपलों-घोटालों और कैलाश सत्यार्थी का चोली-दामन का साथ रहा है, नोबेल मिलना कुशल मीडिया मैनेजमेंट का नतीजा है
वर्ष 2006 में कैलाश सत्यार्थी पहली बार नोबल शांति पुरस्कार के लिए नामित हुए थे। उस वक्त हिंदी साप्ताहिक अख़बार द संडे पोस्ट ने उनके काम, व्यक्तित्व, विवाद और जीवन के आयामों का जायजा लेते हुए एक स्पेशल रिपोर्ट प्रकाशित की थी। यह रिपोर्ट इस वर्ष के नोबल शांति पुरस्कार के विजेता कैलाश सत्यार्थी के काम की जांच करते हुए उनके जिस रूप को सामने लाती है वह इस पुरस्कार के विजेता को कठघरे में खड़ा करने के साथ पुरस्कार की चयन प्रक्रिया को ही विवादित बना देता है। और ऐसा शायद पहली ही बार हुआ है कि इतने बड़े सम्मान से एक भारतीय के सम्मानित होने पर भी प्रशंसा से अधिक सवाल उठाए जा रहे हैं। ऐसा क्यों हो रहा है इसे जानने के लिए पढ़िए स्पेशल रिपोर्ट-
मीडिया को कैलाश जैसों से मतलब नहीं वो तो आमिर-अमिताभ को महिमामंडित करता है जिनके पीछे करोड़ों का बाज़ार खड़ा है
बचपन में फिल्मों के प्रति दीवानगी के दौर में फिल्मी पत्र-पत्रिकाएं भी बड़े चाव से पढ़ी जाती थी। तब यह पढ़ कर बड़ी हैरत होती थी कि फिल्मी पर्दे पर दस-बारह गुंडों से अकेले लड़ने वाले होरी वास्तव में वैसे नहीं है। इसी तरह दर्शकों को दांत पीसने पर मजबूर कर देने वाले खलनायक वास्तविक जिंदगी में बड़े ही नेक इंसान हैं। समाज के दूसरे क्षेत्र में भी यह नियम लागू होता है। कोई जरूरी नहीं कि दुनिया के सामने भल मन साहत का ढिंढोरा पीटने वाले सचमुच वैसे ही हों। वहीं काफी लोग चुपचाप बड़े कामों में लगे रहते हैं। बचपन बचाओ आंदोलन के लिए नोबल पुरस्कार पाने वाले कैलाश सत्यार्थी का मामला भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। ये कौन हैं… किस क्षेत्र से जुड़े हैं… किसलिए… वगैरह – वगैरह। ऐसे कई सवाल हवा में उछले जब कैलाश सत्यार्थी को नोबल पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई। क्योंकि लोगों की इस बारे में जानकारी बहुत कम थी।
भारत में ग़ैर सरकारी संगठनों का उभार और कैलाश सत्यार्थी को नोबेल मिलना महज़ इत्तेफाक नहीं
यह संभवतः सन 2005 की बात है, एक शाम मैं सहारा समय समाचार चैनल देख रहा था तो एक समाचार प्रसारित हुआ कि कैलाश सत्यार्थी का नाम नोबल पुरस्कार के लिए प्रस्तावित हुआ है। मुझे इस बात पर आश्चर्य हुआ। मैं तब मध्य प्रदेश के धार जिले में था वहां से मैंने इस बात की पुष्टि करनी चाही। उन दिनों सहारा समय के विदिशा के पत्रकार बृजेन्द्र पांडे हुआ करते थे वहीँ से यह समाचार लगा था। बृजेंद्र पांडे, मेरे और कैलाश के सहपाठी थे सन 1967-69 में विदिशा के हायर सेकेण्ड्री स्कूल में। बाद को कैलाश ने इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमीशन ले लिया, मैंने और बृजेंद्र ने बीएससी में।
जब कैलाश सत्यार्थी को ग्रेट रोमन सर्कस के मालिक ने बुरी तरह मारा था
हर भारतीय की तरह मैं श्री कैलाश सत्यार्थी के नोबेल शांति पुरस्कार जीतने की ख़ुशी में फूला नहीं समा रहा हूँ और जून 2004 की करनैलगंज, गोंडा की उस घटना को याद कर रहा हूँ जब श्री सत्यार्थी को नेपाली सर्कस बालाओं को मुक्त करने के प्रयास में ग्रेट रोमन सर्कस के मालिक द्वारा बुरी तरह मारा-पीटा गया था.
कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफज़ई को मिला शांति का नोबेल पुरस्कार
इस साल शांति का नोबेल पुरस्कार भारत के सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफज़ई को संयुक्त रुप से दिया गया है।