कोरल आईलेंड की यात्रा से पहले थाईलेंड के बारे में कुछ बातें कर ली जाय. हवाई अड्डे से ही लगातार नत्थू की एक इच्छा दिख रही थी कि वो अपने देश के बारे में ज्यादा से ज्यादा हमें बताये. शायद इसके पीछे उसकी यही मंशा रही हो कि हम जान पायें कि केवल एक ही चीज़ उसके देश में नहीं है, इसके अलावा भी ढेर सारी चीज़ें उनके पास हैं जो या तो हमारी जैसी या हमसे बेहतर है. बाद में यह तय हुआ कि जब-जब बस में कहीं जाते समय खाली वक़्त मिलेगा तो थाईलैंड के बारे में नत्थू बतायेंगे और मैं उसका हिन्दी भावानुवाद फिर दुहराऊंगा. उस देश के बारे में थोड़ा बहुत पहले पायी गयी जानकारी और नत्थू की जानकारी को मिला कर अपन एक कहानी जैसा तैयार कर लेते थे और उसे अपने समूह तक रोचक ढंग से पहुचाने की कोशिश करते थे. नत्थू तो इस प्रयोग से काफी खुश हुए लेकिन ऐसे किसी बात को जानने की कोई रूचि साथियों में भी हो, ऐसा तो बिलकुल नहीं दिखा. उन्हें थाईलैंड से क्या चाहिए था, यह तय था और इससे ज्यादा किसी भी बात की चाहत उन्हें नहीं थी. खैर.
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मेरी थाईलैंड यात्रा (2) : …हर युग में बदलते धर्मों को कैसे आदर्श बनाओगे!
हमारी टोली पटाया के होटल गोल्डन बीच पहुच चुकी थी. औपचारिकताओं के साथ ही हमने अपना पासपोर्ट वहीं रिशेप्सन पर एक लॉकर लेकर उसमें जमा कराया. युवाओं का कौतुहल और बेसब्री देखकर मनोज बार-बार उन्हें कह रहे थे कि पहले ज़रा आराम कर लिया जाए, फिर अपने मन का करने के बहुत अवसर बाद में आयेंगे. सीधे दोपहर में भोजन पर निकलने का तय कर हम सब कमरे में प्रविष्ट हुए. शानदार और सुसज्जित कमरा. हर कमरे के लॉबी में ढेर सारे असली फूलों से लदे पौधों का जखीरा. इस ज़खीरे के कारण तेरह मंजिला वह होटल सामने से बिलकुल फूलों से लदे किसी पहाड़ के जैसा दिखता है.
मेरी थाईलैंड यात्रा (1) : कृपया भगवान बुद्ध के मुखौटे वाली प्रतिमा न खरीदें!
(दाहिने से तीसरे नंबर पर लेखक पंकज कुमार झा)
इस पंद्रह अगस्त की दरम्यानी रात को बंगाल की खाड़ी के ऊपर से उड़ते हुए यही सोच रहा था कि सचमुच आपकी कुंडली में शायद विदेश यात्रा का योग कुछ ग्रहों के संयोग से ही बना होता है. मानव शरीर में आप जबतक हैं, तबतक लगभग आपकी यह विवशता है कि आप पृथ्वी नामक ग्रह से बाहर कदम नहीं रख सकते. हालांकि इस ग्रह की ही दुनियादारी को कहां सम्पूर्णता में देख पाते हैं हम? अगर भाग्यशाली हुए आप तब ज़रा कुछ कतरा इस धरा के आपके नसीब में भी देखना नसीब होता है.
पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने बताई पंकज श्रीवास्तव टाइप क्रांतिकारियों की असलियत, आप भी पढ़ें….
(अभिषेक उपाध्याय)
Abhishek Upadhyay : बहुत शानदार काम किया। Well done Sumit Awasthi! Well done! सालों से सत्ता की चाटुकारिता करके नौकरी बचाने वाले नाकाबिल, अकर्मण्यों को आखिर रास्ता दिखा ही दिया। उस दिन की दोपहर मैं आईबीएन 7 के दफ्तर के बाहर ही था जब एक एक करके करीब 365 या उससे भी अधिक लोगों को आईबीएन नेटवर्क से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। चैनल के अंबानी के हाथों में चले जाने के बावजूद बेहद ही मोटी सैलरी लेकर चैनल का खूंटा पकड़कर जमे हुए उस वक्त के क्रांतिकारी मैनेजिंग एडिटर खुद अपने कर कमलों से इस काम को अंजाम दे रहे थे। एक एक को लिफाफे पकड़ाए जा रहे थे।
मेरी अमेरिका यात्रा (3): अमेरिकी बाज़ार पर सबसे ज्यादा छाप आपको चीन की मिलेगी
यह नज़ारा सेन फ्रांसिस्को के लोम्बार्ड स्ट्रीट का है. यह कोई पार्क नहीं बल्कि एक कॉलोनी है जिस पर लोगों के घर बने हुए हैं. कितने भाग्यशाली हैं ये लोग जिनका घर ऐसी जगह पर है. हालांकि कितनी मेहनत की होगी अमेरिका ने खुद को यहां तक पहुंचाने में और क्या योगदान दिया होगा उन लोगों ने जिनका यहां घर है, विकीपीडिया के अनुसार लोम्बार्ड स्ट्रीट सैन फ्रांसिस्को, कैलिफोर्निया में एक पूर्व पश्चिम सड़क है, जो खड़ी ऊंचाई के एक ब्लॉक के लिए प्रसिद्ध है इसमें आठ तीव्र घुमावदार मोड़ हैं. इस सड़क का नाम सैन फ्रांसिस्को सर्वेक्षक जैस्पर ओ फर्रैल ने फिलाडेल्फिया की लोम्बार्ड स्ट्रीट के नाम पर रखा था. कई फिल्मकारों ने अपनी फिल्म में इस सड़क को बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया है.
मेरी अमेरिका यात्रा (1) : वो झूठे हैं जो कहते हैं अमेरिका एक डरा हुआ मुल्क है
थाई एयरवेज के बोईंग 777 के विमान की उड़ान संख्या tgTG692 ने जब अमेरिका के लॉस एंजिल्स की धरती को छुआ तब तक शाम के 6 बज चुके थे लेकिन धुंधलके का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं था. चटख धूप खिली हुई थी. वहां के हिसाब से भीषण गर्मी के दिन थे. विमान से घोषणा की गयी कि बाहर का तापमान 25 डिग्री सेल्सियेस है. अजीब से अहसास के साथ अमेरिका की धरती पर पांव रखा. भक्ति-भाव जैसा तो खैर कुछ नहीं था लेकिन मन-में उमड़-घुमड़ रही भावनाओं को शब्द देना ज़रा मुश्किल है. शायद यही कि अपने जैसे लोगों के लिए वहां तक पहुंचना किसी सपने के सच जैसा होना था. ऐसा सपना जिसे देखने की भी हिम्मत या जहमत हमने पहले कभी नहीं उठायी थी.