हमारे जमाने में एक क्रिकेटर थे गुंडप्पा विश्वनाथ। कमाल के बैट्समैन थे, वे फ्रंटफुट पर आकर शायद ही कभी स्ट्रोक मारते। उनकी खासियत थी अपनी कलाई के कमाल से तूफान की गति से आती गेंद की सिर्फ दिशा भर बदल देते थे और बाल बाउंड्री के पार। वेस्टइंडीज के तूफानी गेंदबाज एंडी राबर्टस, मैल्कम मार्शल …
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श्रीनिवास तिवारी रीवा से लेकर भोपाल दिल्ली तक यथार्थ से ज्यादा किवंदंती के जरिए जाने गए
Jayram Shukla : एक आम आदमी का जननायक बन जाना… श्रीनिवास तिवारी रीवा से लेकर भोपाल दिल्ली तक यथार्थ से ज्यादा किवंदंती के जरिए जाने गए। दंतकथाएं और किवंदंतियां ही साधारण आदमी को लोकनायक बनाती हैं। विंध्य के छोटे दायरे में ही सही तिवारीजी लोकनायक बनकर उभरे और रहे। मैंने अबतक दूसरे ऐसे किसी नेता को नहीं जाना जिनको लेकर इतने नारे,गीत-कविताएं गढ़ी गईं हों। सच्चे-झूठे किस्से चौपालों और चौगड्डों पर चले हों। उनकी अंतिमयात्रा में उमड़ा जनसैलाब इन सब बातों की तस्दीक करता है।
हिन्दी के दाँत खाने के कुछ, दिखाने के कुछ
हिंदी दिवस पर विशेष
जयराम शुक्ल
दिलचस्प संयोग है कि हिन्दी दिवस हर साल पितरपक्ष में आता है। हम लगे हाथ हिन्दी के पुरखों को याद करके उनका भी श्राद्ध और तर्पण कर लेते हैं। पिछले साल भोपाल में विश्व हिंदी सम्मेलन रचा गया था। सरकारी स्तर पर कई दिशा-निर्देश निकले,संकल्प व्यक्त किए गए। लगा मध्यप्रदेश देश में हिन्दी का ध्वजवाहक बनेगा, पर ढाँक के वही तीन पांत। सरकार हिन्दी को लेकर कितनी निष्ठावान है,यह जानना है तो जा के भोपाल का अटलबिहारी हिंदी विश्वविद्यालय की दशा देख आइए। विश्वविद्यालय की परिकल्पना यह थी कि विज्ञान,संचार से लेकर चिकित्सा और अभियंत्रिकी तक सभी विषय हिन्दी में पढ़ाएंगे। आज भी विश्वविद्यालय नामचार का है। सरकार को अपने नाक की चिंता न हो तो इसे कब का बंद कर चुकी होती। हाँ नरेन्द मोदी को इस बात के लिए साधुवाद दिया जाना चाहिए कि वे हिन्दी के लोकव्यापीकरण में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। उन्हें विदेशों में भी हिंदी में सुनकर अच्छा लगता है। जब बहुत ही जरुरी होता है तभी वे अँग्रेजी में बोलते हैं।
सोमवंशी राजपूतों के इस गांव में हर तीसरे घर का कोई न कोई जवान सरहद पर मोर्चा लेते हुए शहीद हुआ है
जयराम शुक्ल
मध्यप्रदेश के सतना जिले में एक गाँव है चूँद। इलाके में इसे शहीदों के गाँव के तौर पर जाना जाता है। सोमवंशी राजपूतों के इस गाँव में हर तीसरे घर का कोई न कोई जवान सरहद में मोर्चा लेते हुए शहीद हुआ है। औसतन हर घर में एक फौजी है। एक दो घर ऐसे भी हैं जहां दो तीन पीढ़ी एक के बाद एक शहीद हुई। गाँव में द्वितीय विश्वयुद्ध से लेकर अब तक हुए सभी युद्धों में इस माटी में पैदा हुए जवानों ने देश के लिए मोर्चा सँभाला है।
आस्था और फंतासी के बीच ओरछा
हाल ही ओरछा से लौटा। दिल-ओ-दिमाग में रामराजा के मंदिर व जहांगीर महल की ताजा छवियों को लिए हुए। नव घोषित झाँसी से राँची राष्ट्रीय राजमार्ग से। यह राजमार्ग अपने लिए भावनात्मक इसलिए भी क्योंकि इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिए गए विन्ध्यप्रदेश के ओर- छोर को जोड़ता है। एक छोर ओरछा का तो दूसरा सिंगरौली का। ओरछा विन्ध्यप्रदेश की सांस्कृतिक व साहित्यिक राजधानी रहा है। विन्ध्यप्रदेश के जमाने में साहित्य के लिए दिया जाने वाला देव पुरस्कार यहाँ के लिए ग्यानपीठ पुरस्कार ही था।