: इप्टा के अध्यक्ष रणबीर सिंह से दिनेश चौधरी की बातचीत :

-थियेटर में आपकी भूमिका प्रमुखतः क्या है? अपने लिखे नाटकों और उनके निर्देशकों के बारे में कुछ बतायें।
–मेरी थिएटर में भूमिका प्रमुखतः क्या है, यह कहना मुश्किल है क्यों की जब मैंने थिएटर में काम करने की सोची तो मेरे सामने सवाल था थिएटर से रोटी-रोज़ी जुटाने का। उस वक्त शायद यह फैसला बेवकूफी भरा था या कोई कहे की हिम्मत भरा, मगर मेरे लिए यह दोनों ही नहीं। बस मेरी मज़बूरी थी। पहली नौकरी जो मिली वो भारतीय नाट्य संघ के कार्यवाहक मंत्री (एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी) की मिली। भारतीय नाट्य संघ यूनेस्को का इंडियन सेंटर था। मेरी क़िस्मत की वहां मुझे श्रीमती कमलादेवी चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में काम करने का मौक़ा मिला। वहीँ मेरी मुलाक़ात कपिला वात्स्यायन, मृणालिनी साराभाई, प्रोफेसर एन. सी. मेहता, अल्काजी, हबीब तनवीर, इन्दर राज़दान, तरुण रॉय, नेमीचंद जैन, विश्णु प्रभाकर, जसवंत ठक्कर, शांता गांधी, अनिल बिस्वास , चार्ल्स फेब्री, शीला वत्स, कैलाश पाण्डेय जैसे महान लोगों से हुई और उनसे थिएटर के बारे में जानने-समझने का मौक़ा मिला। सारे भारत के थिएटर की जानकारी हासिल हुईय अच्छाइयाँ, बुराइयाँ, मुश्किलात, सरकार की नीयत और नीतियां, कामकाज का तरीकाय ये सब बहुत नज़दीक से देखने का मौक़ा मिला। उस वक्त मेरी भूमिका सिर्फ एक एडमिनिस्ट्रेटर की थी, जो आज मेरे काम आ रही है।