सपा – बसपा गठबंधन : संभावना एवं सफलता

एस.आर.दारापुरी भूतपूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक, जनमंच उत्तर प्रदेश  उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल के उपचुनावों के परिणामों के बाद सपा, बसपा के गठबंधन के भविष्य, संभावनाएं एवं संभावित खतरों की चर्चा बहुत जोर शोर से चल रही है. उपचुनाव में बसपा द्वारा सपा  के समर्थन से दो सीटें जीतने को उत्तर प्रदेश की …

यूपीकोका में न्यायिक हिरासत अवधि साल भर, पुलिस रिमांड 60 दिन

आतंकवाद विरोधी कानून से भी कठोर है यूपीकोका… हाल में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा यूपीकोका अर्थात उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण विधेयक- 2017 लाया गया है जो कि आतंकवाद विरोधी कानून (विधि विरुद्ध क्रिया-कलाप निवारण अधिनियम-1967) से भी कठोर है. इसमें पुलिस को इस प्रकार की शक्तियां दी गयी हैं जो कि आज …

सहारनपुर के दलित दोहरे अत्याचार का शिकार!

 -एस.आर.दारापुरी- संयोजक जन मंच उत्तर प्रदेश एवं सदस्य स्वराज अभियान समिति उत्तर प्रदेश सभी भलीभांति अवगत हैं कि 5 मई, 2017 को सहारनपुर के शब्बीरपुर गाँव के दलितों के घरों पर उस क्षेत्र के ठाकुरों ने हमला किया था. इसमें लगभग दो दर्जन दलित बुरी तरह से घायल हुए थे और 50 से अधिक घर …

मायावती का धर्म परिवर्तन राजनीति से प्रेरित!

लखनऊ : ‘मायावती का धर्म परिवर्तन राजीनीति से प्रेरित है.’ यह बात आज एस. आर. दारापुरी, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक एवं संयोजक जनमंच उत्तर प्रदेश ने प्रेस को जारी ब्यान में कही है. उनका कहना है कि मायावती की धर्म परिवर्तन की धमकी के पीछे उसके दो उद्देश्य हैं- एक तो भाजपा जो हिंदुत्व की राजनीति कर रही है पर दबाव बनाना और दूसरे हिन्दू धर्म त्यागने की बात कह कर दलितों को प्रभावित करना.  मायावती की इस धमकी से बीजेपी और हिन्दुओं पर कोई असर होने वाला नहीं है क्योंकि हिन्दू तो बुद्ध को विष्णु का अवतार और बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का एक पंथ मानते है.

मायावती का दलित वोट बैंक क्यों खिसका?

हाल में उत्तर प्रदेश में हुए विधान सभा चुनाव में मायावती और उनकी बहुजन समाज पार्टी की बुरी तरह से हार हुयी है। इस चुनाव में उसके बहुमत से सरकार बनाने के दावे के विपरीत उसे कुल 19 सीटें मिली हैं जिनमें शायद केवल एक ही आरक्षित सीट है। उसके वोट प्रतिशत में भी भारी गिरावट आयी है। एनडीटीवी के विश्लेषण के अनुसार इस चुनाव में उत्तर प्रदेश में बसपा को दलित वोटों का केवल 25% वोट ही मिला है जबकि इसके मुकाबले में सपा को 26% और भाजपा को 41% मिला है। दरअसल 2007 के बाद बसपा के वोट प्रतिशत में लगातार गिरावट आयी है जो 2007 में 30% से गिर कर 2017 में 22% पर पहुँच गया है। इसी अनुपात में बसपा के दलित वोटबैंक में भी कमी आयी है। अभी तो बसपा के वोटबैंक में लगातार आ रही गिरावट की गति रुकने की कोई सम्भावना नहीं दिखती। मायावती ने वर्तमान हार की कोई ईमानदार समीक्षा करने की जगह ईवीएम में गड़बड़ी का शिगूफा छोड़ा है। क्या इससे मायावती इस हार के लिए अपनी जिम्मेदारी से बच पायेगी या बसपा को बचा पायेगी?

क्या मायावती का दलित वोट बैंक खिसका है?

पिछले लोक सभा चुनाव के परिणामों पर मायावती ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था  कि उन की हार के पीछे मुख्य कारण गुमराह हुए ब्राह्मण, पिछड़े और मुसलमान समाज द्वारा वोट न देना है जिस के लिए उन्हें बाद में पछताना पड़ेगा. इस प्रकार मायावती ने स्पष्ट तौर पर मान लिया था कि उस का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला फेल हो गया है. मायावती ने यह भी कहा था कि उस की हार के लिए उसका यूपीए को समर्थन देना भी था.

दलित राजनीति की दरिद्रता

क्या यह दलित राजनीति की दरिद्रता नहीं है कि यह केवल आरक्षण तक ही सीमित
हो कर रह जाती है या इसे जानबूझ कर सीमित कर दिया जाता है? क्या दलितों
की भूमिहीनता, गरीबी, बेरोज़गारी, अशिक्षा, तथा सामाजिक एवं आर्थिक शोषण
एवं पिछड़ापन दलित राजनीति के लिए कोई मुद्दा नहीं है? भाजपा भी आरएसएस के
माध्यम से चुनाव में आरक्षण के मुद्दे को जानबूझ कर उठवाती है ताकि
दलितों का कोई दूसरा मुद्दा चुनावी मुद्दा न बन सके। इसके माध्यम से वह
हिन्दू मुस्लिम की तरह आरक्षण समर्थक और आरक्षण विरोधियों का ध्रुवीकरण
करने का प्रयास करती है जैसा कि पिछले बिहार चुनाव से पहले किया गया था.
ऐसा करके वह दलित नेताओं का काम भी आसान कर देती है क्योंकि इससे उन्हें
दलितों के किसी दूसरे मुद्दे पर चर्चा करने की ज़रुरत ही नहीं पड़ती। इसी
लिए तो दलित पार्टियां को चुनावी घोषणा पत्र  बनाने और जारी करने की
ज़रूरत नहीं पड़ती। परिणाम यह होता है कि दलित मुद्दे चुनाव के केंद्र
बिंदु नहीं बन पाते.

दलित उत्पीड़न में भाजपा शासित राज्य आगे!

राष्ट्रीय अपराध अनुसन्धान ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा हाल में जारी की गयी क्राईम इन इंडिया– 2015 रिपोर्ट से एक बात पुनः उभर कर आई है कि भाजपा शासित राज्य दलित उत्पीड़न के मामले में देश के अन्य राज्यों से काफी आगे हैं. लगभग यही स्थिति वर्ष 2014 में भी थी. वर्तमान में भाजपा शासित राज्य गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, गोवा और हिमाचल प्रदेश हैं. इनके इलावा कुछ अन्य राज्य जैसे उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तेलन्गाना, उत्तर प्रदेश और बिहार हैं जिन में दलित उत्पीड़न के मामले राष्ट्रीय दर (प्रति एक लाख दलित आबादी पर) से ज्यादा हैं. भाजपा शासित राज्यों व् अन्य  राज्यों में दलितों पर उपरोक्त रिपोर्ट के अनुसार घटित अपराधों की स्थिति निम्न प्रकार है:-

उत्तर प्रदेश में जंगलराज : पूर्व आईजी बता रहे हैं यूपी में दलित महिलाएं सुरक्षित नहीं हैं

हाल में राष्ट्रीय अपराध अनुसंधान ब्यूरो द्वारा क्राईम इन इंडिया- 2015 रिपोर्ट जारी की गयी है. इस रिपोर्ट में वर्ष 2015 में पूरे देश में दलित उत्पीड़न के अपराध के जो आंकड़े छपे हैं उनसे यह उभर कर आया है कि इसमें उत्तर प्रदेश काफी आगे है. उत्तर प्रदेश की दलित आबादी देश में सब से अधिक आबादी है जो कि उत्तर प्रदेश की आबादी का 20.5 प्रतिशत है. रिपोर्ट के अनुसार देश में वर्ष 2015 में दलितों के विरुद्ध उत्पीड़न के कुल 45,003 अपराध घटित हुए जिन में से उत्तर प्रदेश में 8,358 अपराध घटित हुए जो कि राष्ट्रीय स्तर पर कुल घटित अपराध का 18.6 प्रतिशत है. इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर प्रति एक लाख दलित आबादी पर घटित अपराध की दर 22.3 रही और उत्तर प्रदेश की यह दर 20.2 रही.

मोदी की आंबेडकर पर अशिष्टता

-आनंद तेल्तुम्ब्ड़े-

हाल में मोदी जी ने अपने आप को आंबेडकर भक्त कहा था और दलितों को यह भरोसा दिलाया था कि वह आरक्षण के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ नहीं होने देंगें चाहे आंबेडकर ही आ कर इस की मांग क्यों न करें. मोदी की यह अशिष्टता यह दर्शाती है कि हिंदुत्व की ताकतों के लिए दलितों को पटाने के लिए आंबेडकर को गलत ढंग से पेश करने तथा शासक वर्गों की राजनीतिक रणनीति में आरक्षण की कितनी नाज़ुक भूमिका है. आरक्षण जो कि दलितों के लिए वरदान है वास्तव में उनकी गुलामी का औज़ार बन गया है.