हे टीवी मीडिया के महंतों, अब बताओ साहित्य कौन देख रहा है जो प्राइम टाइम में ताने हुए हो

Vineet Kumar : मुझे फिलहाल मीडिया के उन सारे महंतों का चेहरा याद आ रहा है जो उपहास उड़ाते हुए पूछते थे- अब कौन पढ़ता है साहित्य, कौन देखेगा साहित्य की खबर? अभी कौन देख रहा है जनाब जो प्राइम टाइम में ताने हुए हो..सीधे पैनल डिस्कशन पर उतरने से पहले दो मिनट की पैकेज तो लगा दो..पता तो चले काशीनाथ सिंह कौन हैं, मुन्नवर राणा कौन है, उदय प्रकाश किस पेशे से आते हैं?

भारत का मीडिया TRP के लिए दंगा, फसाद, हत्या, बलात्कार, धरना-प्रदर्शन, आगजनी और लूट के कार्यक्रम प्रायोजित करेगा!

Ajit Singh : पकिस्तान जब भारत से हारा तो पाकिस्तानियों ने अपने TV फोड़ दिए। ऐसा हमको मीडिया ने बताया। हम लोगों ने भी खूब चटखारे लिए। पाकिस्तानियों को इसी बहाने certified चूतिया घोषित कर दिया। बड़ा मज़ा आया। अब मीडिया ने दिखाया कि हिन्दुस्तान में भी लोगों ने TV फोड़ दिए। मैंने इस खबर को बड़े गौर से देखा। मीडिया ने ये भी बताया कि लोग आंसू बहा रहे हैं। उनके आंसू भी देखे । लोग tv सड़कों पे पटक रहे हैं। प्रश्न ये है कि लोग news channel के कैमरा को दिखाने के लिए टीवी फोड़ रहे हैं क्या ? लोगों ने tv खुद फोड़े या मीडिया ने स्टोरी बनाने के लिए फुड़वाये? पुराने टंडीरा TV हैं। साफ़ दिखाई दे रहा है। क्या ये नहीं खोजा जाना चाहिए कि ये नाटक किसने कराया? क्यों कराया? टीवी फोड़ने की घटना किसने शूट की? टीवी कहाँ से आये? कौन लोग थे जिनने अपना TV फोड़ा। जिन लोगों ने TV फोड़ा उन ने अपने घर से कभी संडास का mug भी फेंका है? रोने वालों में कुछ लोग तो स्टेडियम में बैठे हैं। बाकी जो बाहरी लोग दिल्ली मुम्बई में दिखाए जा रहे है वो बहुत घटिया acting कर रहे हैं। मीडिया वाले अपनी दुकानदारी चमकाने के चक्कर में सारी दुनिया को ये बताना चाहते है की सिर्फ पाकिस्तानी ही नहीं हम हिन्दुस्तानी भी certified चूतिया हैं ……ISO मार्का ….. हम भी किरकिट जैसे फर्जीवाड़े पे अपना TV फोड़ सकते हैं।

एक न्यूज चैनल जहां महिला पत्रकारों को प्रमोशन के लिए मालिक के साथ अकेले में ‘गोल्डन काफी’ पीनी पड़ती है!

चौथा स्तंभ आज खुद को अपने बल पर खड़ा रख पाने में नाक़ाम साबित हो रहा है…. आज ये स्तंभ अपना अस्तित्व बचाने के लिए सिसक रहा है… खासकर छोटे न्यूज चैनलों ने जो दलाली, उगाही, धंधे को ही असली पत्रकारिता मानते हैं, गंध मचा रखा है. ये चैनल राजनेताओं का सहारा लेने पर, ख़बरों को ब्रांड घोषित कर उसके जरिये पत्रकारिता की खुले बाज़ार में नीलामी करने को रोजाना का काम मानते हैं… इन चैनलों में हर चीज का दाम तय है… किस खबर को कितना समय देना है… किस अंदाज और किस एंगल से ख़बर उठानी है… सब कुछ तय है… मैंने अपने एक साल के पत्रकारिता के अनुभव में जो देखा, जो सुना और जो सीखा वो किताबी बातों से कही ज्यादा अलग था…. दिक्कत होती थी अंतर आंकने में…. जो पढ़ा वो सही था या जो इन आँखों से देखा वो सही है…

‘आजतक’ और ‘हेडलाइंस टुडे’ में क्या दलित विरोधी मानसिकता वाले सवर्ण भरे पड़े हैं?

Ajitesh Mridul : This is how Headlines Today depicted Bihar’s CM Jiten Manjhi. I just want to tell them that sucking up to Bhajappa and all is OK, but at least hire people who understand the social construct. Mushars, don’t eat rats just for the heck of it. Read and learn about their sufferings.

पत्रकारिता के लिए साल का आखिरी दिन चेतावनी भरा रहा, आप लोगों के मरने पर अखबारों में एक लाइन की भी खबर न छपे

: मीडिया को पुनर्जीवित करने का अभियान : मीडिया में अब मामला पेड न्यूज भर का नहीं रहा है। कई अखबार तो खबरें भी उन्हीं की छापते हैं, जो पैसा देते हैं। पूरे के पूरे अख़बार, सप्लीमेंट्स ही पेड हो गए हैं। छोटे- बड़े , कई – कई यही काम कर रहे हैं। चैनलों के ब्यूरो के ब्यूरो खुले आम नीलाम हो रहे हैं। पैसा लाओ , जो छापना है छापो; जो दिखाना है दिखाओ। राजनीतिक दल और सरकारें भी मीडिया को गुलाम बनाने पर तुली हैं। नाहक नहीं है कि प्रेस कौंसिल के चेयरमैन कह रहे हैं कि मीडिया आम अवाम की आवाज दबाने की साज़िश का हिस्सा हो गया है। इस सन्दर्भ में एक रपट…