यह संत तो दरिद्रों की पूजा करता है (देखें वीडियो)

स्वामी बाल नाथ के साथ पत्रकार अश्विनी शर्मा. दूसरी एक पुरानी तस्वीर में एक अनाथ बच्चे के साथ दिख रहे हैं स्वामी बाल नाथ.

Ashwini Sharma : ”अपने लिए जिए तो क्या जिए… ऐ दिल तू जी ज़माने के लिए…” नववर्ष के पहले दिन स्वामी बालनाथ जी से मिलकर वाकई लगा कि हमारे आस पास ऐसे लोगों की कमी नहीं है जिनके लिए इंसानियत की सेवा ही सब कुछ है..स्वामी बालनाथ के बारे मैं मैंने जितना कुछ सुन रखा था उससे कहीं ज्यादा मुझे आज देखने को मिला..स्वामी बालनाथ के गाजियाबाद स्थित सेवानगर आश्रम में जब मैं पहुंचा तो उन्हें कुछ लोगों की पूजा कर उनके पैरों को पानी से धोकर पीते हुए पाया..वाकई आजतक मैंने ऐसा पहले नहीं देखा था..

एक विलुप्त संत का सार्थक दान

मेरी पत्नी मंजु के एक ताउजी थे श्री बलदेव राम तुली। विवाह नहीं किया। एक दम संत स्वाभाव। घर में किसी से पानी का गिलास मांगने में भी संकोच होता था।  एक आध्यात्मिक पुरुष ने भी बताया था कि ये तो मरणोपरांत भी अपना कोई काम नही कराएंगे ऐसा ही हुआ। लगभग 71 वर्ष की आयु में, एक दिन, अचानक वे लापता हो गए।  ढूंढने के सब प्रयत्न असफल ही रहे।  7 वर्ष की लम्बी प्रतीक्षा के बाद परिवार ने भी मान लिया कि संभवतः वे अब नही रहे। उनकी काफी संपत्ति थी।  सब भाई-बहनो ने फैसला किया कि वे समाज के थे उनकी संपत्ति भी समाज को ही दान कर दी जाये।  उनकी ग्वालियर की ज़मीन व उनका धन अदालत की अनुमति से सेवा भारती, ग्वालियर, को दान में दे दिए गए।

मन ना रंगाए, रंगाए जोगी कपड़ा !!

यह कतई आश्चर्यजनक नहीं है कि बाबाओं की सबसे ज्यादा शक्तियाँ और चमत्कार भारत में ही पाये जाते हैं। लेकिन मजेदार बात यह है कि इनकी इतनी शक्तियों और चमत्कारों के बावजूद भारत, विश्व में सैकड़ों सालों से गुलाम रहे देशों में तीसरा देश कहलाता है। गरीबी, गंदगी, अनुशासनहीनता, लालच, भ्रष्टाचार, अंधभक्ति जैसी समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु ये बाबा आज तक देश का कल्याण नहीं कर पाए। यदि आप यकीन कर सकें तो वास्तविकता यह है कि किसी बाबा में कोई शक्ति नहीं, कोई चमत्कार नहीं। आप अपने को टटोलें तो पायेंगे कि शक्ति तो आप में है, चमत्कार तो आप में है।

बेचारे हिसार वाले ‘मीडिया मीठू’… वे अब भी सहला सेंक रहे हैं अपना-अपना अगवाड़ा-पिछवाड़ा…

Yashwant Singh : पहले वो पुलिस के पक्ष में बोलते दिखाते रहे क्योंकि पुलिस ने उन्हें पुचकारा था, अपने घेरे में रखते हुए आगे बढ़ाकर बबवा को बुरा बुरा कहलवाया दिखाया था… जब पुलिस को लगा कि भक्तों-समर्थकों को लतिया धकिया मार पीट तोड़ कर अंदर घुसने और बबवा को पकड़ कर आपरेशन अंजाम तक पहुंचाने का वक्त आ गया है तो सबसे पहले पुचकार के मारे तोते की तरह पुचुर पुचुर बोल दिखा रहे ‘मीडिया मीठूओं’ को लतियाना लठियाना भगाना शुरू किया ताकि उनके आगे के लतियाने लठियाने भगाने के सघन कार्यक्रम के दृश्य-सीन कैमरे में कैद न किए जा सकें… ये सब प्री-प्लान स्ट्रेटजी थी. सत्ताधारी राजनीतिज्ञों से एप्रूव्ड.

संत रामपाल : ….यूं ही कोई इतना लोकप्रिय नहीं हो सकता!

मैं संत रामपाल को नहीं जानता न ही उनके दर्शन और अध्यात्म की उनकी व्याख्या से। पर वे खुद कहते हैं कि वे हिंदू नहीं हैं और खुद को ही परमेश्वर मानते हैं। हिंदुओं के लगभग सभी सेक्ट उनके खिलाफ हैं खासकर आर्य समाज से तो उनकी प्रतिद्वंदिता जग जाहिर है। वे कबीर साहब के आराधक हैं और मानते हैं कि वे इस दुनिया में आने वाले पहले गुरु थे। इसमें कोई शक नहीं कि संत रामपाल अपार लोकप्रिय हैं। उनके भक्त उनके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं। संत परंपरा वैदिक अथवा ब्राह्मण परंपरा नहीं है। संत परंपरा श्रावक व श्रमण परंपरा तथा पश्चिम के सेमेटिक दर्शनों का घालमेल है। पर जो व्यक्ति संत की पदवी पा जाता है उसके भक्त उसको ईश्वर अथवा ईश्वर का दूत मानने लगते हैं।