Om Thanvi : क्यों चुप रहे मनमोहन, क्यों बोलें मोदी? (एक प्रशासक की डायरी का पन्ना: पढ़ने को मिला था, नाम न देने की शर्त पर यहाँ साझा करता हूँ!)
1. जब देश जान चुका है कि भारत पाकिस्तान से डरता नहीं है। सर्जिकल स्ट्राइक से अभी मुँहतोड़ जवाब दिया गया है और पहले भी। जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब भी अकधिक बार ऐसे ही धावा बोला गया था। लेकिन सवाल मन में यह आता है कि तब मनमोहन सिंह आख़िर चुप क्यों रहे?
Deepak Sharma : राजपथ के धुंधले आकाश पर सूरज उतर रहा था और कोई ५०० कदम दूर राष्ट्रपति भवन के फोरकोर्ट पर नीली पगड़ी वाला एक बुजुर्ग पीछे चल रही एक महिला से अंग्रेजी में कह रहा था….मोदी को ख़ामोशी तोड़नी चाहिए. कैमरे वाले सोनिया और राहुल के आगे बाइट के लिए दौड़ रहे थे लेकिन उनसे एक बड़ी खबर पीछे छूट चुकी थी.
Sharad Tripathi : नरेंद्र मोदी के सर्वाधिक मजबूत गढ़ “सोशल मीडिया” पर पार्टी के भीतर से ही अबतक का सबसे बड़ा और सफल हमला. हमले में पार्टी के IT CELL गैंग ने निभायी निर्णायक और महत्वपूर्ण भूमिका. केंद्र में सत्तारूढ़ होते ही दिल्ली के “अंधाधुंध” भाजपाई दरबार में कैसे कैसे गधे पंजीरी खा रहे हैं और कैसे कैसे बंदरों के हाथों में किस किस तरह के उस्तरे चमक रहे हैं इसका सर्वाधिक शर्मनाक उदाहरण दो दिन पूर्व सामने आया है.
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पेरिस यात्रा के दौरान जिस शाल को ओढ़ा था उस पर उनका नाम प्रिंट है. चर्चा है कि यह शाल फ्रेंच की प्रसिद्ध कंपनी लुई वितां ने बनाया है. इसके पहले मोदी का सूट विवादों में आया था जिस पर उनका नाम लिखा था. उन्होंने वह सूट अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान पहना था. सोशल मीडिया पर नरेन्द्र मोदी के नाम लिखी शाल को लेकर चर्चा छिड़ी हुई है. मीडिया ने भी शाल के मुद्दे को प्रमुखता के साथ उछालना शुरू कर दिया है.
जिला गाजीपुर उत्तर प्रदेश के रहने वाले अजीत सिंह वैसे तो फेसबुक पर बेबाक लिखते पढते बोलते हैं लेकिन जब बात नरेंद्र मोदी की आती है तो वो हर हाल में उनके पक्ष में तर्क जुटा लेते हैं. ताजा मामला प्लेटफार्म टिकट बढ़ाने का है. इसे जायज ठहराने के लिए अजीत सिंह बिहारियों को गरियाने से भी नहीं चूके. अजीत सिंह सोशल एक्टिविस्ट हैं. ‘उदयन’ नामक संस्था चलाकर गरीबों का कल्याण करते हैं. शिक्षण से लेकर आंदोलन तक के काम को बखूबी निभाते हैं. पर जब बात मोदी की आती है तो वो किसी की कुछ नहीं सुनते, सिर्फ अपनी फेंकते हैं. पढ़िए वो क्या लिखते हैं और इस मसले यानि प्लेटफार्म टिकट बढ़ाने के मुद्दे पर कुछ अन्य पत्रकार साथी क्या लिखते हैं…
: मोदी सरकार की बदनामी का कारण बन रहा है DAVP : सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अन्तर्गत आने वाले भारत के सबसे बड़े भ्रष्ट व तानाशाही पूर्ण रवैया वाली सरकारी एजेंसी जिसे डीएवीपी कहा जाता है, ने पूरे देश के इम्पैनलमेंट किये गये समाचार पत्रों की लिस्ट 11 फरवरी 2015 को जारी की है. DIRECTORATE OF ADVERTISING AND VISUAL PUBLICITY यानि DAVP भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अन्तर्गत आता है. यह विभाग देश भर के हर छोटे व बड़े समाचार पत्रों को विज्ञापन हेतु इम्पैनल करता है. बडे अखबारों को छोडकर लघु व मध्यम समाचार पत्रों को साल भर में बड़ी मुश्किल से दो विज्ञापन देता है. वह भी 400 वर्गसेमी के.
Anil Singh : देश ने दस साल तक मनमोहन सिंह जैसे मौनी प्रधानमंत्री को झेला। अब मोदी के रूप में उसे ढोंगी प्रधानमंत्री को झेलना पड़ रहा है। मन की बात में मोदी ने कहा था कि ड्रग्स का धन आतंकवादियो को जाता है। अब पता चला है कि पंजाब में उनकी ही साझा सरकार के मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ड्रग्स के धंधे में लिप्त हैं। यही नहीं, मजीठिया मोदी सरकार की मंत्री हरसिमरत कौर के छोटे भाई हैं। ड्रग्स रैकेट के मामले की जांच प्रवर्तन निदेशालय कर रहा है जो केवल मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर सकता है, इस मामले की सही जांच सीबीआई ही कर सकती है। हर जगह बातों की तोप दागनेवाले प्रधानमंत्री आखिर धर्म-परिवर्तन पर संसद में आकर बयान क्यों नहीं दे रहे! क्या यह देश के सर्वोच्च सदन की अवमानना नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं कि जनता से झूठ बोलकर सत्ता में पहुंचे नमो को अपने बेनकाब होने का डर सताने लगा है! दिक्कत यह है कि विकल्पहीनता के चक्कर में अवाम के सामने इस ढोंगी और वाचाल को चुनने के अलावा कोई विकल्प भी तो नहीं है। दिल्ली में यकीनन विकल्प है, लेकिन उसे भी सर्वे का शंख बजाकर दबाने की कोशिश की जा रही है।
Yashwant Singh : पहले वो पुलिस के पक्ष में बोलते दिखाते रहे क्योंकि पुलिस ने उन्हें पुचकारा था, अपने घेरे में रखते हुए आगे बढ़ाकर बबवा को बुरा बुरा कहलवाया दिखाया था… जब पुलिस को लगा कि भक्तों-समर्थकों को लतिया धकिया मार पीट तोड़ कर अंदर घुसने और बबवा को पकड़ कर आपरेशन अंजाम तक पहुंचाने का वक्त आ गया है तो सबसे पहले पुचकार के मारे तोते की तरह पुचुर पुचुर बोल दिखा रहे ‘मीडिया मीठूओं’ को लतियाना लठियाना भगाना शुरू किया ताकि उनके आगे के लतियाने लठियाने भगाने के सघन कार्यक्रम के दृश्य-सीन कैमरे में कैद न किए जा सकें… ये सब प्री-प्लान स्ट्रेटजी थी. सत्ताधारी राजनीतिज्ञों से एप्रूव्ड.