शहाबुद्दीन ने तरुण तेजपाल और अनिरुद्ध बहल की हत्या के जरिए तत्कालीन भाजपा सरकार को अस्थिर करने की साजिश रची थी!

कई पत्रकारों का हत्यारा बिहार का बाहुबली शहाबुद्दीन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली के तिहाड़ जेल शिफ्ट किया जाना है तो इस मौके पर उसकी करतूतों की फिर चर्चा चहुंओर शुरू हो गई है. खासकर मीडियाकर्मियों में इस बात को लेकर गुस्सा है कि दो-दो पत्रकारों की हत्या कराने वाले शहाबुद्दीन को आखिर क्यों राजनीतिक संरक्षण दिया जाता है और अभी तक उसके गुनाहों की सजा उसको क्यों नहीं दी गई. क्यों उसके सामने नेता, अफसर, जज समेत पूरा सिस्टम भय के मारे नतमस्तक हो जाता है.

तहलका हिंदी से संपादक बृजेश समेत कई पत्रकारों का सामूहिक इस्तीफा, अब अमित प्रकाश देखेंगे काम

बुरे दौर से गुजर रही तहलका हिंदी पत्रिका से सूचना है कि कई लोगों ने इस्तीफा दे दिया है. तरुण तेजपाल सेक्स स्कैंडल के बाद से ही तहलका समूह के बुरे दिन शुरू हो गए थे और अब तक जारी है. पता चला है कि तहलका हिंदी से कार्यकारी संपादक बृजेश सिंह, प्रशांत वर्मा, मीनाक्षी तिवारी, अमित सिंह, कृष्णकांत, दीपक गोस्वामी आदि ने इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफे का कारण सेलरी संकट बताया जा रहा है.

तहलका समूह जल्द लांच करेगा तहलका बांग्ला न्यूज चैनल

तहलका समूह ने एक प्रेस रिलीज जारी कर सूचित किया है कि वह जल्द बांग्ला भाषा में न्यूज चैनल लांच करेगा जिसका नाम तहलका बांग्ला न्यूज चैनल होगा. नीचे वो प्रेस रिलीज है जिसे तहलका की तरफ से जारी किया गया है….

तहलका अंग्रेजी के पत्रकारों ने मैनेजमेंट के खिलाफ मोर्चा खोला, एक कर्मी ने खोली मैथ्यू सेमुवल की पोल

तहलका अंग्रेजी मैग्जीन के पत्रकारों को सेलरी नहीं मिल रही है. यहां कार्यरत कर्मियों ने एक खुला पत्र लिखकर प्रबंधन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. पत्र में कहा गया है कि तीन दिन में सारा हिसाब किताब कर दो वरना न सिर्फ धरने पर बैठेंगे बल्कि कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी. साथ ही श्रम विभाग से संपर्क साधकर तहलका प्रबंधन को कठघरे में खड़ा किया जाएगा. ओपन लेटर में कर्मियों ने प्रबंधन से कहा है कि अगर उनका मन कंपनी बंद करने की है तो ऐसे में जो भी उचित देय होता है, उसे मिल बैठकर तय कर लिया जाए और सभी लोग अपने अपने रस्ते निकल लें. पत्र ये है :

हिन्दी तहलका विशेषांक समीक्षा : एक बेहतरीन अंक

किसी भी समाप्त होते साल के आखिरी हफ्ते से नए साल के पहले हफ्ते तक टीवी चैनलों में एक जैसे उबाऊ इयरएंडर देखते हुए और पत्र पत्रिकाओं में बासी खबर कलैंडर पढते हुए इस बार भी “तहलका हिन्दी” किसी वज़नदार दस्तावेज की तरह हाथ में आई। इस बार भी इसलिए लिखा क्योंकि 2013 की समाप्ति पर भी हिन्दी तहलका ने अपने पांच साल पूरे होने के अवसर को भी साथ जोड़ते हुए एक बेहतरीन अंक प्रकाशित किया था। वह अंक साहित्य और साहित्यकारों के इर्द गिर्द रचा गया था जबकि इस बार का विशेषांक बीते साल 2014 को वर्षगांठ के नजरिए से देखते हुए तैयार किया गया है।

Tehelka scribe refuses to reveal source in sensational fake encounter case

IMPHAL : The star witness of the sensational July 23 Kwairamband Keithel fake encounter case, Teresa Rehman of the `Tahelka Magazine`, refused to reveal the identity of her sources citing security problem besides terming it unethical. Teresa Rehman, who filed the news reports of the July 23 incident along with a number of pictures as evidence, gave her statement before the court Chief Judicial Magistrate, Kamrup (Metro) Guwahati, D Thakuriaa on January 6 as prosecution witness number 66.

पठनीय है ‘तहलका’ का वार्षिक अंक, जरूर खरीदें और पढ़ें

Abhishek Srivastava : कल ‘तहलका’ का वार्षिक अंक एक सुखद आश्‍चर्य की तरह हाथ में आया। एक ज़माने में इंडिया टुडे जो साहित्‍य वार्षिकी निकालता था, उसकी याद ताज़ा हो आई। बड़ी बात यह है कि ‘तहलका’ का यह अंक सिर्फ सहित्‍य नहीं बल्कि समाज, राजनीति, आंदोलन और संस्‍कृति सब कुछ को समेटे हुए है। आवरण पर एक साथ मुक्तिबोध और इरोम शर्मिला की तस्‍वीर को आखिर कौन नहीं देखना चाहेगा।

तरुण तेजपाल को टीओआई ने अपने समारोह में वक्ता के रूप में बुलाया, विवाद के बाद कदम पीछे हटाया

तरुण तेजपाल को टीओआई (टाइम्स ऑफ़ इंडिया) द्वारा आयोजित एक साहित्यिक समारोह में निमंत्रण देने पर विवाद खड़ा हो गया है. कई वरिष्ठ पत्रकारों ने इस पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि यौन शोषण के एक हाई प्रोफाइल अभियुक्त को इस तरह का प्लेटफार्म देना महिलाओं को ग़लत पैग़ाम देने जैसा होगा. लगभग एक साल पहले तेजपाल यौन शोषण के आरोप में गिरफ़्तार हुए थे और उन्हें इस साल जुलाई में ज़मानत मिली थी. हालाँकि उन्होंने लगातार ख़ुद पर लगों आरोपों को बेबुनियाद कहते हुए ख़ारिज किया है.

तहलका डाट काम के पत्रकार मैथ्यू सैमुअल जेल भेजे गए

दिल्ली की एक अदालत ने समाचार पोर्टल तहलका डॉटकॉम के पत्रकार मैथ्यू सैमुअल की जमानत रद्द कर उन्हें जेल भेज दिया. मैथ्यू पर सरकारी गोपनीयता कानून का उल्लंघन कर दस्तावेज जुटाने और उन्हें पोर्टल पर जारी करने के आरोप में केस चल रहा है.  सीबीआई कोर्ट के जज जेपीएस मलिक ने मैथ्यू को 21 नवंबर तक न्यायिक हिरासत में भेजने का आदेश दिया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि वह जानबूझकर मुकदमे में देरी कर रहे हैं, इसलिए उनकी जमानत अवधि बढ़ाने की जरूरत नहीं है.

अगर मैं सम्पादक होता तो इस स्टोरी को ब्लॉक कर देता

Nadim S. Akhter : मुस्लिम समाज पर तहलका की जिस स्टोरी पर माननीय Dilip C Mandal जी बलिहारी जा रहे हैं, उन्हें ‘मलाल’ है कि ऐसी स्टोरी वो क्यों नहीं सोच पाए-कर पाए, जो उनके हिसाब से अद्भुत है. उस स्टोरी में कई झोल और छेद हैं. पता नहीं, किस सम्पादक की नजर से गुजरकर ये स्टोरी छपी है. अगर मैं सम्पादक होता तो इस स्टोरी को ब्लॉक कर देता. कहता- पहले जाकर संबंधित पक्षों का वर्जन लेकर आओ, मुस्लिम समाज और उनके धर्मगुरुओं की राय लेकर आओ कि वे इस मामले पर क्या बोलते और सोचते हैं. मुस्लिम समाज के माइंडसेट पर पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी प्रकाश सिंह ने जो आपत्तिजनक टिप्पणी की है, उसे यूं ही नहीं छापेंगे. दूसरे पक्ष (मुस्लिम समाज) की बात भी उसी शिद्दत से और उतनी ही प्रमुखता से स्टोरी में जानी चाहिए, वरना स्टोरी एकतरफा हो जाएगी.

‘तहलका’ में पेशेवर आंदोलनकारियों पर निशाना, पढ़िए कविता कृष्णन की दास्तान

‘तहलका’ मैग्जीन के नए अंक में पेशेवर आंदोलनकारियों के खिलाफ जमकर भड़ास निकाली गई है. अपने सहकर्मी के यौन उत्पीड़न में जेल गए तरुण तेजपाल की इस मैग्जीन ‘तहलका’ का ध्यान अचानक आंदोलनकारियों के खिलाफ क्यों चला गया, इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा समझ लगाने की जरूरत नहीं है. पर इस आवरण कथा में कुछ ऐसे पेशेवर आंदोलनकारियों के बारे में भी खुलासा किया गया है जो सिर्फ टीवी पर दिखने और लोगों का ध्यान खींचने के लिए बिना जाने समझे मुद्दों को उठाते और उस पर बोलते रहते हैं. ऐसे में लोगों में एक महिला आंदोलनकारी कविता कृष्णन भी हैं. इनकी पूरी दास्तान ‘तहलका’ मैग्जीन में प्रकाशित हुई है. ‘तहलका’ में प्रकाशित और अतुल चौरसिया और विकास कुमार द्वारा लिखित आवरणकथा ‘पेशेवर आंदोलनकारी’ में सब हेडिंग है- ”ऐसे लोग जिनका काम ही आंदोलन के मौके तलाशते रहना है.” लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या आंदोलन के मौके खोजना गुनाह है? ये तो एक अच्छे और सजग समाज का संकेत है जहां लोग किसी भी बुराई के खिलाफ उठ खड़े होने को तत्पर हैं. पर तहलका के लोगों का कहना है कि इस कवर स्टोरी में उन अवसरवादी आंदोलनकारियों का खुलासा किया गया है जो समाज के फायदे के लिए नहीं बल्कि निजी टीआरपी के लिए आधा-अधूरा आंदोलन चलाने पर आमादा रहते हैं. ‘तहलका’ आवरणकथा नीचे है. -यशवंत, एडिटर, भड़ास4मीडिया

‘तहलका’ की हालत दयनीय, पांच महीने से नहीं मिली सेलरी, मैनेजमेंट चुप

जब से नया निजाम (केडी सिंह) आया है तब से मैनेजमेंट और संपादकीय के बीच संवादहीनता बढ़ी है. तहलका की अंग्रेजी और हिंदी दोनों मैग्जीन के बंद होने संबंधी खबर न्यूज रूम के भीतर तैर रही है. फील्ड रिपोर्टिंग के लिए फंड ठीक से नहीं मिल रहा है. पहले हर महीने की सात तारीख को सेलरी मिलती थी. लेकिन इस महीने की सेलरी अभी तक नहीं मिली है. सेलरी देरी से मिले फिर भी कोई बात नहीं, लेकिन आश्चर्यजनक है मैनेंजमेंट की चुप्पी.