न्यूज चैनलों के जमाने में सिर्फ बयानों पर ही पत्रकारिता और राजनीति

आज-कल एक नई किस्म की राजनीति देश में नजर आ रही है। हालांकि पहले भी होती थी, लेकिन अब मीडिया और खासकर न्यूज चैनलों के जमाने में सिर्फ बयानों और आरोपों पर ही पत्रकारिता के साथ-साथ ये राजनीति भी चल रही है। कांग्रेस के राज में भाजपा भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए संसद से सड़क तक हल्ला मचाती रही और तबकी नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज से लेकर अरुण जेटली प्रधानमंत्री के साथ-साथ आरोपों में घिरे मंत्रियों से इस्तीफा मांगते रहे और सदन की कार्रवाई चलने ही नहीं दी और तब ये भी कहा था कि सदन को चलाने की जिम्मेदारी सत्ता पक्ष की ही है। 

ठाकुर दम्पति को राजनीति में अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए

ह्विसल्ब्लोअर्स, स्वतंत्र या प्रचार के शिकारी किस्म के अधिकारी ? या तीनो ? शीर्षक से एक लेख इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित हुआ है, जो अमिताभ ठाकुर, उनकी पत्नी नूतन ठाकुर के सम्बन्ध में है और उसे पढ़ने पर यह आभास होता है कि अमिताभ ठाकुर पुलिस अधिकारी कम और समाज सुधारक अधिक हैं। अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है। ठाकुर दम्पति को राजनीति में अपनी किस्मत आज़मानी चाहिए।

चित्र एवं इंटरव्यू इंडियन एक्सप्रेस से साभार

पत्रकारों की शहादत, बेशर्म सियासत

सारी दुनिया में पत्रकारों के सिर पर 24 घंटे मौत का साया मंडराता रहता है। कलम पर हमले जारी हैं। भारत के कई राज्यों में स्थिति बेहद संवेदनशील है। खासकर उत्तर प्रदेश में पत्रकार बेखौफ होकर काम नहीं कर पा रहे हैं। सत्ता और कानून के पहरेदारों (पुलिस) की संगीने हर पल कलम का पीछा कर रही हैं। बात अस्सी के दशक से शुरू करते हैं। मैं ग्रुजुएशन करके निकला था। दिल्ली के नवभारत टाइम्स, दिनमान और असली भारत के अलावा बांदा से छपने वाले दैनिक मध्ययुग, कर्मयुग और बम्बार्ड में लिखने लगा था। इस दशक की वो काली तारीख अब मुझे याद नहीं है, जब बबेरू कस्बे में तत्कालीन दरोगा अरुण कुमार शुक्ला के इशारे पर भुन्नू महाराज एंड कंपनी ने दैनिक जागरण कानपुर के तत्कालीन संवाददाता और मध्ययुग के संपादक सुरेशचंद गुप्ता की दिनदहाड़े लाठियों से पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। वर्ष जरूर मुझे याद है-1983। सुरेश चंद गुप्ता का कुसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने पुलिस के फर्जी एनकाउंटर की रिपोर्ट छापी थी।

बजट के महीने में देश का वित्त मंत्री दिल्ली चुनाव के लिये बीजेपी हेडक्वार्टर में बैठने को क्यों है मजबूर

: दिल्ली फतह की इतनी बेताबी क्यों है? : बजट के महीने में देश के वित्त मंत्री को अगर दिल्ली चुनाव के लिये दिल्ली बीजेपी हेडक्वार्टर में बैठना पड़े… केन्द्र के दर्जन भर कैबिनेट मंत्रियों को दिल्ली की सड़कों पर चुनावी प्रचार की खाक छाननी पड़े… सरकार की नीतियां चकाचौंध भारत के सपनों को उड़ान देने लगे… और चुनावी प्रचार की जमीन, पानी सड़क बिजली से आगे बढ़ नहीं पा रही हो तो संकेत साफ हैं, उपभोक्ताओं का भारत दुनिया को ललचा रहा है और न्यूनतम की जरूरत का संघर्ष सत्ता को चुनाव में बहका रहा है।

मंत्री करीम अंसारी उत्तराखंड सरकार गिराने के लिए 50 करोड़ में कर रहे थे सौदा, ‘समाचार प्लस’ ने कर लिया स्टिंग

उत्तराखंड के मंगलौर से विधायक / दर्जाधारी कैबिनेट मंत्री हाजी सरवत करीम अंसारी सरकार गिराने के लिए सौदेबाजी करते हुए कैमरे में कैद हुए। सरवत करीम अंसारी ने 50 करोड़ में सरकार गिराने का सौदा किया। अपने साथ 4 और विधायकों के नाम पर भी सौदेबाजी की। मंत्री ने पिटकुल के एमडी का पद दिलाने के लिए 25 लाख मांगे।