बिहार में भारत की पहली बाल समाचार सेवा की हुई लॉन्चिंग

पटना/मुजफ्फरपुर  : बाल दिवस के अवसर पर आज मुजफ्फरपुर के गायघाट प्रखंड के जारंग हाई स्‍कूल में भारत की बच्चों की पहली समाचार सेवा (स्क्रैपी न्यूज सर्विस) की शुरूआत मुजफ्फपुर पूर्वी  के अनुमंडल अधिकारी श्री सुशील कुमार ने की। इस अवसर पर जिला शिक्षा पदाधिकारी श्री ललन प्रसाद सिंह, प्रखंड विकास पदाधिकारी श्री पंकज कुमार सिंह और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मो. इशा उपस्थित थे।

मासूम छात्राओं से अश्लील हरकतें करने वाले शिक्षकों पर कार्यवाई नहीं कर रहा परमाणु ऊर्जा केंद्रीय विद्यालय

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जादूगोड़ा। भारत के अति सुरक्षित एवं बड़े स्कूलों में से एक परमाणु ऊर्जा केंद्रीय विद्यालय में दो शिक्षको ने दावारा मासूम बच्चियो के साथ छेड़खानी का मामला सामने आया है। बच्चियाँ कक्षा दो से पाँच तक की छात्राएं हैं। स्कूल प्रबंधन जांच के नाम पर मामला सलटाने मे लगा है। अभी तक शिक्षको पर कोई कार्यवाई नहीं की गई है। एक बच्ची इतनी डर गयी है की पिछले दो दिनो से बीमार पड़ी है और कुछ बच्चियाँ डिप्रेशन में हैं। ये बच्चियां स्कूल नहीं जाना चाहती। सबसे बड़ी समस्या ये है कि अभिभावक बदनामी के डर से एफआईआर भी नहीं करा रहे हैं। केवल थाना प्रभारी से मिलकर कार्यवाई की मांग कर रहे हैं।

मानव तस्करी की आग में जलते जा रहे मासूम

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बीते दिनों केरल पुलिस के 16 अधिकारियों ने झारखंड के 123 बच्चों को केरल से जसीडीह स्टेशन पहुंचाया गया। ये बच्चे मानव तस्करी के जरिए केरल के अनाथालय में पहुंचाया गया था। पिछले वर्ष भी इसी तरह थोक में बच्चों की मानव तस्करी की एक और मामले का पर्दाफाश हुआ था। राजस्थान के भरतपुर रेलवे स्टेशन से 184 बाल मजदूरों को मुक्त करा कर पटना पहुंचाया गया। आए दिन देश के हर राज्य के अखबारों में बच्चों के गायब होने की खबर किसी ने किसी पन्ने के कोने में झांकती रहती हैं। देश बड़ा है। आबादी बड़ी है। संभव हो आपके आसपास कोई ऐसा नहीं मिले, जिसके बच्चे होश संभालने से पहले ही गायब हो चुके हो। इसलिए आपको जानकार थोड़ा आश्चर्य होगा, लेकिन हकीकत यह है कि आज देशभर में करीब आठ सौ गैंग सक्रिय होकर छोटे-छोटे बच्चों को गायब कर मानव तस्करी के धंधे में लगे हैं। यह रिकार्ड सीबीआई का है। मां-बाप का जिगर का जो टुकड़ा दु:खों की हर छांव से बचता रहता है, वह इस गैंग में चंगुल में आने के बाद एक ऐसी दुनिया में गुम हो जाता है, जहां से न बाप का लाड़ रहता है और मां के ममता का आंचल। किसी के अंग को निकाल कर दूसरे में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है, तो किसी को देह के धंधे में झोंक दिया जाता है, तो हजारों मजदूरी की भेंट चढ़ जाते हैं। पीड़ित में ज्यादातर दलित समाज से संबंद्ध हैं।